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मई दिवस: इतिहास और महत्त्व

  • 01 May 2020
  • 11 min read

प्रीलिम्स के लिये

मई दिवस, हे मार्केट

मेन्स के लिये

मई दिवस का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और उसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

प्रत्येक वर्ष दुनिया भर के कई हिस्सों में 1 मई को मई दिवस (May Day) अथवा ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ (International Workers’ Day) के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस जनसाधारण को नए समाज के निर्माण में श्रमिकों के योगदान और ऐतिहासिक श्रम आंदोलन का स्मरण कराता है। 

  • मई दिवस का इतिहास
  • सर्वप्रथम वर्ष 1889 में समाजवादी समूहों और ट्रेड यूनियनों के एक अंतर्राष्ट्रीय महासंघ ने शिकागो में हुई हे मार्केट (Haymarket, 1886) घटना को याद करते हुए श्रमिकों के समर्थन में 1 मई को ‘मई दिवस’ के रूप में नामित किया था। 
  • अमेरिका ने वर्ष 1894 में श्रमिक दिवस को एक अवकाश के रूप में मान्यता दी, जहाँ यह प्रत्येक वर्ष सितंबर के पहले सोमवार को मनाया जाता है। जल्द ही, कनाडा ने भी इस प्रथा को अपना लिया।
  • वर्ष 1889 में समाजवादी और श्रमिक दलों द्वारा बनाई गई संस्था सेकंड इंटरनेशनल (Second International) ने घोषणा की कि अब से 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
  • वर्ष 1904 में, एम्स्टर्डम (Amsterdam) में इंटरनेशनल सोशलिस्ट काॅॅन्ग्रेस (International Socialist Congress) ने सभी सोशल डेमोक्रेटिक संगठनों और सभी देशों की ट्रेड यूनियनों को एक दिन में कार्य के 8 घंटे की प्रथा की कानूनी स्थापना के लिये एक मई को उत्साहपूर्वक प्रदर्शन करने का आह्वान किया।
  • अंततः वर्ष 1916 में अमेरिका ने वर्षों के विरोध और संघर्ष के पश्चात् आठ घंटे के कार्य समय को आधिकारिक पहचान देना शुरू किया। 

हे मार्केट घटना

  • 1 मई, 1886 को शिकागो में हड़ताल का रूप सबसे आक्रामक था। शिकागो उस समय जुझारू वामपंथी मज़दूर आंदोलनों का केंद्र बन गया था। 
  • 1 मई को शिकागो में मज़दूरों का एक विशाल सैलाब उमड़ा और संगठित मज़दूर आंदोलन के आह्वान पर शहर के सारे औज़ार बंद कर दिये गए और मशीनें रुक गईं। 
  • मज़दूर आंदोलन को कभी भी वर्ग-एकता के इतने शानदार और प्रभावी प्रदर्शन का एहसास नहीं हुआ था। इस आंदोलन ने अमेरिकी मज़दूर वर्ग की लड़ाई के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया।
  • हालाँकि इस दौरान शिकागो प्रशासन एवं मालिक चुप नहीं बैठे और मज़दूरों को गिरफ्तारी शुरू हो गई। जिसके पश्चात् पुलिस और मज़दूरों के बीच हिंसक झड़प शुरू हो गई, जिसमें 4 नागरिकों और 7 पुलिस अधिकारियों की मौत हो गई।
  • कई आंदोलनकारी, जो श्रमिकों के अधिकारों के उल्लंघन का विरोध कर रहे थे और काम के घंटे कम करने और अधिक मज़दूरी की मांग कर रहे थे उन्हें गिरफ्तार कर रहे थे और आजीवन कारावास अथवा मौत की सजा दी गई।

मई दिवस- एक अवकाश से कहीं अधिक

  • श्रम न केवल उत्पादन में, बल्कि अन्य सभी आर्थिक गतिविधियों में भी एक महत्त्वपूर्ण कारक होता है। डेविड रिकार्डो और कार्ल मार्क्स जैसे क्लासिक अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन के मुख्य स्रोत के रूप में श्रम को प्रमुख स्थान दिया। 
  • इस प्रकार श्रमिक किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। श्रमिकों की इसी भूमिका को एक पहचान देने और श्रमिक आंदोलनों के गौरवशाली इतिहास को याद करने के उद्देश्य से ‘मई दिवस’ अथवा ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ मनाया जाता है।
  • विश्व के अधिकांश देशों में मई दिवस को एक ‘अवकाश’ घोषित किया गया है, विडंबना यह है कि नई पीढ़ी ‘मई दिवस’ को केवल एक अवकाश के रूप में ही जानती है, लोगों के ज़हन में ‘मई दिवस’ और श्रमिकों की भूमिका धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही है।

