अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अंतर्धार्मिक विवाह के बाद भी महिला के धर्म में परिवर्तन नहीं
- 11 Dec 2017
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चर्चा में क्यों?
एक मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की है कि कोई महिला अगर किसी दूसरे धर्म के पुरुष के साथ शादी कर ले तो उसका धर्म नहीं बदल जाता। यह टिप्पणी विशेष विवाह अधिनियम 1954 का संदर्भ देते हुए की गई है, जिसके अंतर्गत अलग-अलग धर्म के महिला और पुरुष, शादी के बाद भी अपनी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं को जारी रख सकते हैं।
मामला क्या है?
- गुलरुख एम. गुप्ता (शादी के बाद का नाम) नाम की पारसी महिला ने एक हिंदू पुरुष से शादी कर ली। वलसाड पारसी ट्रस्ट महिला को इस बात की अनुमति नहीं दे रहा था।
- 2010 में इस मामले पर गुजरात हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि गैर धर्म में शादी करने के बाद पारसी धर्म की महिला की पहचान उसके समुदाय में समाप्त हो जाती है।
- साथ ही ट्रस्ट ने महिला को उसके दिवंगत माता-पिता के लिये श्रद्धांजलि अर्पित करने संबंधी रिवाज़ में भी शामिल होने से रोक दिया है।
- महिला ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में 2012 में अपील की थी और कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के अनुसार हिंदू लड़के से शादी के बाद भी पारसी समुदाय में उसकी जगह बनी रहनी चाहिये।
- जब एक पारसी लड़का किसी गैर धर्म की लड़की से शादी करके अपने समुदाय में बना रह सकता है तो फिर एक लड़की से उसके अधिकार क्यों छीन लिये जाते हैं।
मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
- कोई भी कानून इस अवधारणा की पुष्टि नहीं करता कि अंतर-धार्मिक विवाह के बाद किसी महिला का धर्म उसके पति के धर्म में परिवर्तित हो जाता है।
- विशेष विवाह अधिनियम लागू ही इसलिये किया गया है, ताकि अलग-अलग धर्मों को मानने वाले पुरुष और महिला विवाह के बाद भी अपनी धार्मिक पहचान बरकरार रख सकें।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब एक पुरुष किसी अन्य धर्म की महिला के साथ शादी करके अपनी धार्मिक मान्यताओं को जारी रख सकता है और अपने समुदाय में बना रहता है तो आखिर महिला को इस अधिकार से भला कैसे वंचित किया जा सकता है।
- यह पूरी तरह से उस महिला पर निर्भर करता है कि किसी अन्य धर्म के पुरुष से शादी के बाद वह अपनी धार्मिक मान्यताओं को छोड़ना चाहती है या नहीं।
न्यायालय ने ट्रस्ट से कहा है कि वह पारसी महिला को उसके माता-पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दिये जाने की संभावना के बारे में कोर्ट को अवगत कराए। न्यायालय की उपरोक्त टिप्पणियों से यह अभिव्यक्त होता है कि किसी समुदाय के रीति-रिवाज़ और प्रथाएँ किसी व्यक्ति के अधिकारों और संविधान की अवधारणाओं से ऊपर नहीं माने जा सकते।