मुद्रा हस्तातंरण का विवाद और RBI | 02 Sep 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) के केंद्रीय बोर्ड ने केंद्र सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए हस्तांतरित करने का फैसला किया था। अनुमानतः RBI द्वारा दिये जा रहे इस धन से केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था में वित्त की आपूर्ति बढ़ाना चाहती है जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
प्रमुख बिंदु:
- केंद्र सरकार को वित्त हस्तांतरण का यह फैसला RBI के केंद्रीय बोर्ड द्वारा अपनाए गए नए आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क (Economic Capital Framework-ECF) के तहत लिया गया है।
- ज्ञातव्य है कि बीते वर्ष RBI ने अपने ECF की समीक्षा हेतु RBI के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था।
- वित्त हस्तांतरण के अतिरिक्त समिति ने प्रत्येक 5 वर्षों में RBI के आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क की समीक्षा का भी सुझाव दिया था।
- गौरतलब है कि RBI की परिचालन और आकस्मिक ज़रूरतों के अतिरिक्त उसकी बैलेंस शीट (Balance Sheet) में जो राशि बचती है उसका कुछ हिस्सा केंद्र सरकार को हस्तांतरित कर दिया जाता है और यह प्रक्रिया कमोबेश प्रत्येक वर्ष की जाती है।
- इस वर्ष भी रिज़र्व बैंक द्वारा सामान प्रक्रिया अपनाई गई है, परंतु इस वर्ष हस्तांतरण की राशि इतनी अधिक है कि वह मुख्य धारा में चर्चा का विषय बन गई है।
- ज्ञातव्य है कि बीते वर्ष RBI ने केंद्र सरकार को सिर्फ 50,000 करोड़ रुपए की राशि हस्तांतरित की थी, जो इस वर्ष 146.8 प्रतिशत बढ़ गई है।
- इसे पूर्व RBI ने वर्ष 2014-15 में केंद्र सरकार को 65,896 करोड़ रुपए हस्तांतरित किये थे, जो कि अब तक की सबसे अधिक राशि थी।
हस्तांतरण को लेकर विवाद
- इतने बड़े पैमाने पर हो रहे हस्तांतरण ने इन चिंताओं को गहरा दिया है कि सरकार अपनी तत्काल खर्च की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये RBI के धन का प्रयोग कर रही है और यदि ऐसा ही होता रहा तो RBI देश के केंद्रीय बैंक से सरकार का बैंक बन जाएगा।
- सैद्धांतिक तौर पर RBI जैसी संस्थाओं को सभी प्रकार के सरकारी प्रभाव से स्वतंत्र माना जाता है, परंतु वास्तव में दुनिया भर की सरकारें केंद्रीय बैंकों के माध्यम से देश की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करने की कोशिश करती रहती हैं।
- भारत में केंद्र सरकार द्वारा RBI के गवर्नर की नियुक्ति भी इसी का उदाहरण माना जाता है।
- इससे पूर्व वित्त विधेयक (Finance Bill) में संशोधन करते हुए केंद्र सरकार ने यह प्रावधान किया था कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India-SEBI) को अपने सरप्लस का एक निश्चित हिस्सा सरकार के संचित निधि (Consolidated Funds) में जमा करना पड़ेगा।
- कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि सरकार को अपनी वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिये RBI जैसे सार्वजनिक संस्थानों के पास उपलब्ध अतिरिक्त धन का उपयोग करने का अधिकार है।
- हालाँकि इस निर्णय के आलोचकों का तर्क है कि RBI और SEBI जैसे नियामक संस्थानों की वित्तीय संपत्ति को छीनना उनकी स्वतंत्रता के साथ समझौता करने के सामान है।
RBI की आय के स्रोत
- RBI कई तरीकों से पैसा कमाता है। उदाहरण के लिये खुले बाज़ार की क्रियाएँ, जिसमें RBI अर्थव्यवस्था के अंतर्गत मुद्रा की आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिये सरकारी बॉण्ड (Bonds) को खरीदता व बेचता है।
- बॉण्ड पर मिलने वाले ब्याज़ के अतिरिक्त, RBI को बॉण्ड की कीमत में अनुकूल परिवर्तन होने से भी काफी लाभ प्राप्त होता है। अतः बॉण्ड से होने वाली आय RBI की आय का प्रमुख स्रोत मानी जाती है।
- इसके अतिरिक्त RBI को विदेशी मुद्रा बाज़ार से भी कुछ आय प्राप्त होती है।
- हालाँकि अन्य वाणिज्यिक बैंकों के विपरीत RBI का प्राथमिक उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है, बल्कि रुपए के मूल्य को संरक्षित करना है।
आगे की राह
- सरकार को उम्मीद है कि वह इस साल अपने 3 प्रतिशत राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को RBI से प्राप्त धन की मदद से हासिल कर लेगी।
- RBI से हस्तांतरित धन का प्रयोग सरकार द्वारा किसी राजकोषीय प्रोत्साहन योजना पर खर्च किया जा सकेगा, जो कि अर्थव्यवस्था में मंदी से निपटने के लिये सरकार को मदद करेगी।
- RBI के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने पिछले साल चेतावनी दी थी कि जो सरकारें केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती हैं, उन्हें अंततः अर्थव्यवस्था की कमज़ोर स्थिति का सामना करना पड़ता है।
- देश के केंद्रीय बैंक RBI का इसी प्रकार सरकार की बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति का एक साधन बन जाने पर विरल आचार्य द्वारा दी गई चेतावनी सच साबित हो सकती है।
- इसका प्रभाव यह होगा कि रुपए को संरक्षित करने की RBI की क्षमता पर से अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास उठ जाएगा एवं भारत का विदेशी निवेश और अधिक कम हो जाएगा।
- अतः केंद्र सरकार को देश के केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को बरकरार रखते हुए मंदी से निपटने के अन्य रास्तों पर भी विचार करना चाहिये ताकि विदेशी निवेशकों का भरोसा भी बना रहे और अर्थव्यवस्था पुनः विकास की पटरी पर आ जाए।