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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पश्चिमी घाट में साँपों की नई प्रजाति की खोज

  • 28 Sep 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?
जब साल के आरंभ में देश के पश्चिमी घाट में केंचुओं एवं मेंढकों की नई प्रजातियाँ खोजी गई थी तभी यह स्पष्ट हो गया था कि यदि यहाँ केंचुए एवं मेंढक पाए गए हैं तो (खाद्य श्रंखला के क्रमानुसार) इनके शिकारी भी यहीं कहीं होंगे। इसी तर्क को आधार बनाते हुए  वैज्ञानिकों द्वारा इनके शिकारियों की तलाश आरंभ की गई। इसी खोज का परिणाम है कि उत्तरी पश्चिमी घाटों में गैर-विषैले स्थानिक सर्पों (Non-Venomous Endemic Snake) की एक नई प्रजाति एक्वाटिक रैबडॉप्स (Aquatic Rhabdops) का पता लगाया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • ज़ूटैक्सा (Zootaxa) नामक जर्नल (इस जर्नल में नई प्रजातियों के संबंध में विवरण प्रकाशित किये जाते हैं) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, तीन फीट लंबा यह रात्रिचर सर्प (Nocturnal Snake) पानी के अंदर शिकार करता है।
  • इसकी सबसे दिलचस्प बात यह है कि एक्वाटिक रैबडॉप्स के वयस्कों की ओलिव ब्राउन (Olive Brown) त्वचा पर सफेद एवं काले रंग के धब्बे पाए जाते हैं, जबकि युवा सर्पो की ऊपरी त्वचा ओलिव ग्रीन (Olive Green) तथा निचली त्वचा पीले रंग की होती है। 
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, जीवन के अलग-अलग चरणों में इन सर्पों के रंगों में विभेदन संभवतः भिन्न-भिन्न स्थानीय निवासों के कारण भी हो सकता है। 

सर्पों के नामकरण का आधार

  • सर्पों की इन नई प्रजातियों का नाम इनकी जलीय प्रकृति के आधार पर रखा गया है। उदाहरण के तौर पर वयस्क सर्प ज़्यादातर जंगल के मीठे पानी की धाराओं में पाए गए हैं, जबकि युवा सर्पों को जल-भराव वाले क्षेत्रों में देखा गया है, जो अधिकतर चट्टानी पठारों पर उपस्थित होते हैं। 

अध्ययन में शामिल संस्थान

  • इस अध्ययन के अंतर्गत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (बेंगलुरु), इंडियन हर्पेटॉलॉजिकल सोसाइटी (पुणे), वाइल्ड-लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (देहरादून), केरल वन अनुसंधान संस्थान (पीची), कॉलेज ऑफ वेटरीनरी साइंस (पोकोड) और नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम (लंदन, यूके) के वैज्ञानिकों द्वारा साथ मिलकर काम किया गया। 

सर्पों की गलत पहचान

  • ध्यातव्य है कि एक्वाटिक रैबडॉप्स की नई प्रजातियों को अभी तक ओलिव फारेस्ट स्नेक (Olive Forest Snake) का एक रूप माना जाता था। इसे वर्ष 1863 में पहली बार उल्लिखित किया गया था। 
  • हालाँकि, इस नए अध्ययन में इस बात की पुष्टि की गई है कि एक्वाटिक रैबडॉप्स एक अलग प्रकार का सर्प होता है। न केवल इनके रंग अलग-अलग होते हैं, बल्कि इनके पैटर्नों में भी भिन्नता होती है।
  • इतना ही नहीं इनके आकार, आकृति और संरचना के साथ-साथ आनुवंशिक बनावट में भी भिन्नता पाई जाती है।

इन सर्पों की स्थानिकता

  • एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में ही उपस्थित होने के कारण सभी रैबडॉप्स सर्पों को भारत की स्थानिक प्रजाति के रूप में उल्लिखित किया जाता है। 
  • ध्यातव्य है कि ओलिव फारेस्ट स्नेक रैबडॉप्स ऑलिवेसेयस (Rhabdops Olivaceus) भारत के केवल पश्चिमी घाट में ही पाए जाते हैं, जबकि द्वि-रंगी फारेस्ट स्नेक, रैबडॉप्स बायइकलर (Rhabdops Bicolor) उत्तर-पूर्व में कुछ इलाकों में पाए जाते हैं। 
  • जलीय रैबडॉप्स ​​भी केवल उत्तरी पश्चिमी घाटों के लेटराइट पठारों गोवा, दक्षिणी महाराष्ट्र और उत्तरी कर्नाटक में पाए जाते हैं, जो कि मानव जनित समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
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