घास के मैदानों में वृक्षों का अतिक्रमण | 06 Aug 2024

प्रिलिम्स के लिये:

कार्बन पृथक्करण, जलवायु परिवर्तन

मेन्स के लिये:

वन संसाधनों का महत्त्व एवं संसाधनों के संरक्षण के उपाय।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

वृक्षावरण में वृद्धि को प्रायः जैवविविधता संरक्षण के सकारात्मक परिणाम तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक अत्यंत आवश्यक प्रयास के रूप में देखा जाता है।

  • हालाँकि विटवाटरसैंड, केपटाउन और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि सवाना तथा घास के मैदानों जैसे खुले पारिस्थितिकी तंत्रों में पेड़ों की अधिक संख्या के कारण स्थानीय घास के मैदानों में निवास करने वाले पक्षियों की संख्या में काफी कमी आई है।

अध्ययन के क्या निष्कर्ष हैं?

  • घास के मैदान और सवाना:
    • घास के मैदान और सवाना उष्णकटिबंधीय एवं समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाए जाने वाले विविध पारिस्थितिकी तंत्र हैं जो पृथ्वी के लगभग 40% भू-भाग पर फैले हुए हैं।
    • ये पारिस्थितिकी तंत्र विभिन्न प्रजातियों का निवास स्थान हैं, जिनमें हाथी और गैंडे जैसे शाकाहारी जानवर, बस्टर्ड तथा फ्लोरिकन जैसे घास के मैदान में रहने वाले पक्षी शामिल हैं। अपने महत्त्व के बावजूद, ये आवास विभिन्न खतरों के कारण तेज़ी से कम हो रहे हैं।
  • वृक्षों का अतिक्रमण:
    • वृक्षों के अतिक्रमण से तात्पर्य खुले आवासों के क्रमिक परिवर्तन से है, जो वृक्ष और  झाड़ियों के उच्च घनत्व वाले क्षेत्रों में परिणत हो जाते हैं।   
    • इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप पारिस्थितिकी तंत्र में समरूपता आती है, तथा विविधतापूर्ण घासयुक्त अधोतल का एक समान वृक्षावरण (काष्ठीय पौधों के रूप में) में रूपांतरण होता है।
    • जलवायु परिवर्तन, वायुमंडलीय CO2 में वृद्धि, चारण और अग्नि जैसी प्राकृतिक विक्षोभ व्यवस्थाओं में व्यवधान जैसे कारक इस घटना में योगदान करते हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
    • वृक्षों के आवरण में वृद्धि से घास के मैदानों के पारिस्थितिकी तंत्र पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।
    • उच्च CO2 स्तर गहरी जड़ों वाले काष्ठीय पौधों के विकास को प्रोत्साहित करते हैं, जो घास के मैदानों को छाया प्रदान करते हैं तथा उन्हें सीमित करते हैं।
    • वनस्पति में यह परिवर्तन मृदा की स्थितियों और जीव-जंतुओं के संघों को परिवर्तित कर देता है जिससे घास के मैदानों की प्रजातियों में गिरावट आती है और पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता है।
  • वैश्विक और स्थानीय प्रभाव:
    • दक्षिण अमेरिका में अग्नि शमन एक प्रमुख कारण है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका में बढ़ी हुई CO2 तथा वर्षा में भिन्नता महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • भारत में घास के मैदानों को प्राकृतिक अतिक्रमण और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कार्यक्रमों दोनों से खतरा है।
    • अध्ययनों से पता चला है कि भारत और नेपाल के राष्ट्रीय उद्यानों में वनों का अतिक्रमण काफी बढ़ गया है, जिसके कारण पिछले तीन दशकों में घास के मैदानों में 34% की कमी आई है तथा वृक्षावरण में 8.7% की वृद्धि हुई है।
  • मानवीय प्रभाव:
    • औपनिवेशिक युग की संरक्षण नीतियों और आधुनिक वृक्षारोपण कार्यक्रमों सहित मानवीय गतिविधियों ने वृक्षों के अतिक्रमण को बढ़ा दिया है।
    • ऐतिहासिक नीतियों ने खुले पारिस्थितिकी तंत्रों को "बंजर भूमि" के रूप में देखा, जिसके कारण उन्हें काष्ठ और कृषि उपयोग के लिये परिवर्तित किया गया। वर्तमान में कार्बन पृथक्करण पर ध्यान केंद्रित करने से इन पर और दबाव पड़ रहा है। 
  • शमन और संरक्षण:
    • वृक्षों के अतिक्रमण के मुद्दे से निपटने के लिये इसके प्रभाव पर अधिक साक्ष्य एकत्र करना, दीर्घकालिक पारिस्थितिक निगरानी करना और खुले पारिस्थितिक तंत्रों को गलत तरीके से वर्गीकृत करने वाली पुरानी औपनिवेशिक शब्दावलियों को चुनौती देना महत्त्वपूर्ण है।
    • प्रभावी संरक्षण रणनीतियों में घास के मैदानों के पारिस्थितिक मूल्य पर विचार किया जाना चाहिये तथा ऐसी प्रथाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिये जो उनकी जैव विविधता और संधारणीयता को बनाए रखें।

घास के मैदानों के घटने का क्या प्रभाव है?

