भारतीय अर्थव्यवस्था
वर्ल्ड ऑफ वर्क रिपोर्ट: ILO
- 25 May 2022
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, वर्साय की संधि, राष्ट्र संघ। मेन्स के लिये:वर्ल्ड ऑफ वर्क रिपोर्ट पर ILO मॉनिटर के निष्कर्ष और सिफारिशें। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने वर्ल्ड ऑफ वर्क रिपोर्ट पर ILO मॉनिटर का नौवाँ संस्करण ज़ारी किया, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2021 की अंतिम तिमाही के दौरान महत्त्वपूर्ण लाभ के बाद वर्ष 2022 की पहली तिमाही में वैश्विक स्तर पर काम के घंटों की संख्या में गिरावट आई है, जो कोविड-19 से पहले रोज़गार की स्थिति से 3.8 प्रतिशत कम है।
- इसका मुख्य कारण हाल ही में चीन में लॉकडाउन, यूक्रेन एवं रूस के बीच संघर्ष और खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में वैश्विक वृद्धि है।
- रिपोर्ट इस संदर्भ में वैश्विक अवलोकन प्रदान करती है कि देश कैसे अनियमित श्रम बाज़ार में सुधार कर रहे हैं, जो यूक्रेन के खिलाफ रूसी आक्रामकता, बढ़ती मुद्रास्फीति और सख्त कोविड-19 रोकथाम उपायों की निरंतरता जैसे कारकों से बाधित हुआ है।
रिपोर्ट के अन्य निष्कर्ष:
- वैश्विक:
- कार्यावधि में कमी:
- भारत और निम्न-मध्यम-आय वाले देशों ने वर्ष 2020 की दूसरी तिमाही में कार्यावधि गिरावट में लैंगिक अंतर का अनुभव किया।
- हालाँकि भारत में महिलाओं के काम के घंटों का प्रारंभिक स्तर बेहद कम था, भारत में महिलाओं द्वारा किये गए कार्य के घंटों में कमी का निम्न-मध्यम-आय वाले देशों के समग्र प्रदर्शन पर मामूली प्रभाव पड़ा है।
- इसके विपरीत भारत में पुरुषों द्वारा कार्य करने के घंटों में कमी का समग्र प्रदर्शन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।
- विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच अंतर:
- विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच महत्त्वपूर्ण व बढ़ती असमानता बनी हुई है।
- जहांँ उच्च आय वाले देशों में काम के घंटों में सुधार देखा गया, वहीं निम्न और निम्न-मध्यम-आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में संकट-पूर्व आधार रेखा की तुलना में वर्ष की पहली तिमाही में 3.6 एवं 5.7 प्रतिशत की गिरावट देखी गई।
- कार्यस्थल बंद होने की प्रवृत्ति:
- वर्ष 2021 के अंत और वर्ष 2022 की शुरुआत में संक्षिप्त उछाल के बाद वर्तमान में कार्यस्थल बंद होने की प्रवृत्ति में गिरावट आई है।
- जबकि अधिकांश श्रमिक किसी-न-किसी प्रकार के कार्यस्थल प्रतिबंध वाले देशों में रहते हैं, लेकिन प्रतिबंध का सबसे गंभीर रूप (आवश्यक कार्यस्थलों को छोड़कर सभी के लिये अर्थव्यवस्था-व्यापी आवश्यक बंद) अब लगभग समाप्त हो गया है।
- हाल ही में सख्ती के साथ कार्यस्थलों को बंद करने में यह कटौती यूरोप और मध्य एशिया में विशेष रूप से स्पष्ट की गई थी, जहांँ वर्तमान में 70% श्रमिकों को या तो केवल अनुशंसित बंद का सामना करना पड़ता है या बिल्कुल भी नहीं।
- रोज़गार पुनः प्राप्ति प्रवृत्तियों में विचलन:
- काम के घंटों में समग्र विचलन के अनुरूप वर्ष 2021 के अंत तक अधिकांश उच्च-आय वाले देशों में रोज़गार के स्तर में सुधार हुआ था, जबकि अधिकांश मध्यम-आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में घाटे की प्रवृत्ति बनी रही।
- वर्ष 2019 की अंतिम तिमाही से रोज़गार-से-जनसंख्या अनुपात में अंतर वर्ष 2021 के अंत तक समाप्त हो गया था।
