भारतीय अर्थव्यवस्था
विश्व रोज़गार और सामाजिक आउटलुक: रुझान 2024
- 13 Jan 2024
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), बेरोज़गारी, श्रम बाज़ार, G20 देश, अनौपचारिक कार्य। मेन्स के लिये:विश्व रोज़गार और सामाजिक आउटलुक: रुझान 2024। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने विश्व रोज़गार और सामाजिक आउटलुक: रुझान 2024 रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि वैश्विक बेरोज़गारी दर वर्ष 2024 में बढ़ने वाली है और बढ़ती असमानताएँ एवं स्थिर उत्पादकता चिंता का कारण हैं।
रिपोर्ट के मुख्य तथ्य क्या हैं?
- बिगड़ती आर्थिक स्थितियों के बीच लचीलापन:
- बिगड़ती आर्थिक स्थितियों के बावजूद, वैश्विक श्रम बाज़ारों ने बेरोज़गारी दर और नौकरियों के अंतर दर (रोज़गार रहित व्यक्तियों की संख्या जो नौकरी खोजने में रुचि रखते हैं) दोनों में सुधार के साथ आश्चर्यजनक लचीलापन दिखाया है।
- वैश्विक बेरोज़गारी रुझान:
- वर्ष 2023 में वैश्विक बेरोज़गारी दर 5.1% थी, जो वर्ष 2022 की तुलना में मामूली सुधार है।
- हालाँकि रिपोर्ट में श्रम बाज़ार के बिगड़ते परिदृश्य का अनुमान लगाया गया है, वर्ष 2024 में अतिरिक्त 20 लाख श्रमिकों के नौकरियों की तलाश करने की उम्मीद है, जिससे वैश्विक बेरोज़गारी दर 5.2% तक बढ़ जाएगी।
- असमान पुनर्प्राप्ति:
- महामारी से उबरना असमान है, नई कमज़ोरियों और कई संकटों के कारण व्यापक सामाजिक न्याय की संभावनाएँ कम हो रही हैं।
- बेरोज़गारी दर और नौकरियों के अंतर दर दोनों के संदर्भ में, उच्च एवं निम्न आय वाले देशों के बीच मतभेद बने रहते हैं।
- वर्ष 2023 में उच्च आय वाले देशों में बेरोज़गारी अंतराल दर 8.2% था जबकि निम्न आय वाले देशों में यह 20.5% थी।
- इसी प्रकार र्ष 2023 में उच्च आय वाले देशों में बेरोज़गारी दर 4.5% पर बनी रही जबकि कम आय वाले देशों में यह 5.7% थी।
- आय असमानता में वृद्धि:
- आय असमानता में वृद्धि हुई है तथा अधिकांश G20 देशों में प्रयोज्य आय में गिरावट आई है।
- वास्तविक प्रयोज्य आय में कमी को कुल मांग तथा अधिक निरंतर आर्थिक सुधार के लिये एक नकारात्मक कारक के रूप में देखा जाता है।
- प्रयोज्य आय निवल आय प्रदर्शित करती है। यह करों के बाद शेष राशि को संदर्भित करती है।
- आय असमानता में वृद्धि हुई है तथा अधिकांश G20 देशों में प्रयोज्य आय में गिरावट आई है।
- कामकाज़ी गरीबी की स्थिति:
- वर्ष 2020 के बाद संबद्ध क्षेत्र में तेज़ी से गिरावट के बावजूद अत्यधिक गरीबी में रहने वाले श्रमिकों की संख्या (क्रय शक्ति समता के संदर्भ में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 2.15 अमेरिकी डॉलर से कम आय) वर्ष 2023 में लगभग 1 मिलियन बढ़ गई।
- मध्यम निर्धनता (PPP के संदर्भ में प्रति व्यक्ति प्रति दिन USD3.65 से कम आय) में रहने वाले श्रमिकों की संख्या 2023 में 8.4 मिलियन बढ़ गई।
- कामकाज़ी गरीबी एक चुनौती के रूप में बनी रहने की संभावना है।
- अनौपचारिक कार्य दरों की स्थिति:
- अनौपचारिक कार्य की दरों में स्थिरता रहने की उम्मीद है जो वर्ष 2024 में वैश्विक कार्यबल का लगभग 58% है।
- श्रम बाज़ार का असंतुलन:
- महामारी से पहले श्रम बाज़ार में भागीदारी की दर की वापसी विभिन्न समूहों के बीच भिन्न-भिन्न रही है।
- महिलाओं की भागीदारी में तेज़ी से वापसी हुई है, परंतु लैंगिक अंतर अभी भी बना हुआ है, विशेषकर उभरते और विकासशील देशों में।
