भारतीय अर्थव्यवस्था
कमज़ोर होता रुपया भारतीय निर्यातकों की चिंता का कारण क्यों है?
- 21 Jul 2018
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संदर्भ
एक कमज़ोर मुद्रा को निर्यात के लिये अच्छा माना जाता है लेकिन भारत के संदर्भ में यह कथन बहुत हद तक स्पष्ट नहीं है। हालाँकि रुपया इस वर्ष एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली प्रमुख मुद्रा है लेकिन एक ऐसा व्यापार युद्ध जो मांग आधारित व्यापार को खत्म कर सकता है, के चलते भारतीय निर्यातक परेशान हैं। शायद ही कभी ऐसा समय आया हो जब मुद्रा के उतार-चढ़ाव ने निर्यात पर असर डाला हो लेकिन इस बार यह उतार-चढ़ाव भारतीय निर्यात को प्रभावित कर रहा है।
व्यापार युद्ध है भारतीय निर्यातकों की चिंता का प्रमुख कारण
- दुनिया में चल रहे व्यापार युद्ध के कारण निर्यात संभावनाओं की स्थिति कमज़ोर हुई है।
- चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया के विपरीत भारत विश्व स्तर पर बड़ी आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा नहीं है।
- अमेरिका और चीन के बीच व्यापार तनाव ने वियतनाम जैसे निर्यात-निर्भर देशों को अपने स्थानीय बाज़ारों में बढ़ रहे चीनी उत्पादों के खिलाफ सुरक्षित रहने के लिये प्रेरित किया है।
कमज़ोर होता रुपया भी है चिंता का कारण
- भारत सकल घरेलू उत्पाद में निर्यात क्षेत्र का योगदान केवल 12 प्रतिशत है और इसके ख़राब प्रदर्शन के लिये रुपए की मज़बूती को ज़िम्मेदार माना जा रहा है।
- रुपए का यह स्तर विनिर्माण क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा क्योंकि आयात की घरेलू कीमतें बढ़ जाएंगी।
भारत को करना पड़ेगा प्रतिस्पर्द्धा का सामना
- चूँकि तुर्की, ब्राज़ील, अर्जेंटीना, मेक्सिको, रूस और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों की मुद्राएँ तेज़ी से कमज़ोर पड़ रही हैं, इसलिये भारत को उन बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ सकता है।
तेल की बढाती कीमतें और विदेशी वस्तुओं के कारण चालू घाटे में वृद्धि
- तेल की बढ़ती कीमतों और और साथ ही विदेशों में बने इलेक्ट्रॉनिक सामानों के प्रति भारतीयों के लगाव के साथ-साथ व्यापार की प्रतिकूल शर्तों से देश का चालू खाता घाटा बढ़ सकता है।
निष्कर्ष
- बढ़ती तेल की कीमतों के साथ डॉलर के मुकाबले रुपए की कमज़ोरी ने भारत के आयात बिल में वृद्धि की है।
- मूल्यह्रास के बावजूद, बढ़ते संरक्षणवाद, वैश्विक विकास की मंद गति और घरेलू आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान के कारण निर्यात वृद्धि कमज़ोर रही है।