वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स रिपोर्ट | 05 Jun 2021
प्रिलिम्स के लियेवर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स रिपोर्ट, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन मेन्स के लियेरिपोर्ट संबंधी मुख्य तथ्य, श्रम बाज़ार पर महामारी का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने ‘वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स रिपोर्ट-2021’ जारी की है।
प्रमुख बिंदु
कोविड का प्रभाव
- कोरोना महामारी ने दुनिया भर में 100 मिलियन से अधिक श्रमिकों को गरीबी के दुष्चक्र में धकेल दिया है। महामारी के कारण इस वर्ष के अंत में 75 मिलियन नौकरियों की कमी की संभावना है।
- वर्ष 2019 के सापेक्ष अनुमानित अतिरिक्त 108 मिलियन श्रमिक अब अत्यंत या मध्यम गरीब हैं, जिसका अर्थ है कि क्रय शक्ति समानता के संदर्भ में ऐसे लोगों और उनके परिवार के सदस्यों को प्रतिदिन 3.20 अमेरिकी डॉलर (यह निम्न-मध्यम-आय वाले देशों के लिये विश्व बैंक की गरीबी रेखा है) से कम पर जीवनयापन करना पड़ता है।
- गरीबी दर में तेज़ी से हो रही वृद्धि काम के घंटे खोने के कारण है, क्योंकि विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में लॉकडाउन लागू किया गया है और अधिकांश लोगों की नौकरी छूट गई है या फिर उनकी आय में कमी आ रही है।
- गरीबी के उन्मूलन की दिशा में बीते पाँच वर्षों में की गई समग्र प्रगति व्यर्थ हो गई है, क्योंकि गरीबी दर अब वर्ष 2015 के स्तर पर वापस आ गई है।
बढ़ती असमानता
- महामारी ने श्रम बाज़ार में मौजूद असमानताओं को और बढ़ा दिया है, जिसमें कम-कुशल श्रमिक, महिलाएँ, युवा या प्रवासी सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
कार्य-समय का नुकसान
- बहुत से लोगों के काम के घंटों में नाटकीय रूप से कटौती देखी गई है।
- वर्ष 2020 में वर्ष 2019 की चौथी तिमाही की तुलना में वैश्विक कामकाजी घंटों का 8.8 प्रतिशत का नुकसान हुआ, जो कि 255 मिलियन पूर्णकालिक रोज़गार के समान है।
- यद्यपि स्थिति में सुधार हुआ है, किंतु वैश्विक काम के घंटों में बढ़ोतरी होने में अभी काफी समय लगेगा और विश्व में अभी भी इस वर्ष के अंत तक 100 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर नुकसान होने की आशंका है।
बेरोज़गारी दर
- वर्ष 2020-21 में बेरोज़गारी दर 6.3 प्रतिशत है, जो कि अगले वर्ष (2021-22) तक गिरकर 5.7 प्रतिशत हो जाएगी, किंतु तब भी यह पूर्व-महामारी (वर्ष 2019) दर यानी 5.4 प्रतिशत से अधिक है।
महिला बेरोज़गारी
- महिलाओं के अवैतनिक कार्य के समय में वृद्धि हुई है और उन्हें अनुपातहीन रोज़गार के नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
- इसके अलावा महिलाओं पर बच्चों की देखभाल और होम स्कूलिंग गतिविधियों का भी असमान बोझ पड़ा है।
- नतीजतन पुरुषों के लिये 3.9 प्रतिशत की तुलना में महिलाओं के लिये रोज़गार में 5 प्रतिशत की गिरावट आई है।
श्रमिकों पर प्रभाव
- श्रमिकों और उद्यमों पर महामारी के दीर्घकालिक प्रभाव देखने को मिलेंगे।
- अतः इसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अनुमानित रोज़गार वृद्धि दर महामारी के कारण उत्पन्न संकट से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं होगी।
सिफारिश
- दीर्घावधिक नुकसान को रोकने के लिये समेकित नीतिगत प्रयासों की आवश्यकता है।
- रिपोर्ट में विकासशील देशों के लिये टीकों और वित्तीय सहायता की वैश्विक पहुँच सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई है, जिसमें ऋण पुनर्गठन या सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को बढ़ाना शामिल है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
परिचय
- इस संगठन को वर्ष 1919 में वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में बनाया गया था, जो कि इस विश्वास के साथ गठित किया गया था कि सार्वभौमिक और स्थायी शांति तभी प्राप्त की जा सकती है जब यह सामाजिक न्याय पर आधारित हो।
- वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी बन गई।
- यह एक त्रिपक्षीय संगठन है, जो अपने कार्यकारी निकायों में सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाता है।
सदस्य
- भारत ILO का संस्थापक सदस्य है और इसमें कुल 187 सदस्य हैं।
- वर्ष 2020 में भारत ने ILO के शासी निकाय की अध्यक्षता ग्रहण की है।
मुख्यालय
- जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड)
पुरस्कार
- वर्ष 1969 में ILO को राष्ट्रों के बीच भाईचारे और शांति के संदेश को बढ़ावा देने, श्रमिकों के लिये बेहतर कार्य एवं न्याय प्रणाली स्थापित करने और अन्य विकासशील देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिये नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
आगे की राह
- कोविड-19 महामारी न केवल एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है, बल्कि यह एक रोज़गार और मानव संकट भी है।
- यदि नौकरियों के सृजन में तेज़ी लाने, समाज के संवेदनशील वर्गों का समर्थन करने और आर्थिक रिकवरी को प्रोत्साहित करने के संबंध में मज़बूत प्रयास नहीं किये जाते हैं तो मानव एवं आर्थिक क्षमता के नुकसान और उच्च गरीबी एवं असमानता के रूप में महामारी का प्रभाव वर्षों तक देखने को मिल सकता है।
- अतः उत्पादक रोज़गार के अवसर पैदा करने और सबसे संवेदनशील लोगों के लिये दीर्घकालिक श्रम बाज़ार की संभावनाओं को बढ़ावा देने हेतु तत्काल प्रयास किया जाना आवश्यक है।