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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सफेद बौना तारा

  • 09 Dec 2019
  • 4 min read

प्रीलिम्स के लिये:

सफेद बौना तारा

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खगोलविदों को एक विशाल ग्रह द्वारा सफेद बौने तारे (WDJ0914+1914) की परिक्रमा किये जाने का अप्रत्यक्ष प्रमाण मिला है।

White Orbit

प्रमुख बिंदु :

  • रिपोर्ट के अनुसार इस तरह के ग्रह के पाए जाने की यह पहली घटना है।
  • इस ग्रह को प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा जा सकता, इस ग्रह के प्रमाण इसके वाष्पीकृत वातावरण में उपस्थित गैस की डिस्क (हाइड्रोजन, आक्सीजन, सल्फर) के रूप में मिले हैं।
  • यह ग्रह प्रति 10 दिन में सफेद बौने तारे की एक बार परिक्रमा करता है।
  • चिली में स्थापित एक विशाल दक्षिणी यूरोपीय वेधशाला द्वारा इन गैसीय डिस्क का पता लगाया गया।
  • पिछले दो दशकों से यह शोध किया जा रहा था कि ग्रहीय तंत्र, सफेद बौने तारों में भी संभव है।
    • इस दिशा में पहली बार एक वास्तविक ग्रह खोजा गया है।

सफेद बौना तारा :

  • किसी तारे के केंद्र में मौजूद मज़बूत गुरुत्व के कारण कोर का तापमान और दबाव बहुत ही ज़्यादा रहता हैं।
  • सफेद बौने तारों में उपस्थित हाइड्रोजन नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया में पूरी तरह से खत्म हो जाता है।
  • तारों में संलयन की प्रक्रिया ऊष्मा और बाहर की तरफ दबाव उत्पन्न करती है, इस दबाव को तारों के द्रव्यमान से उत्पन्न गुरुत्व बल संतुलित करता है।
  • तारे के बाह्य कवच के हाइड्रोजन के हीलियम में परिवर्तित होने से ऊर्जा विकिरण की तीव्रता घट जाती है एवं इसका रंग बदलकर लाल हो जाता है। इस अवस्था के तारे को ‘लाल दानव तारा’ (Red Giant Star) कहा जाता है।
  • इस प्रक्रिया में अंततः हीलियम कार्बन में और कार्बन भारी पदार्थ, जैसे- लोहे में परिवर्तित होने लगता है।
  • यदि किसी तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से कम या बराबर (चंद्रशेखर सीमा) होता है तो वह लाल दानव से ‘सफेद बौना’ (White Dwarf) और अंततः ‘काला बौना’ (Black Dwarf) में परिवर्तित हो जाता है।

चंद्रशेखर सीमा (Chandrashekhar Limit):

  • एस. चंद्रशेखर भारतीय मूल के खगोल भौतिकविद् थे,जिन्होंने सफेद बौने तारों के जीवन अवस्था के विषय में सिद्धांत प्रतिपादित किया।
  • इसके अनुसार, सफेद बौने तारों के द्रव्यमान की ऊपरी सीमा सौर द्रव्यमान का 1.44 गुना है, इसको ही चंद्रशेखर सीमा कहते है।
  • एस. चंद्रशेखर को वर्ष 1983 में नाभिकीय खगोल भौतिकी में डब्ल्यू. ए. फाउलर के साथ संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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