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सामाजिक न्याय

गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994

  • 18 Jun 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये 

गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994

मेन्स के लिये

प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण और लिंग चयन से संबंधी चुनौतियाँ और उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को COVID-19 संबंधी देशव्यापी लॉकडाउन के बीच प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण और लिंग चयन के विरुद्ध मौजूदा संसदीय कानून के महत्त्वपूर्ण प्रावधानों को जून माह के अंत तक निलंबित करने के निर्णय को लेकर व्याख्या प्रस्तुत करने को कहा है।

प्रमुख बिंदु

  • जस्टिस यू. यू. ललित के नेतृत्त्व में सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस संबंध में दायर याचिका पर कार्यवाई करते हुए केंद्र सरकार को एक औपचारिक नोटिस जारी किया है।
  • ध्यातव्य है कि कुछ ही समय पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 4 अप्रैल को जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, उल्लेखनीय है कि इस अधिसूचना में 30 जून, 2020 तक ‘गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के कुछ प्रावधानों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी गई थी।
  • इस संबंध में दायर याचिका में याचिकाकर्त्ता ने प्रश्न किया कि सरकार किस प्रकार किसी संसदीय कानून के कुछ प्रावधानों के कार्यान्वयन पर एक अधिसूचना के माध्यम से अस्थायी रोक लगा सकती है।
  • अधिसूचना के माध्यम से निलंबित प्रावधानों में ‘गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 का नियम 8 आनुवांशिक परामर्श केंद्रों, प्रयोगशालाओं और क्लीनिकों के अनिवार्य पंजीकरण से संबंधित है।

सरकार द्वारा जारी अधिसूचना

  • सरकार ने अधिसूचना के माध्यम से गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के नियम 8, 9(8) और 18A(6) को निलंबित कर दिया था।
    • उक्त सभी नियम कुछ प्रशासनिक प्रक्रियाओं से संबंधित हैं।
  • नियम 8 आनुवांशिक परामर्श केंद्रों, प्रयोगशालाओं और क्लीनिकों के अनिवार्य पंजीकरण से संबंधित है। अधिसूचना के अनुसार, अपने लाइसेंस के नवीनीकरण की मांग करने वाली प्रयोगशालाओं को 30 जून तक ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
  • नियम 18A(6) सभी उपयुक्त अधिकारियों को सरकार को एक त्रैमासिक रिपोर्ट (Quarterly Report) प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाता है, साथ ही इस नियम के तहत सभी लाइसेंस प्राप्त चिकित्सकों को अपना रिकॉर्ड बनाए रखना आवश्यक है।
  • इसके अतिरिक्त गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के नियम 9(8) को भी अधिसूचना के माध्यम से कुछ समय के लिये निलंबित कर दिया गया था। यह नियम सभी अल्ट्रासाउंड क्लीनिकों के लिये गर्भावस्था से संबंधित विभिन्न प्रक्रियाओं और परीक्षणों की एक विस्तृत रिपोर्ट ज़िला चिकित्सा अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाता है।
    • स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस नियम के निलंबन के बावजूद अल्ट्रासाउंड क्लीनिकों को संबंधित रिकॉर्ड बनाने होंगे, केवल उनके रिकॉर्ड प्रस्तुत करने की तारीख को परिवर्तित किया गया है।

प्रावधानों के निलंबन की आलोचना

  • केंद्र सरकार के इस निर्णय पर विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार ने एक ऐसे कानून को कमज़ोर करने का प्रयास किया है, जिसका उद्देश्य लिंग-चयन और लिंग-निर्धारण की खतरनाक गतिविधि पर अंकुश लगाना है, इसके नकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं। 
  • उल्लेखनीय है कि भारत में लैंगिक पक्षपातपूर्ण लिंग चयन की प्रथा के कारण जन्म के समय से ही गायब लड़कियों की संख्या वर्ष 2001-12 की अवधि में प्रति वर्ष 0.46 मिलियन थी।
  • विशेषज्ञों का मत है कि इसके कारण लिंग निर्धारण की निंदनीय प्रथा को बढ़ावा मिलेगा।

गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 

  • वर्ष 1994 में लागू हुआ यह कानून देश भर में प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण की प्रथा को समाप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।
  • अधिनियम को लागू करने का मुख्य उद्देश्य गर्भाधान से पूर्व या पश्चात् लिंग चयन की तकनीकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना और लिंग चयनात्मक गर्भपात के लिये प्रसव पूर्व निदान तकनीक के दुरुपयोग को रोकना है।
  • इस अधिनियम के तहत अपराधों में अपंजीकृत इकाइयों में प्रसव पूर्व निदान तकनीक का संचालन करना अथवा संचालन में मदद करना शामिल है।

स्रोत: द हिंदू

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