शासन व्यवस्था
न्यायपालिका में महिलाएँ
- 01 Dec 2022
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारत के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट मेन्स के लिये:कम महिला प्रतिनिधियों के कारण, उच्च महिला प्रतिनिधित्त्व का महत्त्व और आगे की राह, महिलाओं से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने इतिहास में तीसरी बार महिला पीठ की नियुक्ति की गई है।
- सर्वोच्च न्यायालय में पहली बार वर्ष 2013 में तथा दूसरी बार वर्ष 2018 में महिला पीठ का निर्माण किया गया था।
न्यायपालिका में महिलाओं की स्थिति:
- पिछले 70 वर्षों के दौरान उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय में महिलाओं के लिये पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व प्रदान करने के लिये कोई महत्त्वपूर्ण प्रयास नहीं किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना के समय से अब तक केवल 11 महिला न्यायाधीश रही हैं तथा कोई भी महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं बनी हैं।
- उच्च न्यायालयों में 680 न्यायाधीशों में से मात्र 83 महिलाएँ हैं।
- अधीनस्थ न्यायाधीशों में केवल 30% महिलाएँ हैं।
कम महिला प्रतिनिधित्त्व के कारण:
- समाज में पितृसत्ता: न्यायपालिका में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्त्व का प्राथमिक कारण समाज में पितृसत्ता है।
- महिलाओं को अक्सर न्यायालयों के भीतर अपमानजनक माहौल का सामना करना पड़ता है। उत्पीड़न, बार और बेंच के सदस्यों से सम्मान की कमी, उनकी राय को अनसुना किया जाना तथा कुछ अन्य दर्दनाक अनुभव हैं जो कई महिला वकीलों द्वारा बताए जाते हैं।
- अपारदर्शी कॉलेजियम कार्यप्रणाली: प्रवेश परीक्षा के माध्यम से भर्ती की विधि के कारण प्रवेश स्तर पर अधिक महिलाएँ निचली न्यायपालिका में प्रवेश करती हैं।
- हालाँकि, उच्च न्यायपालिका में एक कॉलेजियम प्रणाली है, जो अधिक अपारदर्शी है और इसमें पूर्वाग्रह को प्रतिबिंबित करने की अधिक संभावना है।
- महिला आरक्षण नहीं होना: कई राज्यों में निचली न्यायपालिका में महिलाओं के लिये आरक्षण नीति है, जो उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में नहीं है।
- असम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और राजस्थान जैसे राज्यों को इस तरह के आरक्षण का लाभ मिला है क्योंकि उनके पास अब 40-50% महिला न्यायिक अधिकारी हैं।
- पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ उम्र और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के कारक भी अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं से उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों की पदोन्नति को प्रभावित करते हैं।
- मुकदमेबाजी में पर्याप्त महिलाएँ नहीं होना: चूँकि बार से बेंच तक पदोन्नत वकील उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों का एक महत्त्वपूर्ण अनुपात बनाते हैं, इसलिये यह ध्यान देने योग्य है कि महिला अधिवक्ताओं की संख्या अभी भी कम है, जिससे महिला न्यायाधीशों का चयन किया जा सकता है।
- न्यायिक बुनियादी ढाँचा: न्यायिक बुनियादी ढाँचा या इसकी कमी, पेशे में महिलाओं के लिये एक और बाधा है।
- छोटे, भीड़ भरे कोर्ट रूम, टॉयलेट की कमी और चाइल्डकैअर सुविधाओं का आभाव जैसी बाधाएँ शामिल हैं।
उच्च महिला प्रतिनिधित्व का महत्त्व:
- न्यायाधीशों और वकीलों के रूप में महिलाओं की उपस्थिति से न्याय वितरण प्रणाली में काफी सुधार होगा।
- महिलाएँ कानून के समक्ष अलग दृष्टिकोण प्रदर्शित करती हैं, जो उनके अनुभव पर आधारित होता है
- उनके पास पुरुषों और महिलाओं पर कुछ कानूनों के अलग-अलग प्रभावों की अधिक बारीक समझ है।
- महिला न्यायाधीश न्यायालयों की वैधता को बढ़ाती हैं, जिससे एक शक्तिशाली संदेश जाता है कि वे उन लोगों के लिये खुले और सुलभ हैं जिन्हें न्याय की आवश्यकता है।
- यौन हिंसा से जुड़े मामलों में संतुलित और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने के लिये न्यायपालिका में महिलाओं का बेहतर प्रतिनिधित्व होना चाहिये।
आगे की राह:
- उच्च न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों के रूप में महिला सदस्यों के एक निश्चित प्रतिशत के साथ लैंगिक विविधता को बनाए रखने और बढ़ावा देने की आवश्यकता है। यह भारत की लिंग-तटस्थ न्यायिक प्रणाली के विकास का नेतृत्त्व करेगी।
- समावेशिता पर बल देकर और संवेदनशील बनाकर भारत की आबादी के बीच संस्थागत, सामाजिक और व्यवहारिक परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।
- यह कानूनी पेशा, समानता के गेट कीपर के रूप में और अधिकारों के संरक्षण के लिये प्रतिबद्ध एक संस्था के रूप में लैंगिक समानता का प्रतीक होना चाहिये।
- न्यायालय एक नए परिप्रेक्ष्य के अनुसार खुद पर विचार कर सकती है और इसके लंबे समय से चली आ रही जनसांख्यिकी में बदलाव होने पर आधुनिकीकरण और सुधार की संभावना में वृद्धि हो सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. विविधता, समता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये। (2021) |