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भारतीय विरासत और संस्कृति

विश्व विरासत समिति की चिंताएँ

  • 16 Jul 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व विरासत समिति (World Heritage Committee-WHC) ने हंपी के विरासत स्थल और दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (Darjeeling Himalayan Railway-DHR) के संरक्षण से संबंधित कुछ चिंताओं को चिह्नित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • WHC ने हंपी के विश्व विरासत स्थल की विकासात्मक परियोजनाओं के बारे में स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही जैसी चिंताओं पर खेद व्यक्त किया है।
  • भारतीय रेलवे के कई बार अनुरोध के पश्चात्, निगरानी और सामान्य रखरखाव की कमी, एवं पटरियों के किनारे अतिक्रमण तथा कचरे को गिराये जाने (कचरे की डंपिंग) के बारे में वर्ष 2017 से 2019 के बीच कोई जानकारी नहीं दी गई, इसे वैश्विक विरासत संरक्षण मानदंडों का उल्लंघन माना जाता है।

हंपी:

  • हंपी में मुख्य रूप से अंतिम हिंदू साम्राज्य की राजधानी विजयनगर साम्राज्य (14वीं-16वीं शताब्दी) के अवशेष पाए जाते हैं।
  • हंपी के चौंदहवीं शताब्‍दी के भग्‍नावशेष यहाँ लगभग 26 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए हैं।
  • हंपी में मौजूद विठ्ठल मंदिर विजय नगर साम्राज्य की कलात्मक शैली का एक उत्‍कृष्‍ट उदाहरण है।
  • विजय नगर शहर के स्‍मारक विद्या नारायण संत के सम्‍मान में विद्या सागर के नाम से भी जाने जाते हैं।

Humpi

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे:

  • भारत के पर्वतीय रेलवे के तीन रेलवे विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल हैं:
    • पश्चिम बंगाल (पूर्वोत्तर भारत) में हिमालय की तलहटी में स्थित दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे।
    • तमिलनाडु (दक्षिण भारत) के नीलगिरि पहाड़ियों में स्थित नीलगिरि पर्वत रेलवे।
    • हिमाचल प्रदेश (उत्तर-पश्चिम भारत) के हिमालय की तलहटी में स्थित कालका शिमला रेलवे।

Himalayan Railway

  • दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, पहाड़ी यात्री रेलवे का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • इसे वर्ष 1881 में शुरू किया गया। यह एक अत्यंत खुबसूरत पहाड़ी क्षेत्र में एक प्रभावी रेल लिंक स्थापित करने की समस्या का निराकरण करने का एक साहसिक इंजीनियरिंग प्रयास है।

क्या हैं विश्व विरासत स्थल?

मानवता के लिये अत्यंत महत्त्व के स्थान, जिन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिये बचाकर रखना आवश्यक समझा जाता है, उन्हें विश्व विरासत के रूप में जाना जाता है। ऐसे महत्त्वपूर्ण स्थलों के संरक्षण की पहल यूनेस्को द्वारा की जाती है। विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर संरक्षण को लेकर एक अंतर्राष्ट्रीय संधि 1972 में लागू की गई।

विश्व विरासत समिति इस संधि के तहत निम्न तीन श्रेणियों में आने वाली संपत्तियों को शामिल करती है:

  1. प्राकृतिक विरासत स्थल: ऐसी विरासत जो भौतिक या भौगोलिक प्राकृतिक निर्माण का परिणाम या भौतिक और भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत सुंदर या वैज्ञानिक महत्त्व की जगह या भौतिक और भौगोलिक महत्त्व वाली जगह या किसी विलुप्ति के कगार पर खड़े जीव या वनस्पति का प्राकृतिक आवास हो सकती है।
  2. सांस्कृतिक विरासत स्थल: इस श्रेणी की विरासतों में स्मारक, स्थापत्य की इमारतें, मूर्तिकारी, चित्रकारी, स्थापत्य की झलक वाले शिलालेख, गुफा आवास और वैश्विक महत्त्व वाले स्थान, इमारतों का समूह, अकेली इमारतें या आपस में संबद्ध इमारतों का समूह, स्थापत्य में किया मानव का काम या प्रकृति और मानव के संयुक्त प्रयास का प्रतिफल, जो कि ऐतिहासिक, सौंदर्य, जातीय, मानवविज्ञान या वैश्विक दृष्टि से महत्त्व की हो, शामिल की जाती हैं।
  3. मिश्रित विरासत स्थल: इस श्रेणी के अंतर्गत वह विरासत स्थल आते हैं, जो प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों ही रूपों में महत्त्वपूर्ण होते हैं।

यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल

  • संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) दुनिया भर में उन सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासतों की पहचान और संरक्षण को प्रोत्साहित करता है जो मानवता के लिये उत्कृष्ट मूल्य के रूप में माने जाते हैं।
  • “विश्व के प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहरों पर सम्मेलन” जो कि एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, इसे 1972 में यूनेस्को की सामान्य सभा में स्वीकृति दी गई।
  • विश्व विरासत कोष अंतर्राष्ट्रीय सहायता की आवश्यकता वाले स्मारकों को संरक्षित करने से संबंधित गतिविधयों के समर्थन के लिये सालाना 4 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान करता है।
  • विश्व विरासत समिति अनुरोधों की ज़रूरत के अनुसार धन आवंटित करती है, सबसे अधिक संकटग्रस्त स्थलों को प्राथमिकता दी जाती है।

स्रोत: द हिंदू

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