भारत में कम हो रही हैं शार्क | 29 Jul 2019
चर्चा में क्यों?
भारत, दुनिया के सबसे बड़े शार्क मछली पकड़ने वाले देशों में से एक है और देश के दो बड़े राज्य महाराष्ट्र और गुजरात इसमें लगभग 50 प्रतिशत योगदान देते हैं। परंतु हालिया समय में शार्क की संख्या में कम हुई है जिसके कारण मत्स्य क्षेत्र पर काफी प्रभाव पड़ा है।
क्या विलुप्ति का सामना कर रही है शार्क?
- प्रकृति संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (The International Union for Conservation of Nature-IUCN) द्वारा वर्ष 2014 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, दुनियाभर की कुल शार्कों में से एक चौथाई पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है।
- बीते वर्ष 15 से अधिक देशों के शोधकर्त्ताओं द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में भी कहा गया कि अरब सागर में लगभग 50 प्रतिशत शार्क और उपास्थिदार मछलियाँ (Cartilaginous Fishes) IUCN की खतरे की श्रेणी में पाई गई हैं।
क्या कारण हैं इस विलुप्ति के?
- सीमा से अधिक मछली पकड़ना : मई 2019 में प्रकाशित हुए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में शार्क के मांस का एक व्यापक बाज़ार उपलब्ध है जिसके कारण शार्क की घरेलू मांग काफी अधिक है।
- अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता के अनुसार, “इस अध्ययन ने यह धारणा तोड़ने में काफी मदद की है कि भारत में सामान्यतः शार्क को निर्यात करने के लिये ही पकड़ा जाता है।”
- कई अन्य अध्ययनों में आधुनिक फिशिंग गियर और गहरे पानी में मछली पकड़ने को भी विलुप्ति के कारणों में शामिल किया गया है।
क्या किया गया है?
- वर्ष 2013 में पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा शार्क की फिनिंग (पंख काट देना) रोकने के उद्देश्य से ‘फिंस नैचुरली अटैच्ड’ (Fins Naturally Attached) नाम की एक योजना शुरू की थी, परंतु इसका कुछ अधिक प्रभाव शार्क की स्थिति पर देखने को नहीं मिला।
- इसके अतिरिक्त वन्य जीव अधिनियम, 1972 भी इन प्रजातियों की रक्षा करने में अपर्याप्त साबित हुआ है।
क्या किया जा सकता है?
- आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए हमें इस संदर्भ में कुछ नए और कड़े नियमों की आवश्यकता है ताकि शार्क को जल्द-से-जल्द विलुप्ति की स्थिति से बाहर निकाला जा सके।
- सरकार को ऐसे क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिये जहाँ शार्क बड़ी मात्रा में एकत्र होती हैं ताकि उन क्षेत्रों को हानिकरक मछली पकड़ने की तकनीक से सुरक्षा प्रदान की जा सके।
- अन्य मछलियों की तरह शार्क ढेर सारे अंडे न देकर सामान्यतः 7 या 8 अंडे देती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ प्रजातियाँ (स्तनपायी) तो सीधे बच्चों को जन्म देती हैं और इन्हीं कारणों से इनकी रक्षा करना काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- इसके अतिरिक्त भारतीय वन्यजीव अधिनियम में भी संशोधन किया जाना चाहिये ताकि जल में गंभीर रूप से संकटग्रस्त सभी प्रजातियों पर आवश्यक ध्यान दिया जा सके।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ
(The International Union for Conservation of Nature)
- IUCN सरकारों तथा नागरिकों दोनों से मिलकर बना एक सदस्यता संघ है।
- यह दुनिया की प्राकृतिक स्थिति को संरक्षित रखने के लिये एक वैश्विक प्राधिकरण है जिसकी स्थापना वर्ष 1948 में की गई थी।
- इसका मुख्यालय स्विटज़रलैंड में स्थित है।
- IUCN द्वारा जारी की जाने वाली रेड लिस्ट दुनिया की सबसे व्यापक सूची है, जिसमें पौधों और जानवरों की प्रजातियों की वैश्विक संरक्षण की स्थिति को दर्शाया जाता है।
- IUCN प्रजातियों के विलुप्त होने के जोखिम का मूल्यांकन करने के लिये कुछ विशेष मापदंडों का उपयोग करता है। ये मानदंड दुनिया की अधिकांश प्रजातियों के लिये प्रासंगिक हैं।
- इसे जैविक विविधता की स्थिति जानने के लिये सबसे उत्तम स्रोत माना जाता है।