बौद्ध धर्म की ओर दलितों का इतना झुकाव क्यों है? | 04 May 2018
संदर्भ
जुलाई 2016 में ऊना (गुजरात) में गोरक्षकों द्वारा लक्षित एक दलित परिवार के सदस्यों सहित करीब 300 अन्य दलितों ने 29 अप्रैल को मोटा समधियाला गाँव (Mota Samadhiyala village) में हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म धारण कर लिया। भीमराव अंबेडकर से लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती ऐसे बहुत से दलित है, जिन्होंने जीवन के पड़ाव पर हिन्दू धर्म का त्याग करते हुए बौद्ध धर्म को अपना लिया। आखिर क्या कारण है कि दलित समाज का झुकाव इस धर्म को ओर इतना अधिक है?
- क्या यह एक आम बात है? क्या इसकी शुरुआत अंबेडकर के धर्म परिवर्तन के साथ शुरू हुई या यह पहले से ही चलन में था?
- ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जिनके विषय में विचार किये जाने की आवश्यकता है। ऐसे ही कुछ प्रश्नों के विषय में हमने इस लेख में चर्चा करने का प्रयास किया है।
क्या दलितों के लिये बौद्ध धर्म में परिवर्तित होना आम बात है?
- हाल के वर्षों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहाँ दलितों ने व्यक्तिगत रूप से, पारिवारिक रूप से और बड़े-बड़े समूहों में बौद्ध धर्म को अपनाया है। मिसाल के तौर पर, पिछले वर्ष अक्तूबर में 30 दलित युवाओं ने वडोदरा में संकल्प भूमि में बौद्ध धर्म धारण कर लिया।
- वडोदरा में यह क्षेत्र विशिष्ट रूप से डॉ. भीमराव अंबेडकर से संबंधित है। हर साल लोग नागपुर स्थित दीक्षाभूमि (Deekshabhoomi) जाते हैं, यह वह क्षेत्र है जहाँ अंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को अपने 3 लाख से अधिक अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म धारण किया था तथा बुद्ध के विश्वास का पालन करने की शपथ ली थी।
- सामाजिक इतिहासकार एलेनोर ज़ेल्लियट (Eleanor Zelliot) के मुताबिक, बॉम्बे के शमशान गृह में अंबेडकर का संस्कार किया गया, भिक्कू आनंद कौसल्यायन (bhikku Anand Kausalyayan) के नेतृत्व में इस अवसर पर लाखों लोगों ने बौद्ध धर्म धारण किया।
- 1961 की जनगणना के अनुसार, महाराष्ट्र में 27.89 लाख बौद्ध अनुयाई थे, जबकि देश में बौद्ध अनुयायियों की संख्या 32.50 लाख दर्ज की गई थी।
- इसी क्रम में 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में बौद्ध अनुयायियों की संख्या 84.43 लाख थी, जबकि अकेले महाराष्ट्र में 65 लाख से अधिक बौद्ध लोग थे।
आखिर क्यों दलित लोग बौद्ध धर्म में परिवर्तित होना चाहते हैं?
