इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विश्व की 10% संकटग्रस्त भाषाएँ भारत में बोली जाती हैं|

  • 05 Aug 2017
  • 6 min read

 संदर्भ 
एक अध्ययन के अनुसार, विश्व की तकरीबन 4,000 भाषाओं में से भारत में बोली जाने वाली लगभग 10% भाषाएँ अगले 50 वर्षों में विलुप्ति (extinction) की कगार पर होंगी| हालाँकि, अंग्रेज़ी भाषा से प्रमुख भारतीय भाषाओं को कोई खतरा नहीं है|

  • उल्लेखनीय है कि पी.एल.एस.आई. (People’s Linguistic Survey of India - PLSI) द्वारा प्रस्तुत जानकारी के अनुसार,  इन सभी भाषाओं में भारत की तटीय भाषाएँ सबसे अधिक खतरे में हैं|

तटीय भाषाएँ

  • यदि हम भारतीय भाषाओं के संदर्भ में गहराई से विचार-विमर्श करें तो ज्ञात होता है कि कई भारतीय भाषाएँ विलुप्ति की कगार पर हैं| इनमें भी अधिकांश तटीय भाषाएँ हैं, जिनका अस्तित्व इस समय खतरे में है|
  • संभवतः इसका प्रमुख कारण यह है कि तटीय क्षेत्रों में मानव जीवन अधिक सुरक्षित नहीं होता है| सीधी सी बात है कि यदि इन भाषाओं को बोलने वाली मानव जाति ही सुरक्षित नहीं होगी तो उनकी सांस्कृतिक पहचान एवं विशेषताएँ किस प्रकार सुरक्षित रह पाएंगी|
  • ध्यातव्य है कि पिछले कुछ समय से मछलीपालन करने वाले बहुत से समुदायों ने अपना परंपरागत व्यवसाय त्यागकर शहरों की ओर प्रस्थान करना आरंभ कर दिया है| वे तटों से दूर हो रहे हैं| संभवतः यही कारण है कि उनकी भाषाएँ भी विलुप्त हो रही हैं|

शोध कार्य

  • ध्यातव्य है कि तकरीबन 3,000 लोगों की एक टीम द्वारा विश्व के सबसे बड़े भाषायी सर्वेक्षण (world’s largest linguistic survey) के तहत भारत की कुल 780 भाषाओं का (देश के 27 राज्यों में) सर्वेक्षण किया गया|
  • इस अध्ययन के तहत दिसंबर 2017 तक शेष बचे राज्यों जैसे- सिक्किम, गोवा और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह को भी कवर कर लिया जाएगा|
  • इस अध्ययन के संबंध में अपने विचार प्रकट करते हुए एक साहित्यिक विशेषज्ञ ने इस बात की ओर भी संकेत किया है कि उक्त 10% के अलावा भी कुछ अन्य भारतीय भाषाओं पर विलुप्तिकरण का खतरा मंडरा रहा है| 
  • हालाँकि कुछ ऐसी भी भाषाएँ हैं, जो पूरी तरह से सुरक्षित होने के साथ-साथ संपन्न भी हैं| 

उर्ध्वमुखी प्रवृत्ति

  • इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी भी भाषाएँ हैं, जिनके प्रयोग का प्रतिशत धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है| उदाहरण के तौर पर - संताली, गोंडी (ओडिशा, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र), भेली (महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात), मिज़ो (मिज़ोरम), गारो और खासी (मेघालय) और कोटबराक (त्रिपुरा) आदि कुछ ऐसी भाषाएँ हैं, जिन्हें बोलने वाले लोगों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है|
  • वस्तुतः इसका एक कारण यह है कि इन समुदायों के शिक्षित लोगों ने अब इन भाषाओं का उपयोग लिखित रूप में भी करना प्रारंभ कर दिया है|
  • इन लोगों के द्वारा न केवल अपनी स्थानीय भाषाओं में कविताएँ प्रकाशित की जा रही हैं, बल्कि ये इन भाषाओं में नाटक लिखते हैं और उनका प्रदर्शन भी करते हैं|
  • इतना ही नहीं इनमें से कुछ भाषाओं में तो फिल्में भी बन चुकी हैं| उदाहरण के लिये – पिछले कुछ समय से गोंडी भाषा में कई फिल्मों का प्रदर्शन हो चुका है|
  • इसी तरह से भोजपुरी फिल्म उद्योग भी काफी उन्नत उद्योगों में से एक है| यह देश की सबसे तेज़ी से विकसित होने वाली भाषा है|
  • ध्यातव्य है कि इस सर्वेक्षण के अंतर्गत इन भाषाओं को संरक्षित रखने के तरीकों पर भी प्रकाश डाला गया है|

विलुप्तिकरण का खतरा

  • ध्यातव्य है कि विश्व की तकरीबन 6,000 भाषाओं में से 4,000 भाषाएँ विलुप्तिकरण के खतरे से जूझ रही हैं| इन 4,000 भाषाओं में से 10% भाषाएँ भारत में बोली जाती हैं|
  • अन्य शब्दों में कहा जाए तो, भारत में बोली जाने वाली कुल 780 भाषाओं में से लगभग 400 भाषाएँ विलुप्त होने की कगार पर हैं|

निष्कर्ष
जैसा की हम जानते हैं कि भाषाओं की विलुप्ति संस्कृति के एक संपूर्ण आयाम को नष्ट करने की क्षमता रखती है, ऐसी स्थिति में यह कहना गलत नहीं होगा कि इन भाषाओं का विलुप्त होना न केवल सांस्कृतिक पूंजी, बल्कि मानव पूंजी के साथ-साथ वास्तविक पूंजी को खोने के सामान होगा| हालाँकि, यदि इस नुकसान से बचने के लिये भाषाओं को संरक्षित करने की पहल आरंभ की जाती है तो यह हमारा अपनी भावी पीढ़ी को एक बहुमूल्य तौहफा होगा| स्पष्ट है कि यदि भाषाओं का उपयोग विकसित प्रौद्योगिकी के लिये किया जाता है तो वे आर्थिक रूप से भी लाभदायक सिद्ध हो सकती हैं|

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2