  • पारिस्थितिकी प्रभाव:
    •  जैवविविधता का नुकसान: घास के मैदानों में पौधों, कीटों, पक्षियों और स्तनधारियों की विविध प्रजातियों निवास करती हैं। उनके ह्रास से जैव-आवास का नुकसान होता है, जिससे उन प्रजातियों को खतरा होता है जो इन वातावरणों के लिये विशेष रूप से अनुकूलित हैं।
    • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में व्यवधान: घास के मैदान महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करते हैं, जैसे मृदा स्थिरीकरण, जल निस्पंदन और कार्बन पृथक्करण।
      • उनके क्षरण से ये सेवाएँ कम हो सकती हैं, जिससे मृदा स्वास्थ्य, जल गुणवत्ता और जलवायु विनियमन प्रभावित हो सकता है।
      • उनकी कमी से वायुमंडलीय CO2 का स्तर बढ़ सकता है, जिससे जलवायु परिवर्तन और भी गंभीर हो सकता है।
    • वनाग्नि की बदलती प्रवृति: घास के मैदान आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं को रोकने में सहायता करते हैं। जब घास के मैदान कम होते हैं तो आग लगने की आवृत्ति और तीव्रता बदल सकती है जिससे पारिस्थितिकी तंत्र की गतिशीलता में और बदलाव आ सकता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव:
    • मृदा अपरदन में वृद्धि: घास के मैदानों की मूल तंत्र मृदा को एक साथ बाँधने का कार्य करती हैं। उनके बिना मृदा अपरदन की संभावना अधिक होती है, जिससे ऊपरी मृदा और भूमि का क्षरण होता है।
    • परिवर्तित जल चक्र: घास के मैदान जल रिसाव और अपवाह को नियंत्रित करके जल विज्ञान चक्र को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके नष्ट होने से स्थानीय और क्षेत्रीय जल चक्र में परिवर्तन हो सकता है, जिससे संभावित रूप से बाढ़ आ सकती है या जल की उपलब्धता कम हो सकती है।
  • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:
    • आजीविका पर प्रभाव: कई समुदाय पशु-चारण और अन्य कृषि गतिविधियों के लिये घास के मैदानों पर निर्भर हैं। घास के मैदानों में कमी से इन आजीविकाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे चरवाहों और किसानों के लिये आर्थिक कठिनाई उत्पन्न हो सकती है।
    • कृषि उत्पादकता में कमी: चरागाहों के नष्ट होने से मृदा की उर्वरता और उत्पादकता में कमी आ सकती है, जिससे फसल की उपज तथा खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।

आगे की राह

  • संरक्षण एवं पुनरुद्धार प्रयास: शेष घास के मैदानों को विकास एवं अन्य खतरों से बचाने के लिये संरक्षित क्षेत्रों एवं संरक्षण रिज़र्वों को नामित करना।
  • क्षीण भूमि को पुनः स्थापित करना: क्षीण घासभूमि के पुनर्वास के लिये पारिस्थितिकी पुनर्स्थापना परियोजनाओं को क्रियान्वित करना, जिसमें देशी घासों को पुनः रोपना और आक्रामक प्रजातियों को नियंत्रित करना शामिल है।
  • सतत् कृषि को बढ़ावा देना: मिट्टी की सेहत बनाए रखने और कटाव को रोकने के लिये मिट्टी की अनियमितता को कम करने वाली प्रथाओं को प्रोत्साहित करना, जैसे बिना जुताई वाली खेती तथा चक्रीय चराई।
  • नियंत्रित चराई को लागू करना: चराई प्रबंधन योजनाओं को विकसित और लागू करना जो अतिचारण को रोकती हैं और चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र की प्राकृतिक पुनर्प्राप्ति अवधि की अनुमति देती हैं।
  • आक्रामक पौधों पर नियंत्रण: उन आक्रामक प्रजातियों की निगरानी और प्रबंधन करना जो देशी/स्थानीय घासों को नुक्सान करने के साथ पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बाधित करती हैं।
  • भूमि उपयोग विनियमों को लागू करना: ऐसी नीतियों और विनियमों को सुदृढ़ करना तथा लागू करना जो घास के मैदानों को कृषि या शहरी उपयोग में बदलने से रोकते हैं।
  • संरक्षण के लिये प्रोत्साहन सहायता: चरागाह संरक्षण और टिकाऊ भूमि प्रबंधन प्रथाओं में संलग्न भूमि मालिकों को वित्तीय प्रोत्साहन और सहायता प्रदान करना।
  • स्थानीय समुदायों को शामिल कीजिये: स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में शामिल करना, जिसमें घास के मैदानों के मूल्य के बारे में शिक्षा देना और उन्हें पुनरुद्धार परियोजनाओं में शामिल करना शामिल है।

दृष्टि मुख्य प्रश्न:

प्रश्न: घास के मैदानों में कमी वैश्विक जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के लिये एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय है। पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता पर घास के मैदानों में कमी के प्रमुख प्रभावों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. सवाना की वनस्पति में विखरे हुए छोटे वृक्षों के साथ घास के मैदान होते हैं, किंतु विस्तृत क्षेत्र में कोई वृक्ष नहीं होते हैं। ऐसे क्षेत्रों में वन विकास सामान्यतः एक या एकाधिक या कुछ परिस्थितियों के संयोजन के द्वारा नियंत्रित होता है। ऐसी परिस्थितियाँ निम्नलिखित में से कौन-सी हैं? (2021)

  1. बिलकारी प्राणी और दीमक
  2. अग्नि
  3. चरने वाले तृणभक्षी प्राणी (हर्बिवोर्स)
  4. मौसमी वर्षा
  5. मृदा के गुण

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) 1 और 2
(b) 4 और 5
(c) 2, 3 और 4
(d) 1, 3 और 5

उत्तर: (c)