- .युवा बेरोज़गारी दर और NEET (रोज़गार, शिक्षा या प्रशिक्षण में नहीं) श्रेणी उच्च बनी हुई है, जिससे दीर्घकालिक रोज़गार संभावनाओं के लिये चुनौतियां खड़ी हो रही हैं।
- उत्पादकता में कमी:
- महामारी के बाद थोड़े समय के लिये उत्पादकता में वृद्धि तो देखी गई किंतु श्रम उत्पादकता पिछले दशक में देखे गए निम्न स्तर पर लौट आई है।
- कौशल की कमी और बड़े डिजिटल एकाधिकार के प्रभुत्व सहित बाधाओं के साथ, तकनीकी प्रगति और बढ़े हुए निवेश के बावजूद उत्पादकता वृद्धि धीमी बनी हुई है।
- अनिश्चित परिदृश्य और संरचनात्मक चिंताएँ:
- हाल ही में देखे गए असंतुलन केवल महामारी का परिणाम मात्र नहीं है बल्कि संरचनात्मक चुनौतियाँ भी इसका कारण हो सकती हैं। कार्यबल संबंधी चुनौतियाँ व्यक्तिगत आजीविका और व्यवसाय दोनों के लिये खतरा पैदा करती हैं।
- गिरते जीवन स्तर, कमज़ोर उत्पादकता, निरंतर मुद्रास्फीति और अधिक असमानता सामाजिक न्याय तथा सतत् पुनर्प्राप्ति के प्रयासों को क्षीण करती है। रिपोर्ट इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से और शीघ्रता से निपटने की आवश्यकता पर जोर देती है।
- सकारात्मक वास्तविक मज़दूरी:
- भारत और तुर्की में वास्तविक मज़दूरी अन्य G20 देशों की तुलना में "सकारात्मक" है, लेकिन उपलब्ध डेटा 2021 के सापेक्ष 2022 का संदर्भ देता है। इसका तात्पर्य यह है कि वैश्विक चुनौतियों के बावजूद, भारत में वेतन वृद्धि मुद्रास्फीति से आगे निकलने में कामयाब रही है, जिससे वास्तविक मज़दूरी में सुधार में योगदान मिला है।
- अन्य G20 देशों में वास्तविक मज़दूरी में गिरावट देखी गई; गिरावट विशेष रूप से ब्राज़ील (6.9%), इटली (5%) और इंडोनेशिया (3.5%) में देखी गई।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन क्या है?
- परिचय:
- इसे वर्ष 1919 में प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त करने वाली वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में बनाया गया था, इस विश्वास को प्रतिबिंबित करने के लिये कि सार्वभौमिक तथा स्थायी शांति केवल तभी प्राप्त की जा सकती है जब यह सामाजिक न्याय पर आधारित हो।
- यह वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी बन गई।
- यह एक त्रिपक्षीय संगठन है, जो अपनी तरह का एकमात्र संगठन है जो अपने कार्यकारी निकायों में सरकारों, नियोक्ताओं एवं श्रमिकों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाता है।
- इसे वर्ष 1919 में प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त करने वाली वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में बनाया गया था, इस विश्वास को प्रतिबिंबित करने के लिये कि सार्वभौमिक तथा स्थायी शांति केवल तभी प्राप्त की जा सकती है जब यह सामाजिक न्याय पर आधारित हो।
- सदस्य:
- कुल 187 सदस्य देशों के साथ भारत ILO का संस्थापक सदस्य है।
- 2020 में भारत ने ILO के शासी निकाय की अध्यक्षता ग्रहण की।
- मुख्यालय:
- जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड
- पुरस्कार:
- वर्ष1969 में, ILO को राष्ट्रों के बीच भाईचारा और शांति में सुधार करने, श्रमिकों के लिये सभ्य कार्य और न्याय प्रदान करने के साथ-साथ अन्य विकासशील देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिये नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कन्वेंशन 138 और 182 किससे संबंधित हैं? (2018) (a) बाल श्रम उत्तर: (a) |