शासन व्यवस्था
CBI और राज्य (Why CBI Needs Consent)
- 19 Nov 2018
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संदर्भ
हाल ही में आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने राज्य के किसी भी मामले की CBI जाँच पर ‘सामान्य सहमति’ वापस ले ली। दोनों राज्यों ने यह कहते हुए सहमति वापस ली है कि हाल ही में CBI में शीर्ष अधिकारियों के बीच खुले मतभेद को देखते हुए उन्हें इस शीर्ष जाँच एजेंसी में कोई विश्वास नहीं है। इसके अलावा, समय-समय पर कुछ ऐसे आरोप भी सामने आते रहते हैं जिनमें कहा जाता है कि केंद्र सरकार विपक्षी दलों को लक्षित करने के लिये CBI का दुरुपयोग कर रही है।
क्या होती है सामान्य सहमति?
- राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) जो अपने स्वयं के NIA अधिनियम द्वारा शासित है और जिसका अधिकार क्षेत्र पूरा देश है के विपरीत, CBI दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम द्वारा शासित है जो राज्य सरकार की उस राज्य में जाँच करने के लिये अनिवार्य है।
- सहमति दो प्रकार की होती है- एक केस-विशिष्ट सहमति और दूसरी, सामान्य सहमति। हालाँकि CBI का अधिकार क्षेत्र केवल सरकारी विभागों और कर्मचारियों तक सीमित है लेकिन राज्य सरकार की सहमति मिलने के बाद यह राज्य सरकार के कर्मचारियों या हिंसक अपराध से जुड़े मामलों की जाँच भी कर सकती है।
- ‘सामान्य सहमति’ आमतौर पर CBI को संबंधित राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने में मदद के लिये दी जाती है। और लगभग सभी राज्यों द्वारा ऐसी सहमति दी गई है। यदि राज्यों द्वारा सहमति नहीं दी गई है तो CBI को हर एक मामले में जाँच करने से पहले राज्य सरकार से सहमति लेना आवश्यक होगा। उदाहरण के लिये यदि CBI मुंबई में पश्चिमी रेलवे के क्लर्क के खिलाफ रिश्वत के मामले की जाँच करनी चाहती है, तो उस क्लर्क पर मामला दर्ज करने से पहले CBI को महाराष्ट्र सरकार के पास सहमति के लिये आवेदन करना होगा।
सहमति वापस लेने से क्या तात्पर्य है?
- सहमति वापस लेने का तात्पर्य यह है कि CBI इन दोनों राज्यों की केस-विशिष्ट सहमति के बिना इन राज्यों में केंद्र सरकार के किसी भी कर्मचारी या राज्य में रह रहे किसी भी गैर-सरकारी व्यक्ति के खिलाफ नए मामले दर्ज नहीं कर सकेगी।
- स्पष्टतः यह कहा जा सकता है कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना इन राज्यों में प्रवेश करते ही किसी भी CBI अधिकारी के पुलिस अधिकारी के रूप में सभी अधिकार समाप्त हो जाएंगे।
सामान्य सहमति वापस लेने का प्रावधान
- दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, राज्यों (केंद्रशासित प्रदेशों को छोड़कर) की सहमति के बिना दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, 1946 की धारा 5 (जो कि CBI के अधिकार क्षेत्र से संबंधित है) में निहित किसी भी अधिकार का प्रयोग राज्य में नहीं किया जा सकेगा।
आगे की राह
- ‘सामान्य सहमति’ वापस लेने के बाद भी CBI उन पुराने मामलों की जाँच कर सकेगी जिन्हें उस समय दर्ज किया गया था जब CBI को इन राज्यों में आम सहमति प्राप्त थी। इसके अलावा, CBI को ऐसे मामलों में भी जाँच करने को अनुमति होगी जो देश में किसी अन्य स्थान पर पंजीकृत हुए हों लेकिन आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के लोगों से संबंधित हों ।
- राज्य सरकार की सहमति के बिना पुराने मामलों के संबंध में एजेंसी दोनों राज्यों में से किसी में भी जाँच कर सकती है अथवा नहीं, इस पर अभी तक अस्पष्टता है।
- हालाँकि इसके साथ-साथ कानूनी उपचार भी हैं। CBI हमेशा राज्य में स्थानीय अदालत से सर्च वारंट प्राप्त कर सकती है और संबंधित राज्य में तलाशी कर सकती है।
- यदि जाँच के दौरान अचानक तलाशी की आवश्यकता होती है, तो इसके लिये CrPc की धारा 166 उपलब्ध है जिसके अनुसार, एक क्षेत्राधिकार का पुलिस अधिकारी दूसरे क्षेत्राधिकार के अधिकारी को अपनी ओर से तलाशी करने के लिये कह सकता है।
- यदि पहले अधिकारी को लगता है कि दूसरे अधिकारी की तलाशी से साक्ष्यों को नुकसान पहुँच सकता है तो उपरोक्त धारा के अनुसार, पहला अधिकारी दूसरे अधिकारी को नोटिस देने के बाद स्वयं ही जाँच कर सकता है।
वर्तमान परिदृश्य
- सहमति वापस लेने से CBI केवल आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के अधिकार क्षेत्र में मामला दर्ज नहीं कर सकेगी। परंतु CBI अब भी दिल्ली में मामला दर्ज कर सकती है और दोनों राज्यों में लोगों की जाँच का कार्य जारी रख सकती है।
- 11 अक्तूबर, 2018 को दिये गए दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अगर उस राज्य में, जिसने ‘सामान्य सहमति’ वापस ले ली है और वहाँ मामला दर्ज नहीं किया गया है तो CBI वहाँ जाँच कर सकती है।
- यह आदेश छत्तीसगढ़ (जोकि हर बार मामले के आधार पर सहमति देता है) में भ्रष्टाचार के मामले पर दिया गया था। अदालत ने आदेश दिया था कि CBI छत्तीसगढ़ सरकार की पूर्व सहमति के बिना किसी भी मामले में जाँच कर सकती है क्योंकि यह मामला दिल्ली में पंजीकृत था।
- CBI अभी भी दिल्ली में मामला दर्ज कर सकती है, बशर्ते ऐसे मामलों के कुछ हिस्से दिल्ली से जुड़े हुए हों और इन मामलों के आधार पर CBI मंत्रियों या सांसदों को गिरफ्तार कर उन पर मुक़दमा चला सकती है।
निष्कर्ष
ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब किसी राज्य सरकार ने CBI संबंधी ‘सामान्य सहमति’ वापस ली है। पिछले कुछ वर्षों में सिक्किम, नगालैंड, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक समेत कई राज्यों ने ऐसा किया है। लेकिन यदि किसी राज्य सरकार को ऐसा लगता है कि राज्य में सत्तारूढ़ दल के मंत्रियों या सदस्यों को केंद्र सरकार के आदेश पर CBI द्वारा लक्षित किया जा सकता है और सामान्य सहमति को वापस लेकर वे सुरक्षित रह सकेंगे तो शायद यह एक गलत धारणा है।