- श्रम आय की अब तक पुनः प्राप्ति नहीं हुई है:
- वर्ष 2021 में पाँच में से तीन श्रमिक उन देशों में रहते थे जहाँ औसत वार्षिक श्रम आय अभी तक वर्ष 2019 की चौथी तिमाही के अपने स्तर तक नहीं पहुँच पाई थी।
- निम्न, निम्न-मध्यम और उच्च-मध्यम आय वाले देशों (चीन को छोड़कर) में श्रमिकों को वर्ष 2021 में क्रमशः -1.6%, -2.7% और -3.7% की दर से कम श्रम आय भुगतान पर कार्य करना पड़ा।
- अनौपचारिक रोज़गार अधिक प्रभावित हुआ, विशेष रूप से महिलाओं के मामले में लेकिन औपचारिक रोज़गार की तुलना में विपरीत स्थिति विद्यमान है:
- उदाहरण के लिये औपचारिक रोज़गार से विस्थापित श्रमिक आजीविका चलाने के लिये अनौपचारिक रोज़गार का सहारा लेते हैं, जबकि जो पहले से ही अनौपचारिक रोज़गार में हैं, वे वहीं पर बने रहते हैं।
- इस कारण से आर्थिक मंदी के दौरान अनौपचारिक रोज़गार में औपचारिक रोज़गार की तुलना में कम परिवर्तन देखा गया।
- कार्यावधि में कमी:
- भारत:
- महामारी से पहले रोज़गार में संलग्न हर 100 महिलाओं में से महामारी की इस पूरी अवधि के दौरान औसतन 12.3 महिलाओं ने अपना रोज़गार खो दिया।
- इसके विपरीत प्रत्येक 100 पुरुषों पर यह आँकड़ा 7.5 है।
- इसलिये ऐसा लगता है कि महामारी ने देश में रोज़गार भागीदारी में पहले से ही व्याप्त लैंगिक असंतुलन को बढ़ा दिया है।
- भारत में महिला रोज़गार में कमी आई है, विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में।
अनुशंसाएँ:
- श्रमिकों की क्रय क्षमता में सुधार किया जाना चाहिये। ILO अच्छी नौकरियों और अच्छे वेतन की वकालत करता है।
- भारत में अधिकांश लोग बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के संविदा पर कार्य कर रहे हैं। यदि उचित मज़दूरी नहीं मिलती है, तो क्रय शक्ति भी कम हो जाएगी। वेतन संहिता वर्ष 2019 में पारित हुई थी, लेकिन अभी तक लागू नहीं हुई है।
- एक मानव-केंद्रित पुनः प्राप्ति जो काम के उज्जवल और अधिक समावेशी भविष्य की दिशा में सतत् विकास पथ स्थापित करती है, पहले से कहीं अधिक ज़रूरी है। जून 2021 में 109वें अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में ILO के 187 सदस्य राज्यों की त्रिपक्षीय सहमति से इस तरह के दृष्टिकोण पर सहमति बनी, जिसने कोविड-19 संकट से ‘मानव-केंद्रित पुनः प्राप्ति के लिये वैश्विक कार्रवाई’ को अपनाया, जो समावेशी, टिकाऊ व लचीला है तथा विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। यह कार्रवाई सरकारों, नियोक्ताओं एवं श्रमिक संगठनों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को संबोधित अनुशंसाओं का समूह है।
- जोखिम के आकलन के साथ विशेष रूप से कमज़ोर वर्गों को समय पर प्रभावी समर्थन के लिये श्रम आय और समग्र जीवन स्तर की क्रय शक्ति की रक्षा व रखरखाव की आवश्यकता है।
- मुद्रास्फीति संबंधी समस्या के एक नीतिगत चुनौती के रूप में उभरने के साथ समष्टि आर्थिक नीतियों को सावधानीपूर्वक समायोजित करने की आवश्यकता है। साथ ही उभरते बाज़ारों और विकासशील देशों को उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति के सख्त होने के परिणामस्वरूप प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा, जिसके लिये वित्तीय प्रवाह के विवेकपूर्ण प्रबंधन की आवश्यकता होगी।
- लंबी अवधि में वसूली को बढ़ावा देने के लिये औपचारिकता, स्थिरता और समावेशिता के लक्ष्य के साथ अच्छी नौकरियों के सृजन को बढ़ावा देने हेतु अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई क्षेत्रीय नीतियों की आवश्यकता है।
