अंतर्राष्ट्रीय संबंध
व्हाट्सएप को विनियमित करने संबंधी याचिका पर सुनवाई
- 17 Jan 2017
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सन्दर्भ
हाल ही में व्हाट्सएप को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, अतः अब इस संबंध में सरकारी नियम बनाए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में व्हाट्सएप पर आरोप है कि उसने अपनी सहयोगी सोशल नेट्वर्किंग साइट फेसबुक से उपभोक्ताओं की निजी जानकारियाँ साझा की हैं, यह व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- 2016 में लागू की गई निजता संबंधी नई नीति के तहत व्हाट्सएप, फेसबुक के साथ उपयोगकर्ताओं के डेटा साझा करता है। याचिकाकर्ता का कहना था कि इससे न सिर्फ उपभोक्ता का ब्यौरा, बल्कि उसकी निजी बातचीत भी गलत हाथों में जा सकती है।
- प्रथम दृष्टया सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि आप मुफ्त सेवा का उपयोग करते हुए निजता के अधिकारों का दावा नहीं कर सकते, लेकिन बाद में जस्टिस खेहर और डी. वाई. चन्द्रचूड़ की बेंच ने इस मामले पर सरकार, भारतीय दूरसंचार नियामक, व्हाट्सएप एवं फेसबुक को नोटिस जारी करके इसका जवाब मांगा है।
- याचिका में कहा गया है कि भारत सरकार को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिये। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि भारतीय दूरसंचार नियामक इस संबंध में उपयुक्त कदम उठाने में विफल रहा है।
क्यों है विवाद?
- दुनिया भर में चर्चित एवं सबसे ज़्यादा लोकप्रिय मैसेजिंग सेवा ‘व्हाट्सएप’ ने 26 सितंबर, 2016 से अपने उपयोगकर्ताओं की जानकारी फेसबुक के साथ साझा करने का फैसला किया था।
- हालाँकि, तब भी उपयोगकर्ताओं की जानकारी फेसबुक के साथ साझा करने के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने मैसेजिंग साइट व्हाट्सएप से कहा था कि वह 25 सितंबर, 2016 तक के उपयोगकर्ताओं की जानकारियाँ फेसबुक से साझा नहीं करे। विदित हो कि इस तारीख से एप्पलीकेशन की निजता की नई नीति लागू हो गई है| अतः नई नीति लागू होने के बाद के उपयोगर्ताओं की जानकारियाँ साझा की जा सकती हैं।
- दरअसल, अब इस नई याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसलें को भी चुनौती दी गई है जिसमें न्यायालय ने व्हाट्सएप की नई नीतियाँ लागू होने के बाद उपयोगकर्ताओं की जानकारियाँ साझा करने को सही ठहराया था।
निष्कर्ष
- वस्तुतः निजता का आशय किसी व्यक्ति को यह तय करने का अधिकार कि किस हद तक वह दूसरों के साथ स्वयं को साझा करना चाहता है। निश्चित रूप से किसी को भी इस बात का हक है कि वह स्वयं को सबसे अलग कर ले और किसी को भी उसकी निजी ज़िदंगी में ताकने-झाँकने का अधिकार न हो।
- निजता का अधिकार (Right to privacy) के मुताबिक कोई भी इंसान किसी भी व्यक्ति के हर उस मामले में दखल देने का अधिकार नहीं रखता, जो मामला किसी व्यक्ति की निजता या निजी जीवन को प्रभावित करता है। अब, जब इस बहुचर्चित मामले में गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में आ चुकी है, तो उम्मीद की जानी चाहिये कि न्यायपालिका निजता के अधिकार की सुरक्षा को नया आयाम देगी।