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भारत में अनुचित अभियोजन

  • 15 Mar 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में अनुचित अभियोजन (Wrongful Prosecution) के मामलों के संदर्भ में एक याचिका दायर की गई है, इस याचिका में पुलिस अथवा प्रशासनिक अधिकारियों के अनुचित अभियोजन के कारण प्रभावित हुए पीड़ितों को मुआवज़ा देने हेतु सरकार द्वारा दिशा-निर्देश लागू करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।

  • इस याचिका में कहा गया कि सरकार द्वारा वर्ष 2018 में 'न्याय की हत्या'/घोर अन्याय (Miscarriage of Justice) पर भारतीय विधि आयोग की 277वीं रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है।

अनुचित अभियोजन (Wrongful Prosecution):  

  • यह उन मामलों को संदर्भित करता है जहाँ अभियुक्त अपराध का दोषी न हो, परंतु पुलिस और/या अभियोजन उस व्यक्ति की जाँच और/या उस पर मुकदमा चलाने के दौरान कदाचार में सम्मिलित हो।
  • गौरतलब है कि भारत द्वारा 'नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्‍ट्रीय नियम' (ICCPR) के अनुमोदन/मंज़ूरी प्रदान की गई है। ICCPR सदस्य देशों के लिये यह दायित्व निर्धारित करता है कि वे इस प्रकार के घोर अन्याय के मामलों में पीड़ितों को क्षतिपूर्ति प्रदान करने हेतु कानून बनाएँ।

प्रमुख बिंदु: 

भारत में अनुचितअभियोजन:

  • पुलिस और अभियोजन के कदाचार के कारण दर्ज गलत मुकदमों के लिये भारत में कोई प्रभावी वैधानिक/कानूनी तंत्र नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप देश में झूठे मामलों की संख्या बहुत बढ़ गई है।  
    • अधिकारियों को अदालतों द्वारा मुकदमा चलाए जाने का कोई भय न होने और परोक्ष उद्देश्यों के लिये निर्दोष लोगों पर अभियोजन चलाने की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण झूठे मामलों को दायर करने में अभूतपूर्व उछाल आया है।
  • याचिका में कहा गया है कि निर्दोष लोग उन अधिकारियों के द्वेष के शिकार हुए जिन्होंने अपने हितों को पूरा करने के लिये आपराधिक न्याय प्रणाली का दुरुपयोग किया है।
  • इसने न केवल देश के सामाजिक ताने-बाने को नष्ट कर दिया है बल्कि 40 मिलियन से अधिक मामलों के भारी दबाव से जूझ रही न्यायपालिका को भी प्रभावित किया है।

अनुचित अभियोजन से जुड़े न्यायिक फैसले:

  • इससे पहले मई 2017 में 'बबलू चौहान बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य सरकार' मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्दोष व्यक्तियों पर अनुचित अभियोजन चलाए जाने के मामलों के संदर्भ में चिंता व्यक्त की थी। 
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने विधि आयोग से इस मुद्दे की व्यापक जाँच करने और इस संदर्भ में सरकार से सिफारिश करने को कहा था।

भारतीय विधि आयोग की 277वीं रिपोर्ट में शामिल सिफारिशें: 

  • विधि आयोग द्वारा न्याय की हत्या (जिसके कारण लोगों पर अनुचित अभियोजन शुरु किया गया) के मामलों में पीड़ितों को मुआवज़ा दिलाने के लिये ‘दंड प्रक्रिया संहिता, 1973’ (CrPC) में संशोधन की सिफारिश की गई।
    • न्याय की हत्या से आशय अनुचित या दुर्भावनापूर्ण अभियोजन से है, जिसमें ऐसे अभियोजन के परिणामस्वरूप आरोपी व्यक्ति को दोषी ठहराया गया हो या उसे कारावास का दंड दिया गया हो।
  • अनुचित अभियोजन के मामलों में मुआवज़े के दावों की सुनवाई के लिये प्रत्येक ज़िले में विशेष अदालतों की स्थापना की जानी चाहिये।
  • मुआवज़े का दावा आरोपी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है जो इस प्रकार के अभियोजन से प्रभावित हुआ हो; या उक्त आरोपी व्यक्ति द्वारा अधिकृत किसी भी एजेंट द्वारा; या ऐसे मामलों में जहाँ अनुचित अभियोजन की समाप्ति के बाद अभियुक्त की मृत्यु हो गई है, मृतक के सभी या कोई वारिस या कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा।
  • ऐसे मामलों में मुआवज़े की राशि निर्धारित करते समय न्यायालय द्वारा कुछ निर्देशक सिद्धांतों का अनुसरण किया जाना चाहिये। इनमें अपराध की गंभीरता, दंड की गंभीरता, हिरासत की अवधि, स्वास्थ्य को नुकसान, प्रतिष्ठा को नुकसान और अवसरों की हानि शामिल है।
  • इस फ्रेमवर्क के तहत मुआवज़े में आर्थिक (मौद्रिक) और गैर-आर्थिक सहायता (परामर्श, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ, व्यावसायिक/रोज़गार संबंधी कौशल विकास और इसी तरह की अन्य समान सेवाएँ शामिल होंगी।

स्रोत: द हिंदू

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