विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
वेस्ट नील वायरस
- 01 Jun 2022
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:वेस्ट नील वायरस, फ्लेविवायरस, वेस्ट नील वायरस का संचरण चक्र, WHO मेन्स के लिये:वायरस से जुड़ी बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल के त्रिशूर में एक 47 वर्षीय व्यक्ति की वेस्ट नील वायरस (WNV) के कारण मृत्यु हो गई। इससे केरल का स्वास्थ्य विभाग अलर्ट पर है।
- मलप्पुरम के 6 साल के बच्चे की भी इसी संक्रमण से वर्ष 2019 की शुरुआत में मृत्यु हो गई थी।
- WNV को पहली बार वर्ष 2006 में केरल राज्य के अलाप्पुझा में रिपोर्ट किया गया था। बाद में वर्ष 2011 में इसे एर्नाकुलम केरल में भी रिपोर्ट किया गया था।
वेस्ट नील वायरस:
- परिचय:
- वेस्ट नील वायरस, वायरस से संबंधित एक फ्लेविवायरस है जो सेंट लुइस इंसेफेलाइटिस, जापानी इंसेफेलाइटिस तथा पीत ज्वर पैदा करने के लिये भी ज़िम्मेदार है।
- यह एक मच्छर जनित, सिंगल स्ट्रैंडेड RNA वायरस है।
- वैश्विक प्रसार:
- सभी प्रमुख पक्षी प्रवासी मार्गों के साथ WNV प्रकोप स्थल पाए जाते हैं।
- अफ्रीका, यूरोप, मध्य पूर्व, उत्तरी अमेरिका और पश्चिम एशिया ऐसे क्षेत्र हैं जहांँ आमतौर पर यह वायरस पाया जाता है।
- आमतौर पर अधिकांश देशों में WNV संक्रमण उस अवधि के दौरान चरम पर होता है जब वाहक मच्छर सबसे अधिक सक्रिय होते हैं तथा परिवेश का तापमान वायरस के गुणन के लिये पर्याप्त उच्च होता है।
- भारत में प्रसार:
- मुंबई में वर्ष 1952 में पहली बार मनुष्यों में WNV के विरुद्ध एंटीबॉडी का पता चला था।
- तब से दक्षिणी, मध्य और पश्चिमी भारत में वायरस की गतिविधि की सूचना मिलती रहती है।
- आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में WNV को क्यूलेक्स विष्नुई (Culex vishnui) मच्छरों से अलग किया गया था
- महाराष्ट्र में इसे क्यूलेक्स क्विंकफेसिएटस मच्छरों से अलग कर दिया गया था।
- कर्नाटक में इसे मनुष्यों से अलग कर दिया गया है।
- इसके अलावा तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और असम से एकत्र किये गए मानव सीरम में WNV न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी मौज़ूद पाई गई।
- वेल्लोर और कोलार ज़िलों में क्रमशः 1977, 1978 और 1981 में एवं 2017 में पश्चिम बंगाल में WNV संक्रमण के गंभीर मामले सामने आए।
- केरल में तीव्र एन्सेफलाइटिस प्रकोप के दौरान WNV के पूर्ण जीनोम अनुक्रम को 2013 में अलग कर दिया गया था।
- तमिलनाडु में आंखों के संक्रमण के साथ WNV का संबंध 2010 की पहली छमाही में मिस्टीरिअस फीवर की महामारी के दौरान स्पष्ट रूप से स्थापित हो गया था।
- उत्पत्ति:
- WNV पहली बार 1937 में युगांडा के वेस्ट नाइल ज़िले में एक महिला में पाया गया था।
- 1953 में नील डेल्टा क्षेत्र में पक्षियों में इसकी पहचान की गई थी। 1997 से पहले WNV को पक्षियों के लिये रोगजनक नहीं माना जाता था।
- WNV के कारण मानव संक्रमण कई देशों में 50 से अधिक वर्षों से रिपोर्ट किया जा रहा है।
- संक्रमण चक्र:
- संक्रमण का कारण प्रमुख वाहक मच्छरों की क्यूलेक्स प्रजाति है।
- पक्षी विषाणु के मेज़बान के रूप में कार्य करते हैं।