- पुनर्प्राप्ति अवधि के दौरान लोगों को संक्रमण में सहायता प्रदान करने के लिये लक्षित नीतियाँ भी महत्त्वपूर्ण हैं, जिसमें कमज़ोर समूहों पर ध्यान केंद्रित करना और अनौपचारिक रोज़गार में काम करने वालों के लिये काम की स्थिति में सुधार करना तथा उन्हें औपचारिक अर्थव्यवस्था में संक्रमण के दौरान मदद करना शामिल है।
- श्रम बाज़ार में लचीलापन और निष्पक्षता के साथ योगदान करने के लिये इन प्रयासों को मज़बूत श्रम बाज़ार संस्थानों, सामूहिक सौदेबाज़ी एवं उन सामाजिक संवादों से जोड़ने की ज़रूरत है जो अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों का सम्मान करते हैं।
- तत्काल आवश्यक सामाजिक सुरक्षा (स्वास्थ्य संबंधी उपायों सहित) सुनिश्चित करने और उचित बदलाव को बढ़ावा देने के लिये अच्छे रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने की दिशा में व्यापक दृष्टिकोण एक बड़ा अंतर ला सकता है।
- इस संबंध में ‘ग्लोबल एक्सेलेरेटर फॉर जॉब्स एंड सोशल प्रोटेक्शन फॉर जस्ट ट्रांज़ीशन’, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक मुख्य रूप से हरित, डिजिटल अर्थव्यवस्था में कम-से-कम 400 मिलियन नौकरियाँ सृजित करना है एवं वर्तमान में 4 बिलियन से अधिक लोगों के लिये सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करना एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
- कई अन्य लक्ष्यों के अलावा इसे उद्यम-सक्षम वातावरण को बढ़ावा देने, मानवीय क्षमताओं को विकसित करने की आवश्यकता है जो उत्पादक क्षमताओं का विस्तार कर सके, लोगों की रक्षा कर सके और सामाजिक संवाद व श्रम मानकों की पूर्णता के संदर्भ में अधिक रोज़गार पैदा कर सके।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन:
- यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है। यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियाँ को विकसित करने एवं सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्य कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है।
- वर्ष 1969 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
- वर्ष 1919 में वर्साय की संधि द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में इसकी स्थापना हुई।
- वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया।
- मुख्यालय: इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
ILO का कन्वेंशन नंबर 144:
- वर्ष 1976 का कन्वेंशन 144 जिसे त्रिपक्षीय परामर्श (अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक) पर कन्वेंशन के रूप में भी जाना जाता है, एक आवश्यक सिद्धांत के अनुप्रयोग को बढ़ावा देता है, जिस पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की स्थापना की गई थी, जो है:
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों के विकास और कार्यान्वयन में त्रिपक्षीय सामाजिक संवाद।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों के संबंध में त्रिपक्षीयवाद व्यापक सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर सामाजिक संवाद की राष्ट्रीय संस्कृति को बढ़ावा देता है।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कन्वेंशन 138 और 182 किससे संबंधित हैं? (a) बाल श्रम, (2018) उत्तर: a
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