अंतर्राष्ट्रीय संबंध
आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच शांति समझौता
- 11 Nov 2020
- 9 min read
प्रिलिम्स के लियेआर्मेनिया और अज़रबैजान की भौगोलिक स्थिति, नागोर्नो-काराबाख की भौगोलिक अवस्थिति मेन्स के लियेआर्मेनिया और अज़रबैजान के मध्य विवाद की पृष्ठभूमि और रूस की भूमिका, इस विवाद का भारत पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
आर्मेनिया, अज़रबैजान और रूस ने विवादित क्षेत्र नागोर्नो-काराबाख (Nagorno-Karabakh) में चल रहे सैन्य संघर्ष को समाप्त करने के लिये एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद शुरू हुए इस विवाद के कारण अब तक हज़ारों लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी है और इसके कारण बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए हैं, इसी कारण इस विवाद को बीते कुछ वर्षों का सबसे गंभीर विवाद माना जाता है।
- आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच सैन्य संघर्ष को समाप्त करने के उद्देश्य से किये गए इस समझौते पर आर्मेनिया, अज़रबैजान और रूस (तीनों देशों) के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किये हैं।
- हालाँकि सितंबर माह में संघर्ष की शुरुआत के बाद से दोनों देशों के बीच युद्धविराम को लेकर कई समझौते किये गए हैं, किंतु इनमें से कोई भी सफल नहीं हो पाया है।
नया शांति समझौता
- शांति समझौते के मुताबिक दोनों देश सीमा पर अपनी यथास्थिति बनाए रखेंगे यानी वे उस क्षेत्र से आगे नहीं बढ़ेंगे, जहाँ उनकी सेनाएँ अभी मौजूद हैं।
- समझौते के इस प्रावधान से अज़रबैजान को काफी लाभ होगा, क्योंकि उसने सितंबर माह (जब संघर्ष की शुरुआत हुई थी) की तुलना में 15-20 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र प्राप्त कर लिया है।
- सभी प्रकार के सैन्य अभियानों को निलंबित कर दिया गया है और रूस की शांति सेना को विवादित क्षेत्र नागोर्नो-काराबाख तथा इस क्षेत्र को आर्मेनिया से जोड़ने वाले लाचिन कॉरिडोर में तैनात किया जाएगा। लगभग 2000 सैनिकों वाली यह शांति सेना पाँच वर्ष की अवधि के लिये इस क्षेत्र में तैनात की जाएगी।
- शरणार्थी और आंतरिक रूप से विस्थापित लोग इस क्षेत्र और आस-पास के क्षेत्रों में वापस लौट सकेंगे तथा दोनों पक्ष युद्धबंदियों का भी आदान-प्रदान करेंगे।
- इस कार्य के लिये नखचिवन (Nakhchivan) से अज़रबैजान तक एक नया कॉरिडोर शुरू किया जाएगा, जो कि रूस के नियंत्रण में होगा।
समझौते की आलोचना
- इस नए शांति समझौते के प्रावधान के कारण आर्मेनिया को काफी नुकसान का सामना करना पड़ेगा, यही कारण है कि इस शांति समझौते को लेकर आर्मेनिया की संसद में विरोध भी प्रकट किया जा रहा है।
- कई जानकार इस शांति समझौते को आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच शुरू हुए सैन्य संघर्ष में अज़रबैजान की जीत के रूप में देख रहे हैं।
रूस का पक्ष
- आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच लंबे समय से चल रहे इस विवाद में रूस की भूमिका अस्पष्ट है, क्योंकि रूस ने दोनों ही देशों के साथ संबंध स्थापित किये हुए हैं और वह दोनों देशों को हथियारों की आपूर्ति भी करता है।
- आर्मेनिया में रूस का एक सैन्य अड्डा है, साथ ही आर्मेनिया, रूस के नेतृत्व वाले ‘सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन’ (CSTO) का सदस्य भी है।
- इस संधि के मुताबिक, यदि आर्मेनिया पर किसी भी देश द्वारा हमला किया जाता है तो रूस, आर्मेनिया को सैन्य सहायता प्रदान करेगा, हालाँकि इस संधि के तहत विवादित क्षेत्र नागोर्नो-काराबाख को शामिल नहीं किया गया है।
- इस तरह रूस के हित दोनों ही देशों के साथ जुड़े हुए हैं, इस दृष्टि से रूस के लिये यह शांति समझौता काफी महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
आर्मेनिया-अज़रबैजान विवाद और जातीयता की भूमिका
- वर्ष 1918 में आर्मेनिया और अज़रबैजान रूसी साम्राज्य से स्वतंत्र हुए और वर्ष 1921 में वे सोवियत गणराज्य का हिस्सा बन गए।
- 1920 के दशक के प्रारंभ में दक्षिण काकेशस में सोवियत शासन लागू किया गया और तत्कालीन सोवियत सरकार ने तकरीबन 95 प्रतिशत अर्मेनियाई आबादी वाले नागोर्नो-करबाख क्षेत्र को अज़रबैजान के भीतर एक स्वायत्त क्षेत्र बना दिया।
- यद्यपि स्वायत्त क्षेत्र बनने के बाद भी इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों (आर्मेनिया और अज़रबैजान) के बीच संघर्ष जारी रहा, हालाँकि सोवियत शासन के दौरान दोनों देशों के बीच संघर्ष रोक दिया गया।
- लेकिन जैसे ही सोवियत संघ के पतन की शुरुअत हुई,आर्मेनिया और अज़रबैजान पर उसकी पकड़ भी कमज़ोर होती गई। इसी दौरान वर्ष 1988 में अज़रबैजान की सीमा के भीतर होने के बावजूद नागोर्नो-काराबाख की विधायिका ने आर्मेनिया में शामिल होने का प्रस्ताव पारित किया।
- वर्ष 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया और नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र ने एक जनमत संग्रह के माध्यम से स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया, वहीं अज़रबैजान ने इस जनमत संग्रह को मानने से इनकार कर दिया।
- सोवियत संघ के विघटन के साथ ही रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण इस क्षेत्र को लेकर आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच भी युद्ध की शुरुआत हो गई।
- उल्लेखनीय है कि आर्मेनिया और अज़रबैजान दोनों ही समय-समय पर एक-दूसरे के ऊपर नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र में जातीय नरसंहार का आरोप लगाते रहे हैं।
- अधिकतर जानकार जातीय तनाव को आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच इस संघर्ष का मुख्य कारण मानते हैं। जहाँ एक ओर अज़रबैजान का दावा है कि विवादित नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र इतिहास में उसके नियंत्रण में था, वहीं आर्मेनियाई लोगों का मानना है कि यह क्षेत्र पूर्व में आर्मेनियाई साम्राज्य का एक हिस्सा था।
- वर्तमान में इस क्षेत्र के जातीय तनाव को इस बात से समझा जा सकता है कि यह क्षेत्र मुस्लिम-बहुल अज़रबैजान का हिस्सा है और यहाँ बहुसंख्यक आर्मेनियाई ईसाई आबादी निवास करती है।
नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र
- पश्चिमी एशिया और पूर्वी यूरोप में फैले हुए नागोर्नो-काराबाख को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अज़रबैजान के एक हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है, किंतु इस क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा आर्मेनियाई अलगाववादियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- यह दक्षिण-पश्चिमी अज़रबैजान में स्थित एक पहाड़ी क्षेत्र है, जो कि तकरीबन 4,400 वर्ग किलोमीटर (1,700 वर्ग मील) तक फैला हुआ है।
- आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच विवादित नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र आर्मेनिया की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से केवल 50 किलोमीटर (30 मील) दूर स्थित है।