- बौद्ध धर्म में अपनी आस्था के आधार पर ही अंबेडकर ने हिंदू धर्म को छोड़ने का निर्णय लिया था। अंबेडकर आशा व्यक्त करते थे कि हिंदू धर्म अस्पृश्यता और जाति व्यवस्था से छुटकारा पा सकता है, यही कारण था कि उन्होंने दलितों के मंदिरों में प्रवेश करने जैसे आंदोलनों सहित कई सुधारवादी पहलों का समर्थन किया।
- ज़ेल्लियट बताते हैं कि वर्ष 1929 में जलगाँव में अंबेडकर ने कहा था कि यदि अछूतों के साथ होने वाले भेदभाव को खत्म नहीं किया जाता है तो उन्हें हिंदू धर्म त्याग कर दूसरे धर्मों को अपना लेना चाहिये।
- आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस वाकये के एक महीने के भीतर क्षेत्र के 12 महारों ने हिंदू धर्म त्यागकर इस्लाम को अपना लिया।
- संभवतः अंबेडकर के धर्म बदलने का फैसला भी बौद्धिक और भावनात्मक आधार पर किया गया था। यह फैसला एक ऐसे धर्म के विरुद्ध किया गया था, जिसने उन्हें समानता और आत्म-सम्मान देने से इंकार कर दिया था।
- लेकिन, इसके साथ-साथ यह एक राजनीतिक इकाई के रूप में हिंदुओं और सहिष्णुता के संबंध में हिंदू धर्म की प्रतिष्ठा के लिये एक धमकी भी थी।
- 1930 के दशक के दौरान अंबेडकर ने ज़ोर देते हुए धर्म रूपांतरण को दलित मुक्ति के एकमात्र मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया।
- दादर (30-31 मई, 1936) में अखिल बॉम्बे ज़िला महार सम्मेलन (All Bombay District Mahar Conference) में बोलते हुए उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि वो क्यों धर्म रूपांतरण को दलितों के लिये राजनीतिक और आध्यात्मिक कार्य के रूप में देखते हैं।
- उनके अनुसार किसी धर्म में एक व्यक्ति के उत्थान के लिये सहानुभूति, समानता और स्वतंत्रता तीन आवश्यक कारक होते हैं, जो कि हिंदू धर्म में मौजूद नहीं हैं।
- "रूपांतरण" अस्पृश्यों के लिये उसी तरह से ज़रूरी है जिस तरह से भारत वर्ष के लिये स्वयंशासन आवश्यक है। रूपांतरण और स्वयंशासन दोनों का अंतिम उद्देश्य स्वतंत्रता को प्राप्त करना है।
- अंबेडकर ने बुद्ध और उनके शिष्य आनंद के बीच बातचीत को याद करके अपने भाषण का निष्कर्ष निकाला और उसे प्रस्तुत करते हुए कहा कि “मैं भी बुद्ध के शब्दों में शरण लेता हूँ। स्वयं अपने मार्गदर्शक बनो। ... दूसरों की सलाह मत सुनो। दूसरों के लिये मत झुको। सच्चे बने रहो। सच्चाई के मार्ग में शरण लो। कभी भी, किसी भी चीज़ के सामने आत्मसमर्पण न करो।“
- अंबेडकर के लिये किसी धर्म में आत्म सम्मान और व्यक्तिगत आज़ादी का होना बहुत महत्त्वपूर्ण था और बौद्ध धर्म एक सच्चे धर्म के उस विचार के बहुत करीब था, जिसकी वो कल्पना करते थे।
क्या यह प्रथा अंबेडकर से शुरू हुई?
- राजनीतिक उपकरण के रूप में “रूपांतरण” का आधुनिक उपयोग अंबेडकर के साथ शुरू हुआ। पीड़ित हिंदू जातियों द्वारा सबसे अधिक इस्लाम, ईसाई धर्म और सिख धर्म में रूपांतरण किया गया।
- जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मध्य काल में भक्ति आंदोलन ने ब्राह्मणवाद के विरुद्ध एक बड़ी चुनौती पैदा की थी और जाति-विरोधी आदर्शों को कायम रखते हुए संस्कृत के ऊपर सामान्य लोगों की भाषाओं को विशेष रूप से महत्त्व प्रदान किया।