मई दिवस और काम के आठ घंटे 

  • मई दिवस का जन्म काम के घंटे कम करने के आंदोलन से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। काम के घंटे कम करने और मज़दूरों को उनके बुनियादी अधिकार दिलाने से संबंधित इस दिवस का मज़दूरों के लिये एक विशेष राजनीतिक महत्त्व है। 
  • जब अमेरिका में फैक्ट्री-व्यवस्था शुरू हुई, लगभग तभी यह संघर्ष भी सामने आया। हालाँकि अमेरिका में अधिक मज़दूरी की मांग, शुरुआती हड़ताल और संघर्ष में सर्वाधिक प्रचलित थी, किंतु जब मज़दूरों ने अपनी मांगों को सूचीबद्ध किया तो काम के घंटे कम करने का प्रश्न और संगठित होने के अधिकार का प्रश्न केंद्र में रहा।
  • जैसे-जैसे शोषण बढ़ता गया, मज़दूरों को अमानवीय रूप से लंबे काम के दिन और भी बोझिल महसूस होने लगे, इसके साथ ही काम के घंटों को कम करने की मांग भी और अधिक मज़बूत होती गई।
  • 19वीं सदी की शुरुआत में ही अमेरिका में मज़दूरों ने ‘सूर्योदय से सूर्यास्त’ (Sunrise to Sunset) तक के काम के समय के विरोध में अपनी शिकायतें स्पष्ट कर दी थीं। 
    • ध्यातव्य है कि वर्ष 1806 में अमेरिका की सरकार ने कुछ हड़तालियों के नेताओं पर मुकदमे चलाए। इस मामले में यह बात सामने आई कि मज़दूरों से तकरीबन 19 से 20 घंटे तक कार्य कराया जाता था।
  • 19वीं सदी का दूसरा और तीसरा दशक काम के घंटे कम करने के लिये हड़तालों से भरा हुआ है। इसी दौर में कई औद्योगिक केंद्रों ने तो एक दिन में काम के घंटे 10 करने की मांग भी निश्चित कर दी थी।
  • उल्लेखनीय है कि वह संघर्ष, जिससे ‘मई दिवस’ का जन्म हुआ, अमेरिका में वर्ष 1884 में ‘काम के घंटे आठ करो’ आंदोलन से ही शुरू हुआ था।

भारत में मज़दूर दिवस

  • भारत में मज़दूर दिवस पहली बार चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में 1 मई, 1923 को आयोजित गया था। यह पहल सर्वप्रथम लेबर किसान पार्टी के प्रमुख सिंगारवेलर द्वारा की गई थी।
  • लेबर किसान पार्टी के प्रमुख सिंगारवेलर ने इस अवसर को मनाने के लिये दो बैठकों का आयोजन किया। इनमें से एक ट्रिप्लिकेन बीच पर आयोजित की गई और दूसरी मद्रास उच्च न्यायालय के सामने समुद्र तट पर आयोजित की गई। 
  • इन बैठकों में सिंगारवेलर ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया था कि ब्रिटिश सरकार को भारत में मई दिवस या मज़दूर दिवस पर राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा करनी चाहिये।
  • मज़दूर दिवस या मई दिवस को भारत में 'कामगार दिन’ के रूप में भी जाना जाता है, मराठी में इसे ‘कामगार दिवस' और तमिल में 'उझिपालार नाल' (Uzhaipalar Naal) कहा जाता है। 
  • भारत में वर्ष 1986 का बाल श्रम अधिनियम, जिसके तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को नियोजित करना प्रबंधित कर दिया, बेहतर श्रम मानकों को प्राप्त करने और बच्चों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को समाप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था। 

निष्कर्ष

मज़दूर दिवस एक विशेष अवसर है जब दुनिया भर में लोग मज़दूर वर्ग की सच्ची भावना और मज़दूर आंदोलन का जश्न मनाते हैं। यह वह दिन है दुनिया भर के कार्यकर्त्ता एकजुट होते हैं और अपनी एकता का प्रदर्शन करते हैं जो यह दर्शाता है कि वे समाज के मज़दूर वर्ग के लिये सकारात्मक सुधार लाने हेतु किस प्रकार प्रभावी ढंग से संघर्ष कर सकते हैं। मौजूदा समय में संपूर्ण विश्व महामारी का सामना कर रहा है, बीते दिनों देश में ऐसी कई घटनाएँ सामने आईं हैं, जिनमें देश के सामान्य वर्ग विशेष रूप से मज़दूर वर्ग के अधिकारों का हनन देखा गया। गौरतलब है कि हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी सरकार से महामारी के दौरान देश के संवेदनशील वर्ग के अधिकारों की रक्षा करने का अनुरोध किया था। आवश्यक है कि सरकार मज़दूर वर्ग के मुद्दों को सुने और नीति निर्माण में मज़दूर वर्ग के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस

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