पश्चिमी सेती विद्युत परियोजना: नेपाल | 20 Jun 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारत-नेपाल संबंध, भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि 1950, पश्चिम सेती जलविद्युत परियोजना। मेन्स के लिये:भारत-नेपाल संबंध और महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
चीन लगभग छ: वर्षों तक (2012 से 2018 तक) पश्चिमी सेती जलविद्युत परियोजना में शामिल रहा। वर्ष 2018 में चीन के बाहर होने के लगभग चार वर्षों के बाद भारत द्वारा इस परियोजना का अधिग्रहण किया जाएगा।
- इससे पहले भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा लुंबिनी का दौरा किया गया, जहांँ उन्होंने 2566वीं बुद्ध जयंती समारोह मनाया गया। नेपाल ने भी भारत को पश्चिमी सेती जलविद्युत परियोजना में निवेश करने के लिये आमंत्रित किया है।
प्रमुख बिंदु
पश्चिम सेती विद्युत परियोजना:
- यह प्रस्तावित 750 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना है, जिसे सुदूर-पश्चिमी नेपाल में सेती नदी पर बनाया जाना है। जो पिछले छह दशकों से इसका सिर्फ खाका ही निर्मित हो है।
- हाल ही में सरकार ने 1,200 मेगावाट विद्युत उत्पादन करने की क्षमता वाली एक संयुक्त भंडारण परियोजना, वेस्ट सेती और सेती नदी (SR-6) परियोजना को फिर से तैयार किया है।
- इसके भंडारण या जलाशय मानसून के मौसम के दौरान भर जाएगा और इनसे शुष्क मौसम में प्रत्येक दिन पीक आवर्स के दौरान विद्युत की उत्पादन करने के लिये पानी निकाला जाएगा।
- इसकी सफलता से नेपाल में भारत की छवि को बहाल करने और जलविद्युत परियोजनाओं के लिये भविष्य के विचारों में इसे महत्त्व देने की उम्मीद है, ऐसे समय में जब प्रतिस्पर्धा कठिन हो। इसलिये, पश्चिम सेती में भविष्य में नेपाल-भारत के शक्ति संबंधों के लिये एक परिभाषित मॉडल बनने की क्षमता है।
भारत-नेपाल ऊर्जा संबंध:
- नेपाल लगभग 6,000 नदियों और 83,000 मेगावाट की अनुमानित क्षमता के साथ विद्युत् स्रोतों में समृद्ध है।
- 6,480 मेगावाट उत्पादन के लिये वर्ष 1996 में महाकाली संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे, लेकिन भारत अभी भी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के साथ सामने नहीं आ पाया है।
- ऊपरी करनाली परियोजना, जिसके लिये बहुराष्ट्रीय GMR ने अनुबंध पर हस्ताक्षर किये हैं, ने वर्षों से कोई प्रगति नहीं की है।
- पूर्वी नेपाल की संखुवा सभा में 900 मेगावाट की अरुण-3 परियोजना को क्रियान्वित करने में भारत ने सफलता हासिल की, जिसकी नींव वर्ष 2018 में रखी गई थी और जिसे वर्ष 2023 तक पूरा करने के लिये निर्धारित किया गया है, ने हाल ही में भारत में विश्वास बनाने में मदद की है।
- वर्ष 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा के दौरान, उन्होंने कहा था कि भारत को अपनी परियोजनाओं को समय पर निष्पादित करना शुरू करना चाहिये।
- नेपाल के संविधान में एक प्रावधान है जिसके तहत प्राकृतिक संसाधनों पर किसी अन्य देश के साथ किसी भी संधि या समझौते के लिये कम से कम दो-तिहाई बहुमत से संसद के अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी। इसका मतलब यह भी होगा कि किसी भी हाइड्रो परियोजना पर हस्ताक्षर करने और निष्पादन के लिये दिये जाने से पहले शासकीय कार्यों की आवश्यकता होगी।
- नेपाल में बिजली की भारी कमी है क्योंकि यह लगभग 2,000 मेगावाट की स्थापित क्षमता के मुकाबले केवल लगभग 900 मेगावाट उत्पादित करता है। हालांँकि यह वर्तमान में भारत को 364 मेगावाट बिजली निर्यात कर रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह भारत से आयात कर रहा है।
भारत-नेपाल राजनयिक संबंध:
- नेपाल और भारत के बीच गतिरोध के कारण 2015 में आर्थिक प्रतिबंध आरोपित किया गया लेकिन ओली के बाद नए पीएम देउबा के पदभार संभालने के बाद समीकरण बदल गए, जिन्होंने हाल ही में भारत का दौरा किया, जहांँ उन्होंने भारत के साथ भाईचारे का संबंध स्थापित करने का फैसला किया ।
- नेपाल भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है और सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों के कारण अपनी विदेश नीति में विशेष महत्त्व रखता है।
- भारत और नेपाल वर्तमान नेपाल में स्थित बुद्ध के जन्मस्थान लुंबिनी के साथ हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म के संदर्भ में समान संबंध साझा करते हैं।
- दोनों देश न केवल एक खुली सीमा और लोगों की निर्बाध आवाजाही साझा करते हैं, बल्कि विवाह और पारिवारिक संबंधों के माध्यम से भी उनके बीच घनिष्ठ संबंध हैं, जिन्हें लोकप्रिय रूप से रोटी-बेटी के रिश्ते के रूप में जाना जाता है।
- 1950 की शांति और मित्रता की भारत-नेपाल संधि भारत एवं नेपाल के बीच मौज़ूद विशेष संबंधों का आधार है।
- नेपाल में उत्पन्न होने वाली नदियाँ पारिस्थितिकी और जलविद्युत क्षमता के साथ हीं भारत की बारहमासी नदी प्रणालियों को पोषित करती हैं।
- हालांँकि नवंबर 2019 में सीमा मुद्दा तब उभरा जब नेपाल ने एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था, जिसमें नेपाल के क्षेत्र के हिस्से के रूप में उत्तराखंड के कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख का दावा किया गया था। नए नक्शे में सुस्ता (पश्चिमी चंपारण ज़िला, बिहार) के क्षेत्र को भी प्रदर्शित किया जा सकता है।
आगे की राह
- जब तक भारत नेपाल के जल को महत्त्व देने के लिये सहमत नहीं हो जाता है और बिजली पर मौजूदा फोकस की समीक्षा नहीं की जाती है, तब तक आपसी अविश्वास लंबे समय में दोनों पक्षों की प्रगति की क्षमता को प्रभावित करता रहेगा।
- एक बार जब परियोजनाओं को बहुउद्देश्यीय बना दिया जाता है तो - बाढ़ नियंत्रण, नेविगेशन, मत्स्य पालन, कृषि विकास में योगदान देने वाली सिंचाई आदि के साथ पानी को उचित मूल्य प्राप्त होगा एवं बिजली की लागत मौजूदा दरों की तुलना में बहुत कम होगी और दोनों पक्षों के लोगों को एकाधिक लाभ होगा।
- बिजली व्यापार समझौता ऐसा होना चाहिये जिससे भारत नेपाल में विश्वास पैदा कर सके। भारत में अधिक नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ होने के बावजूद जलविद्युत ही एकमात्र स्रोत है जो भारत में चरम मांग का प्रबंधन कर सकता है।