पश्चिम बंगाल - एक प्रमुख ‘वन्यजीव तस्करी केंद्र’ | 25 Sep 2017
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सशस्त्र सीमा बल द्वारा जारी किये गए आँकड़ों से यह बात सामने आई है कि पश्चिम बंगाल एक प्रमुख ‘वन्यजीव तस्करी केंद्र’ (wildlife smuggling hub) के रूप में उभर रहा है| विदित हो कि वन्यजीव तस्करों द्वारा प्रायः 2,000 किलोमीटर की भारत-नेपाल और भारत-भूटान सीमा का अतिक्रमण कर भारत से वन्यजीवों की तस्करी की जाती है|
प्रमुख बिंदु
- सशस्त्र सीमा बल के अनुसार, सेना द्वारा वर्ष 2014 से 2017 के मध्य वन्यजीवों की तस्करी के सर्वाधिक यानी 125 मामले पश्चिम बंगाल में देखे गए थे| इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश (54 मामले), बिहार(36 मामले ) और असम (29 मामले) में भी ऐसे ही मामले दर्ज किये गए थे|
- दरअसल, इस क्षेत्र में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची 3 के अंतर्गत संरक्षित “टोके गीको” (Tokay Gecko) नामक छिपकली के व्यापार में वृद्धि हो रही है| इसके तस्कर असम,पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और बिहार में काफी सक्रिय हैं|
- टोके गीको को दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में अवैध तरीके से पकड़ा जाता है व इसके बाद इसकी तस्करी की जाती है|
- वास्तव में वर्ष 2014-17 के दौरान पकड़ी गई कुल टोके गीको की कीमत 95,10,85,000 रुपए आँकी गई थी|
- पिछले तीन वर्षों में वन्यजीवों की तस्करी से संबंधित मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है|
- वर्ष 2014-17 के दौरान टोके गीको के व्यापार से संबंधित कुल 105 मामले दर्ज किये गए थे| इसी दौरान हिरनों, उनकी त्वचा, मृत हिरनों, गैंडों और सैंड बोरा सांप (sand bora snake) की तस्करी से संबंधित भी तक़रीबन 12 मामले दर्ज किये गए|
- इसी दौरान तेंदुओं/बाघों की खाल व हड्डियों की तस्करी के 10 मामले, हाथीदाँत के 4 मामले और कछुओं से संबंधित 2 मामले भी सामने आए थे|
- विदित हो कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और वन अधिनियम के अंतर्गत प्राप्त होने वाली शक्तियों का विस्तार ऐसे सीमा सुरक्षा बलों तक भी किया जा सकता है, जो वन क्षेत्रों में तैनात हैं| इसके पीछे उद्देश्य यह है कि ये सुरक्षा बल वहाँ के वन्यजीवों की रक्षा में योगदान कर सकें|
“टोके गीको” से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
- टोके गीको एक “रात्रिचर एशियाई छिपकली” (nocturnal Asian lizard) है, जिसकी लंबाई 40 सेंटीमीटर होती है,
- नारंगी धब्बों व नीली-स्लेटी त्वचा के कारण आसानी से इसकी पहचान भी की जा सकती है|
- एक गीको की अंतर्राष्ट्रीय कीमत 80 लाख रुपए से अधिक है जो कि इसके आकार और भार पर निर्भर करती है|
- प्रायः कम भार वाली गीको को भारी बनाने के लिये उन्हें पारे अथवा मरकरी का इंजेक्शन दिया जाता है|
- दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में अनेक लोग यह मानते हैं कि गीको के माँस से बनी दवाओं से एड्स व कैंसर जैसे रोगों से बचाव किया जा सकता है|