भारतीय अर्थव्यवस्था
व्हाइट लेबल एटीएम
- 17 Jul 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में व्हाइट लेबल एटीएम (White Label ATMs-WLAs) की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने व्हाइट लेबल ATM संचालकों/ऑपरेटर्स (WLAOs) को RBI तथा मुद्रा कोष से थोक में नकदी खरीदने की अनुमति दी है।
- इस अनुमति से व्हाइट लेबल एटीएम को कार्यक्षमता प्राप्त होगी, क्योंकि इनमें हमेशा नकदी की कमी होती है। इन ATMs में नकदी कम होने का मुख्य कारण बैंकों द्वारा स्वस्थापित ATMs को वरीयता दिया जाना है।
- अब तक WLAs में नकदी के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी प्रायोजक बैंक की होती थी।
- WLAO को RBI से सीधे नकदी प्राप्त करने की अनुमति देकर देश भर में और अधिक WLATM खोलने के लिये प्रोत्साहित करेगा जिससे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलेगा
‘व्हाइट लेबल ATM’
- गैर-बैंक संस्थाओं द्वारा स्वामित्व एवं संचालित ATM को ‘व्हाइट लेबल एटीएम’ (WLA) कहा जाता है।
- कंपनी अधिनियम 1956 के तहत भारत में शामिल गैर-बैंक संस्थाओं को WLAs के संचालन की अनुमति है।
- भुगतान और निपटान प्रणाली (Payment and Settlement Systems- PSS) अधिनियम 2007 के तहत RBI से प्राधिकरण प्राप्त करने के बाद गैर-बैंक संस्थाओं को भारत में WLAs स्थापित करने की अनुमति है।
- इस तरह की गैर-बैंक संस्थाओं का न्यूनतम नेटवर्थ 100 करोड़ रुपए होना चाहिये।
- टाटा कम्युनिकेशंस पेमेंट सॉल्यूशंस लिमिटेड (Tata Communications Payment Solutions Limited- TCPSL) देश में व्हाइट लेबल एटीएम खोलने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अधिकृत पहली कंपनी थी। इसे 'इंडिकैश' (Indicash) नाम से लॉन्च किया गया था।
- WLAs सामान्य ATM की तरह ही होते हैं। हालाँकि WLA में नकद जमा या नकद स्वीकृति की सुविधा नहीं है।
- ये मशीनें आमतौर पर गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान (Non-Banking Financial Institutions- NBFC) द्वारा लगाई जाती हैं।
ब्राउन लेबल एटीएम
- यह ATM लागत को साझा करने की अवधारणा पर आधारित है।
- जब बैंक अपने ATM संबंधी कामकाज किसी तीसरे पक्ष को सौंप देते हैं, तो उस तीसरे पक्ष द्वारा लगाए गए ATM ब्राउन लेबल ATM कहलाते हैं। इन ATM को नकदी उसी बैंक द्वारा ही मुहैया कराई जाती है।
- इस ATM पर उसी बैंक का लोगो भी लगा होता है जिसने उस तीसरे पक्ष को काम सौंपा है।