पवन चक्की वन्य-जीवन के लिये असुरक्षित | 16 Oct 2018
चर्चा में क्यों?
पवन चक्की हरित ऊर्जा स्रोत के रूप में देखी जाती है। लेकिन हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने एक अध्ययन में पाया कि पवन चक्कियाँ टक्कर और शोर की वज़ह से वन्य-जीवन के लिये खतरा पैदा कर रही हैं।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- सलीम अली पक्षी विज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केंद्र के शोधकर्त्ताओं द्वारा द्वि-वर्षीय परियोजना के तहत कर्नाटक में इस विशाल ढाँचे के प्रभाव का अध्ययन किया गया।
- इस अध्ययन में पाया गया है कि पवन चक्की से टकराने की वज़ह से पक्षियों और चमगादड़ों की मौत हो जाती है।
- इसके साथ ही इन क्षेत्रों में रहने वाले पक्षी और स्तनधारी शोर की वज़ह से दूसरे भागों में पलायन कर जाते हैं।
- पवन चक्की के निकट शोर का स्तर 85 डेसिबल तक पहुँच जाता है जो कि एक बड़े ट्रक द्वारा किये गए शोर के बराबर है।
- टरबाइन का ड्रोन जो कि दिन-रात संचालित होता है, 70 डेसिबल पर काम करता है।
- शहरी क्षेत्रों में शोर 55 डेसिबल होता है, यहाँ तक कि औद्योगिक क्षेत्रों में भी 75 डेसिबल ही होता है। जंगलों में शोरगुल 40 डेसिबल से भी कम होता है।
- एक छोटे समयांतराल में ही शोधकर्त्ताओं ने 10 जीवों के टरबाइन से टकराने के साक्ष्य पाए जिसमें 6 चमगादड़ तथा 4 पक्षी थे।
- शोधकर्त्ताओं ने यह भी पाया कि जीव टरबाइन वाले क्षेत्रों में जाने से कतराते हैं। अबाधित क्षेत्रों की तुलना में इस क्षेत्र में मात्र 50 प्रतिशत जीव हैं। स्तनधारी जीव भी इस क्षेत्र में जाने से कतराते हैं।
- शायद यह एकमात्र क्षेत्र है, जहाँ तीन तरह के हिरन- चार सींग वाले,चिंकारा और ब्लैकबक पाए जाते हैं। ये हिरन भी धीरे-धीरे इन इलाकों को छोड़कर जंगल के दूसरे हिस्से में पलायन कर जाते हैं। भेड़िये तथा अन्य दूसरे छोटे माँसाहरी पशु भी इनके पीछे-पीछे दूसरे क्षेत्रों में पलायन कर रहे हैं।
बिजली उत्पादन
- पर्यावरण मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक, कर्नाटक ने अपने जंगल का 37.80 वर्ग किमी. क्षेत्र पवन चक्कियों के लिये समर्पित किया है।
- कर्नाटक नवीकरणीय ऊर्जा विकास लिमिटेड (KREDL) के अनुसार, इस क्षेत्र में कुल 3,857 विंड टरबाइन 4,730 मेगावाट बिजली का उत्पादन करते हैं।
वन्यजीवों का ऐसा स्थानांतरण तथा मानव द्वारा इसकी अनदेखी वन्य-जीवन के साथ संघर्ष को तीव्र कर सकता है। जैव विविधता पर छाए संकटों से निपटने के लिये आपसी समन्वय की आवश्यकता होती है। पवन चक्की द्वारा पक्षियों तथा स्तनधारी जीवों पर पड़ने वाले प्रभावों से निपटने के लिये दिशा-निर्देश के प्रारूप की नितांत आवश्यकता है।