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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दिल्ली की वायु प्रदूषण समस्या क्यों हल नहीं होती?

  • 21 Jun 2018
  • 9 min read

संदर्भ

देश की राजधानी दिल्ली को फिर से दुनिया में सबसे प्रदूषित मेगा सिटी के रूप में स्थान दिया गया है। पिछले साल दिल्ली के मुख्यमंत्री ने शहर की तुलना "गैस चैंबर" से की थी, जबकि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सार्वजनिक चेतावनी जारी की और कहा कि दिल्ली "मेडिकल हेल्थ इमरजेंसी" की स्थिति में है। पिछले दिनों यूनाइटेड एयरलाइंस ने दिल्ली के लिये उड़ानों को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि दिल्ली की वायु गुणवत्ता विषाक्त हो गई है जो "प्राकृतिक आपदा" के समान है|

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • दिल्ली में 2.2 मिलियन से ज़्यादा स्कूली बच्चों को फेफड़ों की क्षति का खतरा है।
  • हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने दक्षिण दिल्ली में आगजनी की घटना पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि वायु प्रदूषण, खतरनाक प्रदूषकों और भीड़-भाड़ के कारण मानव जीवन को खतरे में डाल रहा है।
  • अतीत में सरकारी निष्क्रियता को समझते हुए दिल्ली के लोगों ने इसका विरोध किया था और साँस लेने के अधिकार की मांग की थी।
  • यह सब इस बात को इंगित करता है कि किस हद तक वायु प्रदूषण ने शहर में सार्वजनिक जीवन को पंगु बना दिया है, बावजूद इसके दिल्ली में वायु गुणवत्ता अस्वास्थ्यकर बनी हुई है।

प्रदूषण नियंत्रण के लिये उठाए गए हालिया कदम

  • अन्य राज्यों की तुलना में दिल्ली महत्त्वपूर्ण लाभ की स्थिति में है क्योंकि इसकी प्रति व्यक्ति आय देश के दूसरे राज्यों से अधिक है।
  • 22 मार्च को दिल्ली सरकार ने अगले वित्त वर्ष के लिये 8.2 अरब डॉलर के वार्षिक बजट की घोषणा की।
  • इसे देश के पहले "ग्रीन बजट" के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि यह प्रदूषण नियंत्रण के कई उपायों पर केंद्रित है और "वैज्ञानिक रूप से” प्रदूषण से लड़ने का वादा करता है।
  • दिल्ली सरकार ने विश्व बैंक, वाशिंगटन विश्वविद्यालय, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी तथा C-40 सिटीज क्लाइमेट लीडरशिप ग्रुप के साथ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सहित 26 विशिष्ट ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा नीति की घोषणा की थी।
  • इन भागीदारियों का उद्देश्य शहर में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार संस्थानों की क्षमता को बढ़ावा देना है।
  • हालाँकि बजट संभावनाओं से परिपूर्ण है, फिर भी यह स्पष्ट नहीं है कि बजट के लक्ष्यों को कैसे पूरा किया जाएगा।

दिल्ली की वायु गुणवत्ता में तत्काल सुधार की संभावना नहीं होने के कारण

1. किसी भी प्रकार के प्रदूषण के विरूद्ध सफलता के लिये एक कुशल शासनतंत्र केंद्र सरकार में निहित है। दिल्ली में वायु प्रदूषण का प्रबंधन एक स्वायत्त सरकारी निकाय, पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (Environmental Pollution Control Authority-EPCA) द्वारा किया जाता है।