- उदाहरण के लिये, 12वीं शताब्दी में एक समानतावादी समुदाय के रूप में लिंगायत (Lingayat) धर्म की स्थापना करने वाले बसव (Basava) ने स्थानीय भाषा कन्नड़ (Kannada) को संचार की भाषा के रूप में प्रमुखता प्रदान की।
- 19वीं और 20वीं सदी में कट्टरपंथी बुद्धिजीवियों (विशेष रूप से उत्पीड़ित जातियों के लोग) ने मौजूदा इतिहास को चुनौती देना शुरू किया, विशेषकर वो खंड जो अभिजात वर्ग के अधिकारों को विशेषाधिकार प्रदान करते थे।
- मिसाल के तौर पर, तमिल क्षेत्र में इयोथी थसर (Iyothee Thasar) ने बौद्ध इतिहास में अस्पृश्य पारिया जाति (Pariah caste) की द्रविड़यन पहचान की कल्पना की।
- मलयालम भाषी क्षेत्रों के अस्पृश्य सुधारवादी नेताओं, जैसे- मतावदी कृष्णन (Mitavadi Krishnan) और सहोडरण अयप्पान (Sahodaran Ayyappan) ने हिंदू धर्म को त्यागने का फैसला किया और रूपांतरण को सत्ताधारी अभिजात वर्ग के साथ निचली जातियों के अधिकारों के संबंध में बातचीत के एक राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया।
- इसका प्रभाव यह हुआ कि रूपांतरण के खतरे ने मंदिर प्रविष्टि, अस्पृश्यता कानून और अंततः सह-भोज के साथ-साथ अंतरजातीय विवाह की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
क्या केवल बौद्ध धर्म में ही परिवर्तन हुआ है या और धर्मों में भी यह स्थिति देखने को मिली है?
- नहीं, ऐसा नहीं है। दूसरे धर्मों में भी परिवर्तन की प्रवृत्ति देखने को मिली है। तमिलनाडु जैसे राज्यों में दलितों द्वारा इस्लाम और ईसाई धर्म के विकल्प को चुनने के बहुत से उदहारण देखने को मिले हैं।
- 1981 में दक्षिणी तमिलनाडु के एक गाँव मीनाक्षीपुरम में 150 दलित परिवारों ने हिंदुओं द्वारा उत्पीड़न किये जाने का हवाला देते हुए इस्लाम धर्म को अपना लिया था।
- दलितों के खिलाफ हाल ही कुछ घटनाओं ने हिंदुत्व एजेंडा में व्याप्त विरोधाभासों का खुलासा किया है, जो इतिहास की अनैतिक शर्तों के अनुपालन के साथ-साथ ब्राह्मणिक मूल्यों को अपनाने पर बल देता है।
- अंबेडकर विचारधारा में आस्था रखने वाली नई शाखाएँ न तो पुराने पदानुक्रमों पर चलने के लिये तैयार है और न ही उन मूल्य प्रणालियों को स्वीकार करने की इच्छुक है, जिनके दम पर हजारों सालों से उनका शोषण किया जा रहा है।
- संघ परिवार के स्वयं को हिंदू धर्म का प्रतिपालक मानते हुए इसे संरक्षित करने के प्रयासों ने दलितों को और भी हिंदू धर्म के विरुद्ध कर दिया है। दलितों का हिंदुत्व के खिलाफ विद्रोह उनके तेज़ी से हिंदू धर्म छोड़ने के क्रम में प्रकट हो रहा है।
ऊना में हुए धर्म रूपांतरण में क्या कोई राजनीतिक संदेश निहित है?
- यह सभी समुदायों को शामिल कर एक हिंदू वोट बनाने की बीजेपी की राजनीतिक परियोजना को कमज़ोर करता है।
- दलितों के खिलाफ अत्याचारों के हालिया दौर ने हिंदुत्व एजेंडा में विरोधाभासों का खुलासा किया है, जो अतीत को अनैतिक शर्तों में लाता है और ब्राह्मणिक मूल्यों का जश्न मनाता है।
- अंबेडकर के विचार में स्कूल गई नई दलित, पुरानी पदानुक्रमों और मूल्य प्रणालियों को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं है।
- संघ परिवार के हिंदू धर्म की संरक्षकता को संरक्षित करने और मानने के प्रयास ने धर्म के खिलाफ दलितों को भी लगाया है। हिंदुत्व के खिलाफ दलित विद्रोह तेज़ी से हिंदू धर्म छोड़कर दलितों के रूप में प्रकट हो रहा है।