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भूगोल

वाटर टावर्स

  • 14 Dec 2019
  • 3 min read

प्रीलिम्स के लिये:

वाटर टावर्स, सिंधु तथा उसकी सहायक नदियाँ

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और वाटर टावर्स की संवेदनशीलता

चर्चा में क्यों?

नीदरलैंड के अध्ययनकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन के अनुसार भारत, चीन और पाकिस्तान से होकर बहने वाली सिंधु तथा उसकी सहायक नदियाँ दुनिया के सबसे कमज़ोर ‘वाटर टावर्स’ (Water Towers) में से एक हैं।

प्रमुख बिंदु

  • सिंधु नदी के अलावा इस सूची में मध्य एशिया की तारिम नदी, आमू दरिया नदी और सीर दरिया नदी तथा दक्षिण एशिया की गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी भी शामिल हैं।
  • अध्ययन के अनुसार, सिंधु और उसकी सहायक नदियों की संवेदनशीलता का प्रभाव भारत के अतिरिक्त अफगानिस्तान, नेपाल और पाकिस्तान जैसे देशों पर भी देखने को मिलेगा।
  • अध्ययन के निष्कर्षों के मुताबिक दुनिया के लगभग सभी ‘वाटर टावर्स’, जिन पर विश्व के तकरीबन 1.9 बिलियन लोग निर्भर हैं, मुख्यतः जलवायु परिवर्तन के कारण खतरनाक स्थिति का सामना कर रहे हैं।

क्या होते हैं ‘वाटर टावर्स’?

  • वाटर टावर्स एक प्रकार से प्राकृतिक भंडारण टैंक होते हैं, जो हिमनदों तथा पर्वतों पर उपलब्ध बर्फ के पिघलने से भरते हैं और आस-पास रहने वाले कई लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध करते हैं।
  • हालाँकि यदि किसी कारणवश सभी हिमनद एक साथ पिघल जाएँ तो ये ‘वाटर टावर्स’ बड़ी आपदा का रूप ले सकते हैं। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन के कारण यह स्थिति काफी हद तक संभव है।

जलवायु परिवर्तन और वाटर टावर्स की संवेदनशीलता

  • जलवायु परिवर्तन का अर्थ है कि वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है और वैश्विक तापमान में जितनी अधिक वृद्धि होगी हिमनद उतनी ही तेज़ी से पिघलेंगे।
  • अध्ययन के अनुसार, यह संभव है कि गर्म तापमान के साथ वर्षा की मात्रा में भी वृद्धि हो, परंतु यह हिमनदों/ग्लेशियरों के पिघलने से पानी के नुकसान की भरपाई हेतु पर्याप्त नहीं होगा।
  • चूँकि वाटर टावर्स की संवेदनशीलता का प्रभाव किसी एक देश तक सीमित नहीं होगा, इसलिये भविष्य में पानी को लेकर युद्ध की संभावना भी काफी प्रबल है।

निष्कर्ष

  • आवश्यक है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिमनदों और पहाड़ों के संरक्षण तथा जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन नीतियों और रणनीतियों को विकसित किया जाए।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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