कृषि
सफेद मक्खियाँ : कृषि के लिये खतरा
- 26 May 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, सफेद मक्खियों की विदेशज प्रजाति (Exotic Invasive Whiteflies) भारत में कृषि, बागवानी और वानिकी फसल पौधों की उपज को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से क्षति पहुँचा रही है।
- सफेद मक्खियाँ/व्हाइटफ्लाइज़ छोटे, रस चूसने वाले कीट हैं जो सब्जियों तथा सजावटी पौधों में प्रचुर मात्रा में उपस्थित हो सकते हैं (विशेष रूप से गर्म मौसम के दौरान)। ये कीट चिपचिपे मधुरस (Honeydew) का उत्सर्जन करते हैं जिसके कारण पत्तियों में पीलापन आ जाता है अथवा वे समाप्त हो जाती हैं।
प्रमुख बिंदु:
सफेद मक्खियों का प्रसार:
- सर्वप्रथम दर्ज की गई सर्पिल आकार की आक्रामक सफेद मक्खी (Aleurodicus dispersus) अब जम्मू और कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत में पाई जाती है।
- इसी तरह, वर्ष 2016 में तमिलनाडु के पोलाची में दर्ज की गई झुर्रीदार सर्पिल सफेद मक्खी (Aleurodicus rugioperculatus) अब अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप के द्वीपों सहित पूरे देश में फैल गई है।
- उपरोक्त दोनों प्रजातियों की उपस्थिति क्रमशः 320 और 40 से अधिक पादप प्रजातियों पर दर्ज की गई है।
- सफेद मक्खी की अधिकांश प्रजातियाँ कैरिबियाई द्वीपों या मध्य अमेरिका की स्थानिक हैं।
प्रसार के कारण:
- सभी आक्रामक सफेद मक्खियों के लिये मेज़बान पौधों की संख्या में वृद्धि का कारण इनकी बहुभक्षी प्रकृति (विभिन्न प्रकार के खाद्य से भोजन प्राप्त करने की क्षमता) और विपुल प्रजनन है।
- पौधों के बढ़ते आयात और बढ़ते वैश्वीकरण एवं लोगों के आवागमन ने भी विभिन्न किस्मों के प्रसार तथा बाद में आक्रामक प्रजातियों के रूप में उनके विकास में सहायता की है।
चिंताएँ:
- फसलों को नुकसान:
- सफेद मक्खियाँ उपज को कम करती हैं और फसलों को भी नुकसान पहुँचाती हैं। भारत में लगभग 1.35 लाख हेक्टेयर नारियल और ऑयल पाम क्षेत्र झुर्रीदार सर्पिल सफेद मक्खी (Rugose Spiralling Whitefly) से प्रभावित हैं।
- अन्य आक्रामक सफेद मक्खियों को मूल्यवान पादप प्रजातियों, विशेष रूप से नारियल, केला, आम, सपोटा (चीकू), अमरूद, काजू और सजावटी पौधों जैसे- बॉटल पाम, फाल्स बर्ड ऑफ पैराडाइज़, बटरफ्लाई पाम तथा महत्त्वपूर्ण औषधीय पौधों पर अपनी मेज़बान सीमा का विस्तार करते हुए पाया गया है।
- कीटनाशकों की प्रभावशीलता:
- उपलब्ध सिंथेटिक (कृत्रिम/संश्लेषित) कीटनाशकों का उपयोग करके सफेद मक्खियों को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है।
सफेद मक्खियों का नियंत्रण:
- नियंत्रण के जैविक तरीके:
- इन मक्खियों को वर्तमान में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कीट परभक्षी, परजीवी (कीटों के प्राकृतिक शत्रु जो हरित गृहों और खेतों में कीटों का जैविक नियंत्रण प्रदान करते हैं) और एंटोमोपैथोजेनिक कवक (कवक जो कीटों को मार सकते हैं) द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है।
- व्हाइटफ्लाइज़ के लिये विशिष्ट एंटोमोपैथोजेनिक कवक पृथक्कृत (आइसोलेटेड), शोधित, प्रयोगशाला में विकसित अथवा बड़े पैमाने पर उत्पादित होते हैं और इन्हें प्रयोगशाला में पाले गए संभावित शिकारियों (कीट परभक्षी) तथा परजीवियों के साथ संयोजन में सफेद मक्खियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में प्रयोग में लाया जाता है
- ये न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं बल्कि आर्थिक रूप से भी व्यवहार्य (सुसंगत) हैं।
फसलों पर आक्रमण करने वाले अन्य कीट
- यह एक खतरनाक सीमा-पारीय कीट है और प्राकृतिक वितरण क्षमता तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा प्रस्तुत अवसरों के कारण इसमें तेज़ी से फैलने की उच्च क्षमता है।
- वर्ष 2020 में कृषि निदेशालय ने असम के उत्तर-पूर्वी धेमाजी ज़िले में खड़ी फसलों पर आर्मीवर्म कीटों के हमले की सूचना दी तथा खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने आर्मीवर्म द्वारा उत्पन्न अंतर्राष्ट्रीय खतरे की प्रतिक्रिया के रूप में FAW नियंत्रण के लिये एक वैश्विक कार्रवाई शुरू की है।
- टिड्डी (प्रवासी कीट) एक बड़ी, मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय तृण-भोजी परिग (Grasshopper) है जिसकी उड़ान क्षमता बहुत मजबूत होती है। ये व्यवहार परिवर्तन में साधारण तृण-भोजी कीटों से अलग होते हैं तथा झुंड बनाते हैं जो लंबी दूरी तक प्रवास कर सकते हैं।
- वयस्क टिड्डियाँ एक दिन में अपने वज़न के बराबर (यानी प्रति दिन लगभग दो ग्राम ताज़ा शाक/वनस्पति) भोजन कर सकती है। टिड्डियों का एक बहुत छोटा सा झुंड भी एक दिन में उतना भोजन करता है जितना कि लगभग 35,000 लोग, जो फसलों और खाद्य सुरक्षा के लिये विनाशकारी है।
- यह (Pectinophora gossypiella), एक कीट है जिसे कपास की खेती को नुकसान पहुँचाने के लिये जाना जाता है।
- पिंक बॉलवर्म एशिया के लिये स्थानिक है लेकिन विश्व अधिकांश कपास उत्पादक क्षेत्रों में एक आक्रामक प्रजाति बन गई है।
आगे की राह
- आक्रामक प्रजातियों की उपस्थिति, उनके मेज़बान पौधों और भौगोलिक विस्तार की घटना की निरंतर निगरानी किये जाने की आवश्यकता है और यदि ज़रूरी हो तो जैव-नियंत्रण कार्यक्रमों के लिये संभावित प्राकृतिक साधनों का आयात भी किया जा सकता है।