विश्व रोज़गार और सामाजिक दृष्टिकोण रुझान रिपोर्ट | 22 Jan 2020
प्रीलिम्स के लिये:ILO, WESO Trends Report, भारत में बेरोज़गारी से संबंधित आँकड़े मेन्स के लिये:वैश्विक एवं भारतीय परिदृश्य में बेरोज़गारी की समस्या, भारत में गरीबी और समावेशी विकास, बेरोज़गारी और गरीबी |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (UN International Labour Organization- ILO) ने विश्व रोज़गार और सामाजिक दृष्टिकोण रुझान रिपोर्ट (World Employment and Social Outlook Trends Report- WESO Trends Report), 2020 को प्रकाशित किया है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
WESO ट्रेंड रिपोर्ट में निहित महत्त्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं-
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक बेरोज़गारी में लगभग 2.5 मिलियन की वृद्धि का अनुमान है।
- गौरतलब है कि पिछले 9 वर्षों में वैश्विक बेरोज़गारी में स्थिरता की स्थिति बनी हुई थी किंतु धीमी वैश्विक विकास गति के कारण बढ़ते श्रमबल के अनुपात में रोज़गार का सृजन नहीं हो पा रहा है।
- रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में बेरोज़गारों की संख्या लगभग 188 मिलियन है। इसके अलावा लगभग 165 मिलियन लोगों के पास पर्याप्त आय वाला रोज़गार नहीं है और लगभग 120 मिलियन लोग या तो सक्रिय रूप से काम की तलाश में हैं या श्रम बाज़ार तक पहुँच से दूर हैं। इस प्रकार विश्व में लगभग 470 मिलियन लोग रोज़गार की समस्या से परेशान हैं।
- हाल ही में अर्थव्यवस्था पर जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि विकसित देश धीमी वृद्धि का सामना कर रहे हैं और कुछ अफ्रीकी देश स्थिर हैं। परिणामतः बढ़ती श्रम शक्ति को उपयोग में लाने के लिये पर्याप्त मात्रा में नई नौकरियाँ सृजित नहीं हो पा रही हैं। इसके अलावा कई अफ्रीकी देश वास्तविक आय में गिरावट और गरीबी में वृद्धि का सामना कर रहे हैं।
- ध्यातव्य है कि वर्तमान में कार्यशील गरीबी (क्रय शक्ति समता शर्तों में प्रतिदिन 3.20 अमेरिकी डॉलर से कम आय के रूप में परिभाषित) वैश्विक स्तर पर कार्यशील आबादी में 630 मिलियन से अधिक या पाँच में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है।
- लिंग, आयु और भौगोलिक स्थिति से संबंधित असमानताएँ नौकरी के बाज़ार को प्रभावित करती हैं, रिपोर्ट में यह प्रदर्शित है कि ये कारक व्यक्तिगत अवसर और आर्थिक विकास दोनों को सीमित करते हैं।
- 15-24 वर्ष की आयु के कुछ 267 मिलियन युवा रोज़गार, शिक्षा या प्रशिक्षण में संलिप्त नहीं हैं तथा इससे अधिक लोग काम करने की खराब स्थिति को भी सहन कर रहे हैं।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यापार प्रतिबंधों और संरक्षणवाद में वृद्धि रोज़गार पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं जिसके कारण इसे संभावित चिंता के रूप में देखा जा रहा है। ध्यातव्य है कि उत्पादन के कारकों की तुलना में मज़दूरी के रूप में प्राप्त आय में महत्त्वपूर्ण गिरावट आई है।
- वार्षिक WESO ट्रेंड रिपोर्ट में प्रमुख श्रम बाज़ार के मुद्दों का विश्लेषण किया गया है, जिसमें बेरोज़गारी, श्रम का अभाव, कार्यशील गरीबी, आय असमानता, श्रम-आय हिस्सेदारी आदि कारक लोगों को उनकी प्रतिभा के अनुरूप रोज़गार से दूर करते हैं।
