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असम में बाढ़ और इसका समाधान

  • 25 Jul 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

पिछले कुछ दिनों से असम में बाढ़ की भीषण स्थिति बनी हुई है। इससे राज्य के 33 ज़िलों के 57 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। साथ ही बड़ी मात्रा में जान-माल की हानि भी हो रही है।

असम बाढ़:

असम में बाढ़ एक वार्षिक घटना जैसी हो गई है। राज्य में वर्ष 1988, 1998 और 2004 में आई बाढ़ को अभी तक की सबसे भयावह आपदा माना जाता था; लेकिन इस वर्ष आई बाढ़ अधिक विनाशक प्रतीत हो रही है। इस मानसून की यह पहली बाढ़ है, विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रकार की स्थिति अभी दो बार और हो सकती है।

असम में बाढ़ के कारण:

  • भौगोलिक स्थिति:
    • असम की भू-आकृति इसको अधिक बाढ़ प्रवण बनाती है। असम घाटी एक U आकर की घाटी है जिसकी औसतन चौड़ाई 80 से 90 किमी. है, वही इस घाटी के बीच से प्रवाहित होने वाली नदियों की चौड़ाई 8 से 10 किमी. है।
    • तिब्बत, भूटान, अरुणाचल और सिक्किम आदि क्षेत्रों से भूमि ढलान असम की ओर है, इसलिये इन सभी क्षेत्रों से पानी की निकासी का मार्ग केवल असम की ओर होता है, जो असम में आने वाली बाढ़ का एक बड़ा कारण है।
    • असम हिमालय, हिमालय का अपेक्षाकृत नवीन भाग है, इसलिये अभी इसकी भूमि कम कठोर है। जब तिब्बत, भूटान, अरुणाचल और सिक्किम जैसे उच्च क्षेत्रों से पानी तीव्रता से असम की ओर प्रवाहित होता है तो भूमि के कम कठोर होने के कारण भूमि क्षरण तेज़ी से होता है। साथ ही पानी के प्रवाह की तीव्रता बाढ़ की प्रभाविता को और गंभीर बना देती है।
  • अपवाह तंत्र:
    • असम राज्य की सबसे बड़ी नदी ब्रह्मपुत्र है, जिसका अपवाह क्षेत्र चीन, भारत, बांग्लादेश और भूटान में लगभग 580,000 वर्ग किमी. का है।
    • असम विश्व की शीर्ष पाँच अवसाद प्रवाहित करने वाली नदियों में से एक है। इन अवसादों के जमाव से पानी के प्रवाह में रूकावट आती है।
    • ब्रह्मपुत्र में अवसादों की बड़ी मात्रा तिब्बत से प्रवाहित होकर आती है, तिब्बत के क्षेत्र की शुष्क, चट्टानी और वृक्षरहित परिस्थितियाँ अवसादों की अत्यधिक मात्रा हेतु ज़िम्मेदार है।
  • भूकंप:
    • नदियों का प्रवाह भूकंप प्रभावित क्षेत्रों से होने के कारण नदियों के मार्ग में परिवर्तन हो जाता है। साथ ही नदियों का स्वरूप भी प्रभावित होता है।
    • वर्ष 1950 में आए एक विनाशकारी भूकंप की वजह से डिब्रूगढ़ में ब्रह्मपुत्र नदी के जल स्तर में 2 मीटर की बढ़ोत्तरी देखी गई।
  • भू-क्षरण:
    • नदियों के किनारे के वृक्षों और झाड़ियों की कटाई से भूमि क्षरण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। साथ ही ये झाड़ियाँ जल के प्रवाह को रोकने और रिहायशी इलाकों में प्रवेश को भी बाधित करती है।
  • शहरी नियोजन:
    • नदियों के किनारे लगातार बढ़ती मानव बस्तियाँ बाढ़ से सबसे ज़्यादा प्रभावित होती है। बढ़ती बस्तियों से आर्द्रभूमियों को बहुत अधिक नुकसान पहुँचा है। आर्द्रभूमि अतिरिक्त पानी की मात्रा को अवशोषित कर लेती थी, लेकिन इनकी कम होती संख्या ने बाढ़ की प्रभाविता को और बढ़ा दिया है।
  • बांध:
    • स्वतंत्रता के बाद असम में बाढ़ की समस्या के समाधान के लिये अस्थायी बांध बनाए गए, जिनकी कमज़ोर संरचना के कारण स्थिति और अधिक दयनीय हो गई।

बाढ़ के प्रभाव:

  • वर्तमान में असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का लगभग 95% हिस्सा बाढ़ से डूब चुका है। मालीगाँव स्थित पोबीतोरा राष्ट्रीय उद्यान भी 70% तक बाढ़ से प्रभावित है। इसका प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से वहाँ पाई जाने वाली जैव-विविधता पर पड़ता है, जोकि चिंता का विषय है।
  • जोरहट ज़िले में पड़ने वाला माजुली द्वीप पूरी तरह डूब गया है। बाढ़ से इस द्वीप की जैव-विविधता को भी नुकसान हुआ है।
  • बाढ़ से बड़ी मात्रा में भूमि कटाव हो रहा है, इससे भविष्य में कृषि क्षेत्रों का ह्रास होने की संभावना है।

आगे की राह:

  • बाढ़ की विभीषिका को रोकने वाली जल संरक्षण, प्रबंधन जैसी परियोजनाओं में निवेश को बढ़ाया जाना चाहिये।
  • भौगोलिक स्थलाकृतियों को ध्यान में रखते हुए बांधों का निर्माण किया जाना चाहिये।
  • सरकार और संबंधित एजेंसियों को तटबंध बनाने की मौजूदा नीति की समीक्षा करने की ज़रूरत है। इस प्रकार की योजनाओं में स्थानीय लोगों को भी भागीदार बनाया जाना चाहिये।
  • निष्कर्षतः असम की बाढ़ एक दीर्घकालिक और बहुत ही जटिल समस्या रही है। इस संबंध में सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास पर्याप्त साबित नहीं हो पा रहे है। इसलिये विशेष रूप से असम में आने वाली बाढ़ के कारणों की समीक्षा कराई जानी चाहिये। साथ ही बाढ़ के लिये नई योजनाओं में लोगों की सहभागिता, पर्याप्त वित्तीयन और तकनीकों के कुशल प्रयोग पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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