  • प्राधिकरण ने एक ऐसी योजना शुरू की है जो वायु प्रदूषण की गंभीरता के अनुरूप जनता की प्रतिक्रियाओं को आमंत्रित करती है।
  • उदाहरण के लिये, जब वायु की गुणवत्ता "गंभीर" स्तर (PM 2.5> 250 g / m3) पर होती है तो उस स्थिति में EPCA दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) को सभी निर्माण गतिविधियों तथा डीज़ल जेनरेटर के उपयोग को रोकने, सभी ईंट भट्ठों तथा विद्युत संयंत्रों को बंद करने के लिये निर्देशित करने की आवश्यकता होती है|
  • इस योजना के कार्यान्वयन में वर्तमान में कम-से-कम 16 विभिन्न एजेंसियाँ शामिल हैं। इनमें से कुछ केंद्र सरकार के नियंत्रण में हैं,  कुछ दिल्ली सरकार के अधीन हैं  और कुछ पड़ोसी राज्यों के प्रशासनिक नियंत्रण में हैं।
  • इन एजेंसियों को घोर राजनीतिक प्रतिद्दंद्दियों  द्वारा शासित किया जाता है और उनके बीच समन्वय को बढ़ावा देने के लिये कोई प्रत्यक्ष प्रयास नहीं किया जाता।
  • एजेंसियाँ एक सतत् सार्वजनिक दोषारोपण के खेल में शामिल हो जाती हैं जिसमें विभिन्न राजनीतिक गुट स्वयं को अच्छा दिखाने की कोशिश करते हैं। नतीजतन,  नीतिगत उपायों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जाता है।

2. दिल्ली का वायु प्रदूषण एक क्षेत्रीय समस्या है| भारत के नागपुर में स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (IIASA) और नेशनल एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI) द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि दिल्ली में PM 2.5 की समस्या पड़ोसी राज्यों के कारण है।

  • क्षेत्रीय विचारण को ध्यान में रखे बिना प्रदूषण नियंत्रण की किसी भी नीति के सफल होने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
  • इसलिये  दिल्ली के प्रदूषण को क्षेत्रीय प्रदूषण समस्या के रूप में माना जाना चाहिये  और इसके समाधान के लिये अंतर-एजेंसी के प्रयासों को केंद्रीय स्रोत द्वारा नियंत्रित और समन्वयित किये जाने की आवश्यकता है।

3. दिल्ली को प्रदूषण के उत्सर्जन स्रोतों को तलाशने करने की ज़रुरत है।

  • पिछले दशक के दौरान प्रदूषण के 15 स्रोतों का अध्ययन किया गया जिनमें से 10 प्रत्यक्ष नमूना पद्धति पर आधारित हैं, जबकि पाँच माध्यमिक आँकड़ों पर आधारित हैं।
  • सभी अध्ययनों में उत्सर्जन के स्रोत समान पाए गए हैं, दिल्ली के प्रदूषण में विभिन्न स्रोतों का योगदान भिन्न-भिन्न पाया गया है।
  • यह मौजूदा अध्ययनों की अविश्वसनीयता के चलते सटीक अनुमान लगाने में कठिनाई को रेखांकित करता है जो कि आंशिक रूप से दिल्ली के जटिल मौसम विज्ञान और उत्सर्जन के स्रोतों की बदलती प्रकृति के कारण है|

4. दिल्ली में बुनियादी ढाँचे की भी कमी है। सार्वजनिक परिवहन के लिये ज़रुरत के हिसाब से बसों की संख्या आधी से भी कम है (यह पिछले आठ वर्षों में सबसे कम स्तर है)।

  • इसका मतलब है कि निजी ऑटोमोबाइल के उपयोग से वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है।
  • DPCC, जिसमें शहर में वायु प्रदूषण नियमों के अनुपालन और उन्हें लागू करने का जनादेश है, गंभीर वैज्ञानिक और तकनीकी श्रमबल की कमी से ग्रस्त है (1990 से लगभग तीन-चौथाई क्षमता पर परिचालन)।
  • सार्वजनिक आधारभूत संरचना में यह अंतर खराब वायु प्रदूषण की समस्या को हल करने की शहर की क्षमता में सार्वजनिक विश्वास को कमज़ोर करता है।
  • जब तक इन कमियों को दूर नहीं किया जाता, तब तक केवल प्रदूषण दूर करने के वादों की घोषणा से कुछ नहीं होने वाला।
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