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सामाजिक न्याय

गर्भपात और पोलैंड में विरोध प्रदर्शन

  • 26 Oct 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम, 1971

मेन्स के लिये

पोलैंड में विरोध प्रदर्शन और उसके कारण, भारत में गर्भपात संबंधी कानून

चर्चा में क्यों?

बीते कुछ दिनों से कानूनी गर्भपात के संबंध में पोलैंड की एक अदालत के निर्णय को लेकर हज़ारों महिलाएँ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रही हैं।

प्रमुख बिंदु

  • न्यायालय का निर्णय
    • 22 अक्तूबर, 2020 को पोलैंड के संवैधानिक न्यायाधिकरण ने अपने एक निर्णय में कहा कि गर्भपात संबंधी पोलैंड का मौजूदा कानून विकृत भ्रूणों (Malformed Foetuses) यानी ऐसे भ्रूणों के गर्भपात की अनुमति देता है, जो पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं अथवा उनमें कोई विकार है, इस तरह यह कानून पूर्णतः असंवैधानिक है।
    • संवैधानिक न्यायाधिकरण की अध्यक्ष जूलिया प्रेज़लेबस्का ने इस संबंध में निर्णय देते हुए कहा कि भ्रूण की विकृतियों के मामले में गर्भपात की अनुमति देना, एक अजन्मे बच्चे के संबंध में सुजनन की प्रथाओं (Augenic Practices) को वैध बनाता है।
    • संवैधानिक न्यायाधिकरण ने तर्क दिया कि चूँकि पोलैंड के संविधान में जीवन के अधिकार की गारंटी दी गई है, इसलिये भ्रूण की विकृति के आधार पर गर्भपात की अनुमति देना भी भेदभाव का ही एक रूप है।
    • ध्यातव्य है कि बीते वर्ष पोलैंड के सत्तारुढ़ दल के कुछ सांसदों ने पहली बार वर्ष 1993 में बने गर्भपात कानून को संवैधानिक चुनौती दी थी, जिसमें भ्रूण के दोष अथवा विकृति के आधार पर गर्भपात की अनुमति दी गई थी।
    • पोलैंड के गर्भपात कानूनों को पहले से ही यूरोप के सबसे कठोर गर्भपात कानूनों में से एक माना जाता है, वहीं अब संवैधानिक न्यायाधिकरण का निर्णय लागू होने के बाद पोलैंड में केवल दुष्कर्म और अनाचार के मामलों में या फिर जब गर्भावस्था से माँ के जीवन को खतरा हो तभी गर्भपात की अनुमति दी जाएगी।
  • पोलैंड की महिलाओं के लिये इस निर्णय के निहितार्थ
    • बीबीसी (BBC) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पोलैंड में प्रत्येक वर्ष 2,000 से अधिक कानूनी गर्भपात किये जाते हैं, जिनमें से अधिकांश भ्रूण विकृति के कारण होते हैं।
    • रिपोर्ट की मानें तो बलात्कार, अनाचार के मामलों में या जहाँ माँ के जीवन पर खतरा हो ऐसे सभी मामलों में होने वाले गर्भपातों की संख्या कुल गर्भपातों का केवल 2 प्रतिशत है।
      • इस प्रकार अदालत के इस निर्णय से पोलैंड में एक प्रकार से गर्भपात पर पूर्णतः प्रतिबंध लग गया है।
    • महिला अधिकारों के लिये कार्य करने वाले समूहों और संगठनों के मुताबिक, प्रत्येक वर्ष पोलैंड की लगभग 80,000 से 120,000 महिलाएँ या तो गर्भपात के लिये विदेश जाती हैं या फिर कठोर गर्भपात कानूनों के मद्देनज़र अवैध गर्भपात कराती हैं।
    • इस प्रकार यदि गर्भपात संबंधी कानूनों को और कठोर कर दिया जाता है तो इससे अवैध रूप से होने वाले गर्भपतों की संख्या में बढ़ोतरी होगी।

पोलैंड में गर्भपात को लेकर विरोध प्रदर्शन- पृष्ठभूमि

  • ज्ञात हो कि यह पहली बार नहीं है जब पोलैंड में कठोर गर्भपात कानूनों के विरोध में प्रदर्शन किये जा रहे हैं। इससे पूर्व वर्ष 2016 में गर्भपात पर पूर्ण प्रतिबंध के प्रस्ताव के विरोध में हज़ारों महिलाओं ने हड़ताल की थी।
    • इस प्रदर्शन के दौरान सभी महिलाओं ने काले कपड़े पहनकर विरोध प्रकट किया था, जो इस बात का प्रतीक था कि महिलाएँ अपने प्रजनन अधिकारों की मृत्यु का शोक मना रही थीं।
  • यदि गर्भपात संबंधी इस कानून के मसौदे को लागू कर दिया जाता तो इसके कारण उन महिलाओं को कम-से-कम पाँच वर्ष जेल की सज़ा होगी जिन्होंने गर्भपात करवाया था। 

भारत में गर्भपात संबंधी कानून

  • भारत में गर्भपात के संबंध में वर्ष 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम लागू किया गया था, जो कि वर्तमान में देश में गर्भपात को लेकर सबसे महत्त्वपूर्ण कानून है।
    • ज्ञात हो कि वर्ष 1971 से पूर्व भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 312 के तहत गर्भपात को आपराधिक कृत्य घोषित किया गया था।
  • इस अधिनियम के तहत गर्भपात की अनुमति के लिये गर्भधारण की अधिकतम अवधि 20 सप्ताह निर्धारित की गई है। यद्यपि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (संशोधन) विधेयक, 2020 में इस अवधि को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह करने की बात कही गई है, किंतु यह विधेयक अभी राज्यसभा में लंबित है।
  • कोई भी पंजीकृत डॉक्टर उस स्थिति में गर्भपात करा सकता है यदि गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक नहीं है और यदि गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक है किंतु 20 सप्ताह से अधिक नहीं है, तो गर्भपात उसी स्थिति में हो सकता है जब दो डॉक्टर ऐसा मानते हैं कि-
    • गर्भावस्था जारी रखने से माँ के जीवन या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर कोई खतरा उत्पन्न हो सकता है।
    • भ्रूण किसी गंभीर विकार अथवा रोग से पीड़ित है, जिससे उसके गंभीर रूप से विकलांग होने की आशंका है।
    • गर्भावस्था का कारण दुष्कर्म अथवा अनाचार है।
    • गर्भावस्था, गर्भनिरोधक की विफलता के परिणामस्वरूप हुई है (हालाँकि यह केवल विवाहित महिलाओं पर लागू होता है)।

निहित समस्याएँ

  • कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इस अधिनियम में गर्भपात को लेकर एक महिला की पसंद और स्व-चयन के विकल्प को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। यह अधिनियम केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में गर्भपात की अनुमति देता है, इस प्रकार महिलाओं को अपनी इच्छा के अनुरूप गर्भपात का विकल्प चुनने का कोई विकल्प नहीं है।
  • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम, 1971 की इस आधार पर भी आलोचना की जाती है कि यह अधिनियम कई अवसरों पर चिकित्सा प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति के साथ तालमेल स्थापित करने में सक्षम नहीं रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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