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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

समुद्र तल की मैपिंग

  • 25 Jun 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

‘सीबेड 2030 प्रोजेक्ट’ के बारे में 

मेन्स के लिये:

‘सीबेड 2030 प्रोजेक्ट’ का जलवायु परिवर्तन एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं के अध्ययन में महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जापान के ‘निप्पॉन फाउंडेशन’ (Nippon Foundation) तथा ‘जनरल बेथमीट्रिक चार्ट ऑफ द ओसियनस’ (General Bathymetric Chart of the Oceans-GEBCO) के सहयोग से संचालित ‘सीबेड 2030 प्रोजेक्ट’ (Seabed 2030 Project) के अंतर्गत संपूर्ण विश्व के समुद्र तल के लगभग पांचवें (⅕) हिस्से की मैपिंग का कार्य पूर्ण किया जा चुका है।

World-Sea-Level-Mapping

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ल्ड हाइड्रोग्राफी डे (World Hyderography day) के अवसर पर निप्पॉन फाउंडेशन द्वारा इस बात की जानकारी दी गई है कि GEBCO सीबेड 2030 प्रोजेक्ट के तहत नवीनतम ग्रिड में 1.45 करोड़ वर्ग किलोमीटर के बाथिमेट्रिक डेटा (Bathymetric Data) को शामिल किया जा चुका है। 

वर्ल्ड हाइड्रोग्राफी डे:

  • 21 जून, 2020 को विश्व भर में ‘वर्ल्ड हाइड्रोग्राफी डे’ (World Hyderography day) मनाया गया है।
  • वर्ष 2020 के लिये वर्ल्ड हाइड्रोग्राफी डे की थीम- ‘ऑटोनोमस टेक्नोलॉजीज़ को सक्षम करना’ (Enabling Autonomus Technologies) थी।
  • इसका उद्देश्य-हाइड्रोग्राफी अर्थात जल विज्ञान के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना है।
  • इस दिवस की शुरुआत वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में संकल्प पारित करके की गई थी।
  • निप्पॉन फाउंडेशन-GEBCO के सीबेड 2030 प्रोजेक्ट, के अंतर्गत वर्ष 2030 तक संपूर्ण विश्व के  समुद्र तल की मैपिंग का कार्य पूर्ण किया जाना है। 
  • वर्ष 2017 में इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई तब से  लेकर अब तक आधुनिक मानकों के अनुसार समुद्र तल सर्वेक्षण का लगभग 6 प्रतिशत से 19 प्रतिशत कार्य  किया  जा चुका  है।

सीबेड 2030 प्रोजेक्ट:

  • इस परियोजना की घोषणा वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में की गई थी। 
  • परियोजना की वैश्विक पहल जापान के निप्पॉन फाउंडेशन तथा  ‘जनरल बेथमीट्रिक चार्ट ऑफ द ओसियनस’ (GEBCO) के माध्यम से वर्ष 2017 में की गई। 
  • GEBCO एकमात्र अंतर-सरकारी संगठन है।
  • GEBCO को संपूर्ण विश्व के समुद्र तल के नक्शे तैयार करने का आदेश प्राप्त है। 
  • इस परियोजना के द्वारा महासागर के विभिन्न हिस्सों से स्थित GEBCO ग्रिड के पाँच  केंद्रों की सहायता से प्राप्त बाथमीट्रिक डेटा की सोर्सिंग एवं संकलन का कार्य किया जाता है।

समुद्र तल अध्ययन का महत्त्व:

  • बाथिमेट्री (Bathymetry ) के माध्यम से महासागर तल के आकार और गहराई की माप की जा सकती है।
    • बाथिमेट्री के माध्यम से झीलों, समुद्रों या महासागरों में मौज़ूद पानी की गहराई के स्तर को  मापा जाता है। 
    • बाथिमेट्री डेटा द्वारा गहराई एवं  पानी के नीचे की स्थलाकृति के आकार के बारे में जानकारी एकत्र की जाती है।
  • यह अध्ययन समुद्र के संचलन, ज्वार एवं जैविक आकर्षण के केंद्र सहित कई प्राकृतिक घटनाओं को समझने में सहायक है।
  • इस अध्य्यन के माध्यम से नेविगेशन के लिये महत्त्वपूर्ण जानकारी, सुनामी की पूर्वसूचना, तेल एवं गैस क्षेत्रों की खोज, अपतटीय पवन टर्बाइन के निर्माण, मछली पकड़ने के संसाधन एवं केबल तथा पाइपलाइन बिछाने से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है। 
  • आपदा स्थितियों का आकलन करने के लिये भी समुद्र तल  का अध्ययन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 2011 में जापान के तोहोकू में आए विनाशकारी  भूकंप के पीछे के कारणों की पता लगाने में वैज्ञानिकों द्वारा  समुद्र अध्ययन से प्राप्त डाटाओं का प्रयोग किया गया था ।
  • संपूर्ण वैश्विक महासागरीय तल का एक मानचित्र महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण एवं इनके निरंतर उपयोग के लिये  संयुक्त राष्ट्र के सतत्  विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगा।
  • ये मानचित्र महत्वपूर्ण रूप से जलवायु परिवर्तन की बेहतर समझ विकसित करेंगे, क्योंकि घाटी और पानी के नीचे के ज्वालामुखी एवं सतह की विशेषताएँ समुद्री जलके ऊर्ध्वाधर मिश्रण (vertical mixing of ocean water)एवं समुद्र की धाराओं जैसे घटना को प्रभावित करती हैं - जो गर्म और ठंडे पानी के कन्वेयर बेल्ट के रूप में कार्य करती हैं, जलवायु परिवर्तन ने इन धाराओं के प्रवाह को भी   प्रभावित किया है।
  • ये समुद्री धाराएँ  मौसम और जलवायु दशाओं को प्रभावित करती हैं। समुद्री धारााओं के बारे में प्राप्त अधिकाधिक जानकारी वैज्ञानिकों को भविष्य में जलवायु के व्यवहार का पूर्वानुमान लगाने वाले मॉडल विकसित करने में सहायक होगी , जिसमें समुद्र-स्तर की वृद्धि भी शामिल है।
  • इस परियोजना के माध्यम से विश्व को समुद्री संसाधनों के बारे में नीतिगत निर्णय लेने, महासागर की सही स्थिरता की जानकारी एवं वैज्ञानिक अनुसंधान से संबंधित गतिविधियों को नई दिशा मिलेगी। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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