जहाजों का पथ-प्रदर्शन करने वाले विश्व के प्राचीनतम नेविगेशन यंत्र की प्राप्ति | 26 Oct 2017

संदर्भ

हाल ही में ब्रिटेन के एक जहाज़ खोजक (shipwreck hunter) द्वारा प्राप्त एक ‘नेविगेशन यंत्र’, (navigation tool) की पुष्टि विश्व के सबसे प्राचीनताम यंत्र के रूप में कर दी गई है। विदित हो कि इस यंत्र ने ही 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली खोजकर्त्ताओं को भारत की यात्रा का मार्ग दिखाया था।

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2014 में ओमान तट पर गोता लगाने के दौरान डेविड मॉर्न्स ने एक कांस्य डिस्क को प्राप्त की जिसकी वारविक विश्वविद्यालय द्वारा विश्व के प्राचीनतम नेविगेशन यंत्र के रूप में पुष्टि कर दी गई है।
  • यह सबसे प्राचीन समुद्री यंत्र है। इसका निर्माण 1496 से 1500 के दौरान किया गया था। यह इससे पूर्व ज्ञात सबसे प्राचीन यंत्र से भी लगभग 30 वर्ष पुराना है।
  • प्राचीन काल से ही यंत्रों का उपयोग होता आ रहा है और इस यंत्र को सूर्य अथवा तारों की ऊँचाइयों का उपयोग कर पुर्तगाली खोजकर्त्ताओं द्वारा विकसित किया गया था, जिससे समुद्र में चलने वाले किसी भी जहाज़ की अक्षांशीय स्थिति का निर्धारण किया जा सके।
  • वारविक विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर मार्क विलियम्स द्वारा इस 17.5 सेंटीमीटर चौड़ी कलाकृति की जाँच की गई है।
  • इस मौजूदा प्रोजेक्ट पर विश्वविद्यालय ने अपनी 3डी जाँच प्रौद्योगिकियों का प्रयोग किया था।
  • मॉर्न्स का कहना है कि यह एस्मेराल्डा (Esmeralda) नामक जहाज़ का हिस्सा है, जो कि वास्कोडिगामा की दूसरी खोज यात्रा (1502-1503) का भाग था। 
  • वास्कोडिगामा ऐसा पहला यूरोपीयन व्यक्ति था जो वर्ष 1498 में समुद्री मार्ग से होते हुए भारत पहुँचा था। उसकी इसी खोज ने भारत में औपनिवेशीकरण के युग तथा एशिया व यूरोप के मध्य व्यापार का मार्ग प्रशस्त किया।
  • इस यंत्र पर  पुर्तगाल के शासक मैनुएल 1 का चिन्ह है जो 1495 में सत्ता में आए थे। 
  • पुर्तगालियों को समुद्र में यंत्रों का विकास करने में महारथ हासिल थी। इन यंत्रों का प्रयोग समुद्र में सबसे पहले लगभग 1480 में किया गया था। इससे पूर्व जिस यंत्र की पुष्टि विश्व का सबसे प्राचीनतम यंत्र के रूप में की गई थी वह वर्ष 1533 के जहाज से प्राप्त हुआ था।
  • फिलहाल इस यंत्र को ओमान के राष्ट्रीय म्यूजियम में रखा गया है।