- आर्थिक विकास को देखते हुए यह पता चलता है कि विकास की वर्तमान गति और स्वरूप गरीबी को कम करने एवं कम आय वाले देशों में काम करने की स्थिति में सुधार के प्रयासों में सबसे बड़ी बाधा हैं।
रिपोर्ट में निहित बिंदुओं के निहितार्थ
- ILO की इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020-2030 में विकासशील देशों में मध्यम या चरम कार्यशील गरीबी बढ़ने की उम्मीद है, जिससे वर्ष 2030 तक गरीबी उन्मूलन पर सतत् विकास लक्ष्य 1 (SDG- 1) को प्राप्त करने में बाधा आएगी।
- श्रम की कमी और खराब गुणवत्ता वाली नौकरियों का आशय है कि हमारी अर्थव्यवस्था और समाज मानव प्रतिभा के विशाल पूल के संभावित लाभों को गँवा रहे हैं।
- बढ़ती बेरोज़गारी से वैश्विक स्तर पर लोगों की आय क्षमता पर प्रभाव पड़ेगा जिससे आय असमानता में वृद्धि होगी। नए उपलब्ध डेटा से पता चलता है कि वैश्विक श्रम आय (Global Labour Income) का वितरण अत्यधिक असमान है।
- रोज़गार के सीमित अवसर लोगों को अधिक मात्रा में अनौपचारिक क्षेत्रों एवं सामाजिक सुरक्षा रहित श्रम में नियोजित होने को प्रेरित करेंगे। साथ ही आपराधिक प्रवृत्तियों जैसे- चोरी, डकैती इत्यादि को भी बढ़ावा देंगे।
भारत में बेरोज़गारी से संबंधित आँकड़े
- CMIE की अक्तूबर 2019 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शहरी बेरोज़गारी दर 8.9% और ग्रामीण बेरोज़गारी दर 8.3% अनुमानित है।
- उल्लेखनीय है अक्तूबर 2019 में भारत की बेरोज़गारी दर बढ़कर 8.5% हो गई, जो अगस्त 2016 के बाद का उच्चतम स्तर है।
- रिपोर्ट के अनुसार, राज्य स्तर पर सबसे अधिक बेरोज़गारी दर त्रिपुरा (27%) हरियाणा (23.4%) और हिमाचल प्रदेश (16.7) में आँकी गई।
- जबकि सबसे कम बेरोज़गारी दर तमिलनाडु (1.1%), पुद्दुचेरी (1.2%) और उत्तराखंड (1.5%) में अनुमानित है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
(International Labour Organization- ILO)
- यह ‘संयुक्त राष्ट्र’ की एक विशिष्ट एजेंसी है, जो श्रम संबंधी समस्याओं/मामलों, मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक, सामाजिक संरक्षा तथा सभी के लिये कार्य अवसर जैसे मामलों को देखती है।
- यह संयुक्त राष्ट्र की अन्य एजेंसियों से इतर एक त्रिपक्षीय एजेंसी है, अर्थात् इसके पास एक ‘त्रिपक्षीय शासी संरचना’ (Tripartite Governing Structure) है, जो सरकारों, नियोक्ताओं तथा कर्मचारियों का (सामान्यतः 2:1:1 के अनुपात में) इस अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रतिनिधित्व करती है।
- यह संस्था अंतर्राष्ट्रीय श्रम कानूनों का उल्लंघन करने वाली संस्थाओं के खिलाफ शिकायतों को पंजीकृत तो कर सकती है, किंतु सरकारों पर प्रतिबंध आरोपित नहीं कर सकती है।
- इस संगठन की स्थापना प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् ‘लीग ऑफ नेशन्स’ (League of Nations) की एक एजेंसी के रूप में सन् 1919 में की गई थी। भारत इस संगठन का संस्थापक सदस्य रहा है।
- इस संगठन का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में स्थित है।
- वर्तमान में 187 देश इस संगठन के सदस्य हैं, जिनमें से 186 देश संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से हैं तथा एक अन्य दक्षिणी प्रशांत महासागर में अवस्थित ‘कुक्स द्वीप’ (Cook's Island) है।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 1969 में इसे प्रतिष्ठित ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ प्रदान किया गया था।