- संक्रमित मच्छर पक्षियों सहित इंसानों और जानवरों में WNV को फैलाते हैं।
- जब मच्छर भोजन के लिये संक्रमित पक्षियों को काटता है तो वे संक्रमित हो जाते हैं।
- विषाणु संक्रमित मच्छरों के खून में कुछ दिनों तक रहता है, इसके बाद वह मच्छर की लार ग्रंथियों में प्रवेश करता है।
- बाद में जब मच्छर काटता है तो वायरस मनुष्यों और जानवरों में प्रवेश कर जाता है।परिणामस्वरूप WNV गुणित रूप में फैल सकता है और बीमारी का कारण बन सकता है।
- WNV संक्रमित मांँ से उसके बच्चे में रक्त आधान के माध्यम से या प्रयोगशालाओं में वायरस के संपर्क में आने से भी फैल सकता है।
- संक्रमित मनुष्यों या जानवरों के संपर्क से संक्रमण का कोई उदाहरण नहीं पाया गया है।
- यह "पक्षियों सहित संक्रमित जानवरों को खाने से नहीं फैलता है।
- WNV रोग के लिये रोगोद्भवन अवधि आमतौर पर 2-6 दिन होती है। हालांँकि यह 2-14 दिनों तक हो सकती है, जबकि मज़बूत प्रतिरक्षा वाले लोगों में कई हफ्तों तक देखी जा सकती है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अब तक आकस्मिक संपर्क के माध्यम से WNV के मानव-से-मानव संचरण की सूचना नहीं मिली है।
- लक्षण:
- 80% संक्रमित लोगों में यह रोग स्पर्शोन्मुख है।
- शेष 20% मामलों में वेस्ट नील फीवर या गंभीर WNV बुखार, सिरदर्द, थकान, मतली, शरीर में दर्द, दाने और सूजन ग्रंथियों जैसे लक्षणों के साथ देखा जाता है।
- गंभीर संक्रमण से वेस्ट नील इंसेफेलाइटिस या मेनिन्जाइटिस, वेस्ट नाइल पोलियोमाइलाइटिस, एक्यूट फ्लेसीड पैरालिसिस जैसे न्यूरोलॉजिकल रोग भी हो सकते हैं।
- इसके अलावा WNV से ‘गुइलेन-बैरे सिंड्रोम’ और रेडिकुलोपैथी की रिपोर्टें संबंधित हैं।
- WNS वाले 150 में से लगभग 1 व्यक्ति में बीमारी के अधिक गंभीर रूप के विकसित होने की संभावना होती है।
- गंभीर बीमारी से उबरने में कई सप्ताह या महीने लग सकते हैं।
- तंत्रिका तंत्र की क्षति हमेशा के लिये हो सकती है।
- सह-रुग्णता वाले व्यक्तियों और प्रतिरक्षा में कमी वाले व्यक्तियों (जैसे प्रत्यारोपण रोगियों) में यह रोग घातक हो सकता है।
- रोकथाम के उपाय:
- पक्षियों और घोड़ों में नए मामलों का पता लगाने के लिये एक सक्रिय पशु स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली की स्थापना अनिवार्य रूप से स्थापित की जानी चाहिये।
- चूँकि जानवरों में WNV का प्रकोप मनुष्यों से पहले होता है, इसलिये पशु चिकित्सा और मानव सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रदान करना आवश्यक है।
- यूरोपियन सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने सुझाव दिया है कि यूरोपीय संघ द्वारा संभावित रक्तदाताओं का 28-दिवसीय रक्त दाता डिफरल या न्यूक्लिक एसिड परीक्षण, जो किसी प्रभावित क्षेत्र में गए हैं या रहते हैं, को लागू किया जाना चाहिये।
- इसके अलावा अंगों, ऊतकों और कोशिकाओं के दाताओं का डब्ल्यूएनवी संक्रमण परीक्षण किया जाना चाहिये, जो प्रभावित क्षेत्र में रह रहे हैं या वहाँ से लौट रहे हैं।
- उपचार:
- अभी तक WNV के लिये कोई उपचार/वैक्सीन उपलब्ध नहीं है।
- टोनरोइनवेसिव WNV रोगियों को केवल सहायक उपचार प्रदान किया जा सकता है।
विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (C) व्याख्या :
अतः विकल्प (C) सही है। |