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सामाजिक न्याय

भारत की कार्यस्थल संस्कृति

  • 06 Nov 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ILO, समवर्ती सूची,  वेतन संहिता, 2019, औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य शर्तें संहिता, 2020

मेन्स के लिये:

भारत की कॉर्पोरेट संस्कृति: नियामक ढाँचा, सिफारिशें और चुनौतियाँ 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

अन्ना सेबेस्टियन नामक चार्टर्ड अकाउंटेंट की दुखद मौत, जो कथित तौर पर कार्य से संबंधित तनाव (Work-Related Stress) के कारण हुई, भारत में विषाक्त कार्यस्थल संस्कृति को संबोधित करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है, तथा कर्मचारियों के निरंतर शोषण पर प्रकाश डालती है।

नोट:

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत विश्व में सर्वाधिक कार्य करने वाले देशों में से एक है, जहाँ श्रमिक औसतन प्रति सप्ताह 46.7 घंटे कार्य करते हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, भारत का 51% कार्यबल प्रति सप्ताह 49 या उससे अधिक घंटे कार्य करता है, जिससे विश्व भर में विस्तारित कार्य घंटों के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है।

भारत की कार्यस्थल संस्कृति से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • विषाक्त कार्य वातावरण (Toxic Work Environment):
    • कई निगमों/कंपनियों में लंबे समय तक कार्य करना और तनाव सामान्य बात हो गई है, जो लाभ मार्जिन एवं लाभ-हानि पर निरंतर ध्यान केंद्रित करने से प्रेरित है।
    • लागत में कटौती करते हुए कर्मचारियों से अत्यधिक कार्य कराने की प्रथा अक्सर बर्नआउट का कारण बनती है, क्योंकि कंपनियाँ "संगठनात्मक तनाव (Organisational Stretch)" और "परिवर्तनशील वेतन (Variable Pay)" जैसे शब्दों का उपयोग करके शोषण को उचित ठहराती हैं।
  • कार्य संस्कृति संबंधी मुद्दों पर प्रतिक्रियाएँ: 
    • आचार संहिता और कार्य-जीवन संतुलन नीतियों जैसी कॉर्पोरेट पहलों में अक्सर संतुलन का अभाव होता है, जिससे कार्यस्थल पर विषाक्तता के मूल कारणों का प्रभावी ढंग से समाधान नहीं हो पाता।
  • अप्रभावी नेतृत्व और जवाबदेही का अभाव:
    • कार्यस्थल पर उत्पीड़न या अपमानजनक भाषा का सामना करने वाले कर्मचारियों के लिये विधिक सहायता का अभाव एक ऐसा वातावरण विकसित करता है, जहाँ ऐसे अनुचित व्यवहार बिना रोक-टोक जारी रह सकते हैं।
    • कई कंपनियों में निष्पादन मूल्यांकन प्रणालियों को पक्षपातपूर्ण माना जाता है, जिसके कारण कर्मचारियों में अनुचित व्यवहार की भावना उत्पन्न होती है, जिससे असंतोष और विषाक्त वातावरण बना रहता है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र बनाम निजी क्षेत्र की गतिशीलता:
    • सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन आमतौर पर अधिक मज़बूत नौकरी सुरक्षा और अधिक सहायक कार्य वातावरण प्रदान करते हैं, तथा इसमें संघ की भी मदद मिलती है जो कर्मचारियों की शिकायतों को दूर करने में मदद करती हैं।
      • यह अंतर एक स्वस्थ कार्य संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये निजी क्षेत्र में बेहतर कार्यप्रणाली की आवश्यकता के बारे में प्रश्न उठाता है।
  • लंबे समय तक काम करने से जुड़ी मौतें: 
    • वर्ष 2016 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अनुमान लगाया था कि लंबे समय तक कार्य करने के कारण स्ट्रोक और इस्केमिक हृदय रोग के कारण 745,000 मौतें हुईं, जो कि वर्ष 2000 से 29% की वृद्धि को दर्शाता है।
    • 60-79 वर्ष की आयु वाले वे श्रमिक जो 45 से 74 वर्ष की आयु के बीच निरंतर प्रति सप्ताह 55 घंटे से अधिक कार्य करते थे, उनकी मृत्यु दर अधिक थी।
  • GDP और कार्य घंटों के बीच संबंध:
    • ILO ने खुलासा किया है कि कम कार्य घंटे वाले देशों में अक्सर प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद अधिक होता है। नॉर्वे (33.7 घंटे) और नीदरलैंड (31.6 घंटे) जैसे देश कामगारों की भलाई को प्राथमिकता देते हुए कम कार्य सप्ताह अवधारणा को बनाए रखते हैं, जिससे कुल मिलाकर आर्थिक समृद्धि बढ़ती है। 
      • इसके विपरीत, भारत और भूटान जैसे देशों में कार्य घंटे अधिक हैं, लेकिन प्रति व्यक्ति आय कम है, जिससे पता चलता है कि आर्थिक सफलता के लिये अधिक कार्य घंटे आवश्यक नही हैं।

