बाल यौन शोषण के संबंध में डब्ल्यू.एच.ओ. ने जारी किये दिशा-निर्देश | 27 Nov 2017

चर्चा में क्यों?

बाल यौन शोषण एक बहुस्तरीय समस्या है, जो बच्चों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और अच्छे रहन-सहन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। दुनिया भर के व्यापक अनुसंधान दर्शाते हैं कि लंबे समय तक बच्चों के साथ हिंसा और शोषण न केवल उनकी शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक स्थिति को क्षतिग्रस्त करते हैं, बल्कि इसका असर उनके सामाजिक जीवन पर भी पड़ता है। इसी बात को मद्देनज़र रखते हुए हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) द्वारा यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों और किशोर/किशोरियों की समस्या के निदान हेतु दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं। 

  • इन दिशा-निर्देशों के तहत स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं जैसे - सामान्य चिकित्सकों, स्त्री रोग विशेषज्ञों, बच्चों के चिकित्सकों, नर्सों और अन्य लोगों के संबंध में प्रदत्त सिफारिशों को आगे बढ़ाया गया है। 
  • इसका लाभ यह होगा कि अब इन लोगों द्वारा यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों को बिना किसी पुलिस सत्यापन के सीधे स्वीकार किया जा सकता है अथवा निदान और उपचार के दौरान यौन शोषण की पहचान की जा सकती है।

भारत द्वारा इन दिशा-निर्देशों का स्वागत किया गया

  • भारतीय डॉक्टरों द्वारा इन नए दिशा-निर्देशों का स्वागत किया गया है। हालाँकि, इस संबंध में यह चिंता भी व्यक्त की गई है कि यौन उत्पीड़न के कारण मात्र बच्चों की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति ही प्रभावित नहीं होती है, बल्कि इसका प्रभाव देश की समस्त विकास प्रक्रिया पर पड़ता है। ऐसे में मात्र कुछ दिशा-निर्देश देने अथवा प्रशिक्षण प्रदान करने से इस मुद्दे का हल नहीं निकाला जा सकता है। 
  • अक्सर देखने को मिलता है यौन उत्पीडन के मामलों में पीड़ित के साथ-साथ उसके परिवार वालों को भी जाँच –पड़ताल आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 
  • ऐसे में स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र पर अतिरिक्त बोझ डालना भर ही पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि इस दिशा में अन्य पक्षों पर भी कार्यवाई की जानी चाहिये। मुख्य कार्यवाई इस प्रकार की समस्याओं की उत्त्पति के संबंध में होनी आवश्यक है।
  • इस विषय में सरकार को एक ऐसी नीति को अपनाने की ज़रूरत है जिसके तहत स्वास्थ्य देखभाल के साथ-साथ मानसिक-सामाजिक-आर्थिक जैसे दूसरे अन्य पहलुओं को भी इसमें शामिल किया जा सके। 
  • विदित हो कि वर्ष 2010 में आई.ए.पी. (Indian Academy of Pediatrics) द्वारा बाल यौन शोषण के संबंध में कुछ इसी तरह के दिशा-निर्देश जारी किये गए थे। 

बच्च के संबंध में

आई.ए.पी. दिशा-निर्देशों की तरह डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा जारी नए दिशा-निर्देशों में यौन शोषण के संबंध में निम्नलिखित आयामों को शामिल किया गया है –

► बच्चे द्वारा प्रस्तुत बयान
► मेडिकल जानकारियाँ 
► शारीरिक परीक्षण तथा फोरेंसिक जाँच
► निष्कर्षों का दस्तावेज़ीकरण
► गर्भावस्था के निवारक उपचार 
► अन्य यौन संचारित रोगों का उपचार 
► मानसिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य स्थितिओं के संबंध में प्रदत्त जानकारियों आदि के बारे में बेहतर ढंग से कार्य करने तथा प्रभावी एवं आवश्यक सिफारिशों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

  • इन दिशा-निर्देशों में स्पष्ट किया गया है कि किसी भी प्रकार के बाल यौन दुर्व्यवहार का केवल तात्कालिक प्रभाव नहीं होता है, बल्कि इसका असर बच्चे के मन पर बहुत लंबे समय तक बना रहता है। 
  • इसके अंतर्गत डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा तकलीफदेह तनाव, चिंता, अवसाद, भोजन संबंधी विकार, संबंधों में तानव, आत्महत्या के प्रयासों इत्यादि को शामिल किया गया है।
  • इसके अतिरिक्त इसके तहत शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं को भी शामिल किया गया है। इनमें गर्भ धारण के जोखिम, स्त्री रोग संबंधी बीमारियों और एचआईवी सहित अन्य प्रकार के यौन संचारित संक्रमण के होने के खतरे को भी शामिल किया गया है।

बाल यौन दुर्व्यवहार और शोषण पर राष्ट्रीय गठबंधन

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा देश में बच्चों के साथ होने वाले ऑनलाइन यौन शोषण तथा दुर्व्यवहार के विरुद्ध जंग का ऐलान करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर एक गठबंधन के गठन का निर्णय लिया गया | 
  • इसका उद्देश्य बच्चों के माता-पिता, स्कूलों, समुदायों, गैर-सरकारी संगठनों तथा स्थानीय सरकारों के साथ-साथ पुलिस एवं वकीलों की इस विस्तृत सुरक्षा व्यवस्था तक पहुँच सुनिश्चित करना है, ताकि बच्चों की सुरक्षा एवं संरक्षण के संबंध में निर्मित सभी वैधानिक नियामकों, नीतियों, राष्ट्रीय रणनीतियों एवं मानकों के सटीक क्रियान्वयन को सुनिश्चित किया जा सके|

उद्देश्य

  • इस संदर्भ में बाल यौन दुर्व्यवहार और शोषण पर राष्ट्रीय गठबंधन (National Alliance on Child Sexual Abuse and Exploitation) के निम्नलिखित उद्देश्य हैं: 

► चाइल्ड पोर्नोग्राफी के संबंध में एक आम परिभाषा सहित अधिनियमों (सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, पोस्को अधिनियम) में संशोधन  करना|  
► मौजूदा सेवा वितरण प्रणाली को मज़बूत बनाने के लिये एक पोर्टल इनक्लूसिव हॉटलाइन सहित महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में एक बहु-सदस्यीय सचिवालय की स्थापना करना| 
► नेटवर्किंग और जानकारी साझा करने के लिये सरकारी/गैर-सरकारी संगठनों और अन्य बाल अधिकार कार्यकर्त्ताओं के लिये एक मंच प्रदान करना। 
► बच्चों के ऑनलाइन शोषण की रोकथाम के संदर्भ में सर्वोत्तम तरीकों और सफलता की कहानियों (सक्सेस स्टोरीज़) व दस्तावेज़ों का प्रयोग| 
► ऑनलाइन बाल उत्पीड़न और शोषण से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर माता-पिता, शिक्षकों, सेवा प्रदाताओं और बच्चों को शिक्षित तथा जागरूक करना| 
► अनुसंधान और अध्ययन के आधार पर बच्चों के अधिकारों और नीति के लिये एक मंच प्रदान करना|