भारत में पवन परियोजनाएँ | 26 Aug 2022
प्रिलिम्स के लिये:पवन ऊर्जा, ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत, सरकारी पहल मेन्स के लिये:पवन ऊर्जा का महत्त्व, पवन ऊर्जा परियोजनाओं में चुनौतियाँ, संबंधित सरकारी पहल |
चर्चा में क्यों?
वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद (GWEC) और नवीकरणीय ऊर्जा में विशेषज्ञता रखने वाली एक परामर्श फर्म MEC इंटेलिजेंस (MEC+) ने बताया है कि भारत में नई पवन ऊर्जा परियोजनाओं की वार्षिक स्थापना वर्ष 2024 तक उच्च स्तर पर होगी तथा उसके बाद इसमें गिरावट की संभावना है।
- वर्ष 2024 के बाद नई परियोजनाओं के पवन-सौर ऊर्जा संकरण (Wind-solar hybrids) की संभावना है।
भारत में पवन ऊर्जा परियोजनाएँ:
- परिचय:
- वर्तमान में पवन ऊर्जा के सामान्यत: दो प्रकार हैं:
- तटवर्ती पवन फार्म जो भूमि पर स्थित पवन टर्बाइनों के व्यापक रूप में स्थापित हैं।
- अपतटीय पवन फार्म जो जल निकायों में/समीप स्थित प्रतिष्ठान हैं।
- वर्तमान में पवन ऊर्जा के सामान्यत: दो प्रकार हैं:
- स्थिति:
- भारत में वर्तमान में पवन ऊर्जा में 13.4 गीगावाट (GW) की संभावित परियोजनाओं को वर्ष 2024 तक स्थापित करने की उम्मीद है।
- भारत में वर्ष 2022 में 3.2 GW, वर्ष 2023 में 4.1 GW, वर्ष 2024 में 4.6 GW तक बढ़ने की उम्मीद है, इसके बाद अगले दो वर्षों में घटकर 4 GW और 3.5 GW हो जाने की संभावना है।
- वर्ष 2017 से भारत में पवन ऊर्जा उद्योग की स्थापना धीमी हो रही है।
- 2021 में केवल 1.45 GW पवन परियोजनाएँ स्थापित की गईं, जिनमें से कई कोविड -19 की दूसरी लहर और आपूर्ति शृंखला से संबंधित व्यवधानों के कारण विलंबित थीं।
- चुनौतियाँ:
- पवन ऊर्जा बाज़ार गुजरात और तमिलनाडु के कुछ सबस्टेशनों के आसपास पवन परियोजनाओं तक केंद्रित है जो सबसे मज़बूत संसाधन क्षमता तथा भूमि की सबसे कम लागत के स्थान हैं।
- हालाँकि आधारभूत ढाँचागत अवसंरचनाओ की कमी की वजह से परियोजना गति धीमी हुई है और यह सौर ऊर्जा की तुलना में अधिक लागत वाला विकल्प बन गया।
- भारत के ट्रैक रिकॉर्ड ने संकेत दिया है कि पवन स्थापना बाज़ार एक विखंडित बाज़ार है।
- वर्ष 2017-2018 से पाइपलाइन में काफी गति से निर्माण किया गया है, लेकिन परियोजना निष्पादन में अत्यधिक देरी ने विकासकर्त्ताओं की धारणाओं को चुनौती दी है।
- COVID-19 महामारी और आपूर्ति शृंखला की बाधाओं के कारण विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOM) के कुल बकाया राशि में भी वृद्धि हुई है।
- RE जनरेटर को बकाया भुगतान दिसंबर 2021 में 73% बढ़कर 19,400 करोड़ रुपए हो गया, जबकि दिसंबर 2020 में यह 11,200 करोड़ रुपए था।
- पवन ऊर्जा बाज़ार गुजरात और तमिलनाडु के कुछ सबस्टेशनों के आसपास पवन परियोजनाओं तक केंद्रित है जो सबसे मज़बूत संसाधन क्षमता तथा भूमि की सबसे कम लागत के स्थान हैं।
- भारत की ऊर्जा क्षमता:
- भारत में लगभग 60 GW पवन ऊर्जा क्षमता विद्यमान है।
- भारत के संदर्भ में पवन ऊर्जा की क्षमता भविष्य में वृद्धि की संभावना व्यक्त की गई है क्योंकि कुछ पुराने पवन ऊर्जा स्टेशनों को पवन टर्बाइनों से प्रतिस्थापित जा सकता है, जिनकी क्षमता अधिक होती है।
- पवन ऊर्जा क्षेत्र का अभी तक पर्याप्त दोहन नहीं हो पाया है, महासागरीय क्षेत्रों में इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु असीम संभावनाएँ विद्यमान हैं।
- वैश्विक स्तर पर इस क्षेत्र में अन्वेषण अभी भी प्रारंभिक अवस्था में ही है।
- भारत के पूर्वी हिस्से में चक्रवातों की बारंबारता पवन उर्जा के विकास में प्रमुख बाधा है।
- संभवत: भारत के पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में पवन ऊर्जा के विकास के लिये पर्याप्त संभावनाएँ विद्यमान हैं।
- भारत के पूर्वी हिस्से में चक्रवातों की बारंबारता पवन उर्जा के विकास में प्रमुख बाधा है।
- वैश्विक स्तर पर इस क्षेत्र में अन्वेषण अभी भी प्रारंभिक अवस्था में ही है।
- भारत लगभग 7,516.6 किलोमीटर लंबी तटरेखा वाला देश है और इसके सभी विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों में पवन ऊर्जा का विकास करने का पर्याप्त अवसर है।
- राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान, चेन्नई द्वारा यह बताया गया है कि गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक से तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश तक एक स्थिर तथा निरंतर वायु के प्रवाह के मामले में पश्चिमी राज्यों में असीम संभावनाएँ हैं।
- वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार तमिलनाडु 9,075 मेगावाट क्षमता के साथ पवन ऊर्जा का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
- भारत में लगभग 60 GW पवन ऊर्जा क्षमता विद्यमान है।
पवन ऊर्जा:
- परिचय:
- गति में वायु द्वारा बनाई गई गतिज ऊर्जा का उपयोग करके विद्युत् उत्पादन किया जाता है। इसे विंड टर्बाइन या पवन ऊर्जा रूपांतरण प्रणाली का उपयोग करके विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
- वायु पहले टर्बाइन के ब्लेड से टकराती है, जिससे वे घूमने लगते हैं और उनसे जुड़ा टर्बाइन भी घूमने लगता है।
- यह एक जनरेटर से जुड़े हुए शाफ्ट को घुमाकर गतिज ऊर्जा को घूर्णी ऊर्जा में बदल देता है जिसके परिणामस्वरूप विद्युत चुंबकत्व के माध्यम से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन होता है।
- घरों, व्यवसायों, स्कूलों आदि में बिज़ली ट्रांसमिशन और वितरण लाइनों के माध्यम से भेजी जाती है।
- वायु से प्राप्त की जा सकने वाली ऊर्जा की मात्रा टर्बाइन के आकार और उसके ब्लेड की लंबाई पर निर्भर करती है।
- वायु से प्राप्त की जा सकने वाली ऊर्जा की मात्रा रोटर के आयामों और हवा की गति के घन के समानुपाती होता है।
- सैद्धांतिक रूप से, जब हवा की गति दोगुनी हो जाती है, तो पवन ऊर्जा क्षमता आठ गुना बढ़ जाती है।
- गति में वायु द्वारा बनाई गई गतिज ऊर्जा का उपयोग करके विद्युत् उत्पादन किया जाता है। इसे विंड टर्बाइन या पवन ऊर्जा रूपांतरण प्रणाली का उपयोग करके विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- विंड टर्बाइन का आविष्कार लगभग एक सदी पूर्व हुआ था।
- 1830 के दशक में विद्युत जनरेटर के आविष्कार के बाद, इंजीनियरों ने विद्युत उत्पादन के लिये पवन ऊर्जा का उपयोग करने का प्रयास करना शुरू कर दिया था।
- पवन ऊर्जा का उत्पादन यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली बार वर्ष क्रमशः 1887 तथा वर्ष 1888 में हुआ था, लेकिन माना जाता है कि आधुनिक पवन ऊर्जा को सबसे पहले डेनमार्क में विकसित किया गया था।
संबंधित पहलें:
- राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति:
- राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, वर्ष 2018 का मुख्य उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों, ट्रांसमिशन अवसंरचना और भूमि के कुशल उपयोग के लिये बड़े ग्रिड से जुड़े पवन-सौर PV हाइब्रिड प्रणालियों को बढ़ावा देने के लिये ढाँचा प्रदान करना है।
- राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति:
- राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को अक्तूबर 2015 में भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में 7,516.6 ी भारतीय तटरेखा के साथ अपतटीय पवन ऊर्जा विकसित करने के उद्देश्य से अधिसूचित किया गया था।
आगे की राह
- सरकारों को नियोजन बाधाओं और ग्रिड कनेक्शन चुनौतियों जैसे मुद्दों से निपटने की ज़रूरत है।
- पवन आधारित उत्पादन क्षमता में वृद्धि को बनाए रखने और बढ़ाने के लिये, नीति निर्माताओं को भूमि आवंटन एवं ग्रिड कनेक्शन परियोजनाओं सहित परमिट देने की प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है।
- बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा परिनियोजन के लिये कार्यबल की योजना एक प्रारंभिक नीतिगत प्राथमिकता होनी चाहिये और ग्रिड में निवेश वर्ष 2030 तक मौजूदा स्तरों से तिगुना होना चाहिये।
- "पवन आपूर्ति शृंखला की नई भू-राजनीति" का सामना करने के लिये अधिक से अधिक सार्वजनिक-निजी भागीदारी की भी आवश्यकता है।
- वस्तुओं और दुर्लभ खनिजों के लिये बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा को दूर करने के लिये मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय नियामक ढाँचे की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs) प्रश्न: देश में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से संबंधित वर्तमान स्थिति और प्राप्त किए जाने वाले लक्ष्यों का विवरण दीजिये। प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED) पर राष्ट्रीय कार्यक्रम के महत्त्व पर संक्षेप में चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2016) |