अन्य देशों में कार्यस्थल संस्कृति

  • संयुक्त राज्य अमेरिका:
    • लंबे समय तक कार्य करने की मांग वाली कार्य संस्कृति को बनाए रखते हुए लचीलेपन (दूरस्थ कार्य, लचीले घंटे आदि) को प्रोत्साहित करना।
    • बोनस और स्टॉक विकल्पों के साथ प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, लेकिन इससे प्रतिस्पर्द्धा और आय असमानता उत्पन्न होती है।
    • मज़बूत कानूनी संरक्षण, हालाँकि श्रम कानून विभिन्न राज्य में अलग-अलग हैं साथ ही कुछ क्षेत्रों में संघ कमज़ोर हैं।
  • यूरोप:
    • सख्त श्रम कानूनों (जैसे, फ्राँस में 35 घंटे का कार्य सप्ताह) के साथ कार्य-जीवन संतुलन पर ज़ोर दिया गया।
    • अधिक कर्मचारी सुरक्षा के साथ सम्मानजनक और सहयोगात्मक कॉर्पोरेट संस्कृति।
    • अधिक न्यायसंगत मुआवज़ा और लाभ; मजबूत श्रम सुरक्षा और मज़बूत संघ।

भारत में श्रमिकों के संबंध में नियामक ढाँचा क्या है?

  • संवैधानिक ढाँचा: संविधान के तहत, श्रम संबंधी विषय समवर्ती सूची में है तथा इसलिये, केंद्र और राज्य दोनों सरकारें केंद्र के लिये आरक्षित कुछ मामलों के अधीन कानून बनाने के लिये सक्षम हैं।
  • न्यायिक व्याख्या: रणधीर सिंह बनाम भारत संघ, 1982 के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “भले ही संविधान में 'समान कार्य के लिये समान वेतन' के सिद्धांत को परिभाषित नहीं किया गया है, यह एक लक्ष्य है जिसे अनुच्छेद 14, 16 और 39 (c) के माध्यम से प्राप्त किया जाना है।
    • अनुच्छेद 14: यह भारत के राज्यक्षेत्र में कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण का प्रावधान करता है।
    • अनुच्छेद 16: यह सार्वजनिक रोज़गार के मामलों में समान अवसर के अधिकार की बात करता है।
    • अनुच्छेद 39(c):  यह सुनिश्चित करता है कि धन और उत्पादन साधनों का सर्वसाधारण के लिये अहितकारी "संकेंद्रण" न हो।
  • विधायी ढाँचा: सरकार ने कार्य करने की स्थितियों में सुधार और श्रम कानूनों को सरल बनाने के लिये कई विधायी और प्रशासनिक पहल की हैं। हाल ही में 4 श्रम संहिताओं का समेकन किया गया है, जिसे अभी लागू किया जाना है।
  • श्रम संहिता:
  • कारखाना अधिनियम, 1948: 
    • कारखाना अधिनियम की धारा 54 के अनुसार, किसी भी दिन दैनिक कार्य घंटे नौ घंटे से अधिक नहीं हो सकते।
      • प्रत्येक कर्मचारी को कम-से-कम आधे घंटे का अंतराल अवकाश प्राप्त करने का अधिकार है तथा ऐसे अंतराल से पहले 5 घंटे से अधिक कार्य नहीं करना चाहिये।
    • अधिनियम की धारा 51 में कहा गया है कि किसी भी कर्मचारी से एक सप्ताह में 48 घंटे से अधिक काम नहीं कराया जा सकता।
  • न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948: 
    • प्रति सप्ताह आवश्यक 9 या 48 घंटों से अधिक किसी भी घंटे या घंटे के भाग के लिये, ओवरटाइम वेतन वास्तविक दर से दोगुना होना चाहिये।

भारत में कार्य संस्कृति से संबंधित कौन-से सुधार किये जा सकते हैं?

  • नियामक ढाँचा:
    • कार्यस्थल पर विषाक्त संस्कृति को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये एक विनियामक ढाँचा आवश्यक है। इसमें कॉर्पोरेट बोर्ड को कार्यस्थल की स्थितियों और कर्मचारियों के कल्याण के लिये जवाबदेह बनाना शामिल हो सकता है।
    • कर्मचारियों के साथ व्यवहार और कार्यनिष्पादन मूल्यांकन के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करने से दुर्व्यवहारपूर्ण व्यवहारों को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • निगमों में सांस्कृतिक बदलाव:
    • कंपनियों को सम्मान और निष्पक्षता की संस्कृति को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिये, जहाँ श्रमिकों के योगदान को महत्त्व तथा उचित मुआवज़ा दिया जाए।
    • कार्य-जीवन संतुलन और ईमानदारी से कर्मचारी भागीदारी को बढ़ाने के उद्देश्य से की जाने वाली पहलों से एक स्वस्थ कार्य वातावरण को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • जागरूकता और समर्थन:
    • कार्यस्थल संस्कृति के मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने और विचार-विमर्श करने से कर्मचारियों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने और अपने अधिकारों की मांग को सशक्त बनाया जा सकता है।
    • भारत में भी इसी प्रकार के अधिकार अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों से प्रेरित होकर प्राप्त किये जा सकते हैं, जो श्रमिकों को मानसिक तनाव के लिये अधिकारों की मांग करने का अवसर प्रदान करते हैं।
  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR):
    • निगमों को अपनी कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व रणनीतियों में कार्यस्थल संस्कृति में सुधार के प्रति प्रतिबद्धता को शामिल करना चाहिये, तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि कर्मचारियों का कल्याण दीर्घकालिक सफलता का अभिन्न अंग है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: भारत में कार्यस्थल संस्कृति से जुड़े प्रमुख मुद्दों पर चर्चा कीजिये। कर्मचारी-नियोक्ता संबंधों को बेहतर बनाने के लिये कौन-से विनियामक सुधार आवश्यक हैं?

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