रेल दुर्घटनाओं का दोषी कौन? | 21 Sep 2017
संदर्भ
देश में रेल दुर्घटनाएँ आम होती जा रही हैं| अभी पिछले एक माह के दौरान ही रेलगाड़ियों के पटरी से उतर जाने अथवा “ट्रेन डिरेलमेंट” की नौ घटनाएँ घटित हो चुकी हैं। इन रेल दुर्घटनाओं ने स्वाभाविक तौर पर यात्रियों के मध्य रेल यात्रा से संबंधित चिंताओं को बढ़ा दिया है। परन्तु इन दुर्घटनाओं के पीछे का मूल कारण क्या है, इस विषय में कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता है। रेल डिरेलमेंट की घटनाओं में दिनोंदिन हो रही वृद्धि काफी चिंताजनक है। अतः इस विषय पर विचार करना समीचीन प्रतीत होता है कि कहीं ये दुर्घटनाएँ मानवीय त्रुटि अथवा रेलवे की जीर्ण अवसंरचना का परिणाम तो नहीं हैं?
रेल दुर्घटनाओं का कारण क्या है?
भारतीय रेलवे एक विशाल संगठन है। रेलों के संचालन में विभिन्न स्तरों पर तथा जिम्मेदारियों का आवंटन होता है। अतः जब भी कोई दुर्घटना घटित होती है तो उसका ज़िम्मेदार संबंधित विभाग को ही ठहराया जाता है।
रेलवे बोर्ड के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012-13 और 2016-17 के मध्य होने वाली अधिकांश दुर्घटनाएँ इंजीनियरिंग (सिविल) निदेशालय की लापरवाही के कारण हुई थीं।
विडंबना यह है कि वर्ष 2012-13 से इंजीनियरिंग निदेशालय की लापरवाही के कारण होने वाली रेल दुर्घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है।
जब दुर्घटनाएँ ट्रैक के फेल होने, फिलिंग इत्यादि के कारण होती हैं तो उनकी ज़िम्मेदारी इंजीनियरिंग निदेशालय की होती है। वस्तुतः जब ट्रेन डिरेलमेंट जैसी घटनाओं में वृद्धि होती है तो इस निदेशालय के कार्यों में भी वृद्धि हो जाती है।
कुछ चिंताजनक आँकड़े
वर्ष 2012-13 से 2016-17 की रेल दुर्घटनाओं के सरकारी आँकड़ों से भारतीय रेलवे की एक पेचीदा तस्वीर उभर कर आती है। हालाँकि, वर्ष 2016-17 में होने वाली रेल दुर्घटनाओं की संख्या सबसे कम थी, परन्तु इसी वर्ष प्रत्येक दुर्घटना में होने वाली मौतों की संख्या सबसे अधिक थी।
दरअसल, वर्ष 2012-13 से 2016-17 के दौरान प्रत्येक वर्ष “ट्रेन डिरेलमेंट” की घटनाओं में वृद्धि हुई। विदित हो कि वर्ष 2012-13 और 2015-16 में हुई कुल रेल दुर्घटनाओं की तुलना में वर्ष 2016-17 में ट्रेन डिरेलमेंट के कारण होने वाली मौतों की संख्या अधिक थी।
वर्ष 2012-13 और 2016-17 के मध्य इंजीनियरिंग निदेशालय की लापरवाही के कारण ट्रेन डिरेलमेंट की 44% घटनाएँ घटित हुई थी।
वर्ष 2012-13 और 2016-17 के मध्य ट्रेन डिरेलमेंट की सबसे अधिक घटनाएँ ब्रॉड गेज मार्गों पर हुई थी, जिनमें इन रेलों की गति अधिकतम (160 किलोमीटर/घंटा) थी। बढ़ती दुर्घटनाओं के लिये मात्र जीर्ण अवसंरचना को ही दोषी करार नहीं दिया जा सकता है।
वर्ष 2012-13 और वर्ष 2016- 17 के मध्य रेलवे स्टाफ की लापरवाही के चलते 47% रेल दुर्घटनाएँ हुई थी। इनमें से 5% से भी कम दुर्घटनाएं उपकरणों की खराबी अथवा तोड़-फोड़ के कारण हुई थी।
क्या हो समाधान?
रेलवे की सुरक्षा पर बड़ी राशि खर्च करने पर भी दुर्घटनाओं का शिकार हुए लोगों के जीवन को नहीं बचाया जा सकता। अतः इसके लिये सावधानी और सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।
रेलवे की सुरक्षा और संरक्षण से संबंधित स्थायी समिति की 12वीं (2016-17) रिपोर्ट में रेलवे स्टाफ की लापरवाही (जिसमें रेलवे संपत्ति की देखभाल न करना, खराब मरम्मत, शॉर्टकट लेना और सुरक्षा नियमों का पर्यवेक्षण न करना शामिल हैं) के कारण होने वाली दुर्घटनाओं से बचाव के उपायों की आवश्यकता को रेखांकित किया गया था।
इस वर्ष के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यात्रियों की सुरक्षा हेतु पाँच वर्षों के लिये एक ट्रिलियन रुपए के ‘राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष’ के गठन की भी घोषणा की थी।
वर्तमान वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार बजटीय समर्थन के अंतर्गत 15,000 करोड़ की राशि उपलब्ध कराएगी और 10,000 करोड़ रुपए का ट्रांसफर रेलवे सुरक्षा फंड में कर करेगी, जबकि शेष 5,000 करोड़ रुपए को रेलवे के आंतरिक स्रोतों और ‘मूल्यह्रास रिज़र्व फंड’ (Depreciation Reserve Fund) में रखा जाएगा।
आवश्यकता है कि इस राशि का उपयोग रेल दुर्घटनाओं में पीड़ित मनुष्यों के बचाव और जीर्ण अवसंरचनात्मक संपत्ति के प्रतिस्थापन और नवीकरण को सुनिश्चित करने में किया जाए।