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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

STEM क्षेत्र में महिलाएँ

  • 28 Jan 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

STEM सम्मेलन

मेन्स के लिये:

STEM सम्मेलन का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 23-24 जनवरी को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) के तत्त्वावधान में नई दिल्ली में महिलाओं की विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (Science,Technology, Engenering, Mathmatics- STEM) क्षेत्र में भागीदारी पर अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया।

मुख्य बिंदु:

  • दुनिया भर में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और चिकित्सा क्षेत्र (STEM) में महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक सक्रिय हैं।
  • अब तक 866 नोबेल विजेताओं में भी केवल 53 महिलाएँ शामिल हैं।

इस लिंग असमानता के पीछे का समाजशास्त्र:

  • अध्ययन से पता चलता है कि जब पुरुष और महिलाएँ नौकरियों के लिये श्रम बाज़ार या उन जगहों पर जहाँ उच्च स्तर की योग्यता की ज़रूरत होती है, आवेदन करते हैं तो ऐसी जगहों पर पुरुष स्वंय को अधिक श्रेष्ठ मानते हैं, जबकि समान रूप से योग्य महिलाएँ स्वयं को अधिक विनम्र रूप में प्रस्तुत करती हैं।
  • समूहों में भी जहाँ पुरुष और महिलाएँ सहकर्मियों के रूप में उपस्थित होते है वहाँ भी महिलाओं के विचारों की या तो अनदेखी की जाती है या फिर उनके विचारों को पुरुषों की तुलना में कम गंभीरता से सुना जाता है।
  • परिणामत: कार्यस्थल पर महिलाएँ सार्वजनिक तौर पर बात करते समय अपनी क्षमता को पुरुषों से कम आँकती हैं।

इस असंतुलन का कारण?

इस असंतुलन के मुख्य तीन सामाजिक-मनोवैज्ञानिक कारण हैं जो कि इस प्रकार हैं-

  • पुरुषवादी संस्कृति (Masculine Culture)।
  • पहुँच का अभाव (Lack of Exposure )
  • आत्म-प्रभावकारिता में लैंगिक-अंतर (Gender Gap in Self-Efficacy)।

स्टीरियोटाइप्स और रोल मॉडल:

पुरुषवादी संस्कृति (Masculine Culture)

  • यह असंतुलन पुरुषवादी संस्कृति की रूढ़िवादी सोच के कारण है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष कुछ नौकरियों के लिये ज्यादा उपयुक्त होते हैं, जबकि कुछ कठिन कार्यों के लिये महिलाएँ अधिक नाज़ुक एवं संवेदनशील होती हैं।
  • इसके अलावा महिला रोल मॉडल्स का अभाव है, जिनका महिलाएँ अनुसरण कर सकें।

पहुँच का अभाव (Lack of Exposure )

  • प्रारंभिक स्तर (बचपन में) पर लड़कों की तुलना में लड़कियों की कंप्यूटर, भौतिकी और संबंधित क्षेत्रों में पर्याप्त पहुँच का अभाव।

आत्म-प्रभावकारिता में लैंगिक-अंतर

(Gender Gap in Self-Efficacy)

  • ऊपर वर्णित दो स्टीरियोटाइप्स (पुरुषवादी संस्कृति,पहुँच का अभाव) के कारण आत्म-प्रभावकारिता में लैंगिक-अंतर उत्पन्न होता है।
  • इसके कारण महिलाओं और लड़कियाँ सीमित क्षेत्रों में कार्य करने की सोच से पूर्वाग्रहित हो जाती हैं यह सोच स्पष्ट रूप से पुरुषवादी संस्कृति को प्रतिबिंबित करती है।

भारत में स्थिति:

  • भारत में भी पुरुष मानसिकता की प्रधानता है तथा भारत इस विचार के साथ पितृसत्तात्मक समाज का प्रतिनिधित्व करता है जो यह विश्वास करता है कि महिलाओं को नौकरी करने की आवश्यकता नहीं है, हालाँकि इस धारणा में हाल में परिवर्तन देखा गया है।
  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institutes of Technology-IIT), वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research-CSIR), अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences-AIIMS) तथा चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान के स्नातकोत्तर संस्थान (Postgraduate Institute of Medical Education and Research- PGIs) में 10-15% महिलाएँ ही STEM शोधकर्त्ताओं और संकाय सदस्यों के रूप में शामिल हैं।
  • निजी ‘रिसर्च एंड डेवलपमेंट’ (Research and Development- R&D) प्रयोगशालाओं में भी बहुत कम महिला वैज्ञानिक कार्यरत हैं।

स्रोत: द हिंदू

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