जैव विविधता और पर्यावरण
जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग और संबंधित मुद्दे
- 12 Sep 2019
- 6 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मरुस्थलीकरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Desertification, COP-14) को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने वैश्विक समुदाय को बताया कि भारत ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (Zero Budget Natural Farming-ZBNF) पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
प्रमुख बिंदु
- इस वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey) में भी ZBNF के पारिस्थितिक लाभ और मृदा की उर्वरता एवं जल संरक्षण संबंधी लाभों को उजागर किया गया है।
- राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (National Academy of Agricultural Sciences- NAAS) ने ZBNF के वैज्ञानिक प्रमाणीकरण के पश्चात ही देश में खेती की इस पद्यति को बढ़ावा न देने का सुझाव दिया है।
- NAAS ने ZBNF के मसौदे और इसके दावों के परीक्षण तथा चर्चा करने के लिये पिछले महीने वैज्ञानिकों की एक बैठक आयोजित की थी।
- NAAS के अनुसार, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare) व नीति आयोग (Niti Aayog) NAAS से इनपुट लिये बिना ही ZBNF को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
- यदपि NAAS 100% रसायन आधारित कृषि से बचने का समर्थन करती है परंतु इसने ZBNF के दीर्घकालिक प्रभावों के मद्देनज़र वैज्ञानिक परीक्षण एवं प्रमाणीकरण का सुझाव दिया है।
- NAAS के अनुसार, ZBNF पर किये जा रहे ये वैज्ञानिक परीक्षण उत्पादकता, उपज की गुणवत्ता तथा मृदा पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करने में सहायक होंगे।
ज़ीरो बज़ट नेचुरल फार्मिंग
- ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग मूल रूप से महाराष्ट्र के एक किसान सुभाष पालेकर द्वारा विकसित रसायन मुक्त कृषि (Chemical-Free Farming) का एक रूप है। यह विधि कृषि की पारंपरिक भारतीय प्रथाओं पर आधारित है।
- इस विधि में कृषि लागत जैसे कि उर्वरक (Fertilisers), कीटनाशक (Pesticides) और गहन सिंचाई (Intensive Irrigation) की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
- इस विधि के तहत चाहे किसी भी फसल का उत्पादन किया जाए उसकी लागत मूल्य ज़ीरो होनी चाहिये।
- कृषि कार्य हेतु आवश्यक सभी संसाधन घर में ही उपलब्ध होने चाहिये।
- देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है। खेत में इनका उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्त्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक घटकों का भी विस्तार होता है।
ZBNF के घटक
- बीजामृत- यह प्रथम चरण होता है जिसमें गाय के गोबर, गोमूत्र तथा चूना व खेत की मृदा से बीज शोधन किया जाता है।
- जीवामृत- गाय के गोबर, गोमूत्र व अन्य जैविक पदार्थों का एक घोल तैयार कर किण्वन किया जाता है। किण्वन के पश्चात् प्राप्त इस पदार्थ को उर्वरक व कीटनाशक के स्थान पर प्रयोग में लाया जाता है।
- मल्चिंग: इसमें जुताई के स्थान पर फसल के अवशेषों को भूमि पर आच्छादित कर दिया जाता है।
- वाफसा: इसमें सिंचाई के स्थान पर मृदा में नमी एवं वायु की उपस्थिति को महत्त्व दिया जाता है।
भारत के संदर्भ में
- वर्ष 2015 में शुरू किये गए कुछ पायलट कार्यक्रमों की सफलता से प्राप्त अनुभवों को आंध्र प्रदेश में व्यवहार में लाया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि यह ZBNF नीति को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया।
- ZBNF को लागू करने वाली एजेंसी रिथु स्वाधिकार द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, इस कार्यक्रम को विभिन्न चरणों में क्रियान्वित किया जाएगा।
- प्रत्येक मंडल में कम-से-कम एक पंचायत को इस नई विधि में स्थानांतरित करने की दिशा में काम किया जाएगा। 2021-22 तक इस कार्यक्रम का प्रसार राज्य की प्रत्येक पंचायत में करने की योजना है, ताकि 2024 तक पूर्ण कवरेज के साथ इसे लागू किया जा सके।
- कर्नाटक के किसान संगठन, कर्नाटक राज्य रायथा संघ (Karnataka Rajya Raitha Sangha-KRRS) के द्वारा ZBNF को बढ़ावा दिया जा रहा है।
राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी
(National Academy of Agricultural Sciences-NAAS)
- राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी की स्थापना वर्ष 1990 में की गई।
- यह अकादमी पशुपालन, मत्स्यपालन, कृषि वानिकी और कृषि-विज्ञान सहित कृषि एवं कृषि-उद्योग के बीच सहयोग को बढ़ावा देने आदि क्षेत्रों में कार्यरत है।
उद्देश्य
- पारिस्थितिकी आधारित टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देना।
- कृषि के अलग-अलग क्षेत्र में वैज्ञानिकों की उत्कृष्टता को बढ़ावा देना।
- देश के भीतर और दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय के साथ विभिन्न संस्थाओं तथा संगठनों के अनुसंधानरत लोगों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।