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संविधान पीठ करेगा व्हाट्सएप मामले की सुनवाई

  • 06 Apr 2017
  • 5 min read

समाचारों में क्यों ?
विदित हो कि उच्चतम न्यायालय ने सोशल मीडिया दिग्गज ‘व्हाट्सएप’ की निजता नीति के मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया जो मामले पर सुनवाई करेगी। हालाँकि इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजे जाने का विरोध करते हुए व्हाट्सएप की तरफ से मामले के पैरवीकार अधिवक्ता ने दलील दी कि वर्ष 1962 में खड़क सिंह मामले में 6 जजों की एक संविधान पीठ ने पहले ही यह साफ़ कर दिया है कि अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार, असीमित नहीं है।

मामले की पृष्ठभूमि
गौरतलब है कि वर्ष 2017 के आरम्भ में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें  कहा गया था कि व्हाट्सएप ने अपने सहयोगी फेसबुक से, यूजर्स की निजी जानकारियाँ साझा की हैं और यह व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन है।

विदित हो कि 2016 में लागू निजता की नई नीति के तहत व्हाट्सएप, फेसबुक के साथ उपयोगकर्ताओं के डेटा साझा करता है। याचिकाकर्ता का कहना था कि इससे न सिर्फ उपभोक्ता का ब्यौरा, बल्कि उसकी निजी बातचीत भी गलत हाथों में जा सकती है।

प्रथम दृष्टया सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि आप मुफ्त सेवा का उपयोग करते हुए निजता के अधिकारों का दावा नहीं कर सकते। हाँलाकि बाद में जस्टिस खेहर और जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ की बेंच ने इस मामले पर सरकार, भारतीय दूरसंचार नियामक और व्हाट्सएप तथा फेसबुक को नोटिस जारी कर इसका जवाब मांगा था।

याचिका में कहा गया है कि भारत सरकार को अनुच्छेद 19 के तहत उसके नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिये। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि भारतीय दूरसंचार नियामक इस संबंध में उपयुक्त कदम उठाने में विफल रहा है।

क्यों है विवाद?
गौरतलब है कि दुनिया भर में चर्चित और सबसे ज़्यादा लोकप्रिय मैसेंजिंग सेवा ‘व्हाट्सएप’ ने 26 सितंबर 2016 से उपयोगकर्ताओं की जानकारी फेसबुक के साथ साझा करने का फैसला किया था।

दरअसल, तब उपयोगकर्ताओं की जानकारी फेसबुक के साथ साझा करने के मामले में ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने मैसेंजिंग साइट व्हाट्सएप से कहा था कि वह 25 सितंबर 2016 से पहले के अपने यूजर्स की जानकारियाँ फेसबुक से साझा नहीं करे। विदित हो कि इस तारीख से व्हाट्सएप की निजता की नई नीति लागू हो गई है अतः नई नीति लागू होने के बाद इस मैसेंजिंग साइट के यूजर्स बनने वाले लोगों की जानकारियाँ साझा की जा सकती हैं।

दरअसल उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले को भी चुनौती दी गई थी, जिसमें न्यायालय ने व्हाट्सएप की नई नीतियाँ लागू होने के बाद उपयोगकर्ताओं की जानकारियाँ साझा करने को सही ठहराया था।

निष्कर्ष
वस्तुतः निजता का अर्थ है, व्यक्ति को यह तय करने का अधिकार कि किस हद तक वह दूसरों के साथ अपने-आपको बाँटेगा। निश्चित रूप से किसी को हक है कि वह स्वयं को सबसे अलग कर ले तथा किसी को उसकी निजी जिदंगी में ताकने-झाँकने का अधिकार न हो।

निजता का अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) के मुताबिक कोई भी इंसान किसी भी व्यक्ति के हर उस मामले में दखल देने का अधिकार नहीं रखता, जो  मामला किसी व्यक्ति की निजता या निजी जीवन को प्रभावित करती है। इस बहुचर्चित मामले में अब जब गेंद उच्चतम न्यायालय के संविधान पीठ के पाले में है, तो उम्मीद की जानी चाहिये कि न्यायपालिका निजता के अधिकार की सुरक्षा को नया आयाम देगी।

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