बंजर भूमि रूपांतरण | 20 Nov 2019

प्रीलिम्स के लिये:

बंजर भूमि एटलस, गोमल भूमि, पोरोम्बोक

मेन्स के लिये:

भूमि संसाधन से संबंधित समस्याएँ और बंजर भूमि रूपांतरण का महत्त्व

संदर्भ

बढ़ते बंजर भूमि (Wasteland) से लोगों की आजीविका और पारिस्थितिक संतुलन दोनों को खतरा है।

Wasteland conversion

प्रमुख बिंदु:

  • भारत में 14,000 वर्ग किमी. बंजर भूमि का वर्ष 2008-09 से वर्ष 2015-16 के बीच उत्पादन उपयोग (Productive Use) योग्य भूमि में रूपांतरण किया गया।
  • हाल ही में भूमि संसाधन विभाग (Land Resources Department) ने नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (National Remote Sensing Centre) के सहयोग से तैयार किये गए बंजर भूमि एटलस (Wastelands Atlas) को जारी किया।
  • यह 23 अलग-अलग प्रकार की बंजर भूमियों को मापने हेतु उपग्रह डेटा का उपयोग करता है और भूमि सुधार (Reclamation) के प्रयासों के प्रभाव को ट्रैक करता है।
  • बंजर भूमि रूपांतरण सबसे अधिक राजस्थान में हुआ, जहाँ 4,803 वर्ग किमी. बंजर भूमि को उत्पादन योग्य भूमि में बदल दिया गया।
  • राजस्थान की बंजर भूमियों में व्यापक स्तर पर सौर पार्क (Solar Park) स्थापित किये गए है, इन सौर पार्कों से प्राप्त की अक्षय ऊर्जा का औद्योगिक क्षेत्रों में प्रयोग किया जा रहा है।
  • उत्तर प्रदेश और बिहार में भी उच्च स्तर पर बंजर भूमि रूपांतरण हुआ है।

बंजर भूमि रूपांतरण का महत्त्व:

  • सरकार बंजर भूमि के रूपांतरण को प्रोत्साहित कर रही है, यह इंगित करते हुए कि भारत में विश्व की 18% जनसंख्या निवास करती है और इसके पास केवल 2.4% कृषि भूमि क्षेत्र है।
  • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये मौजूदा उत्पादन योग्य भूमि की उत्पादकता में सुधार लाने और अतिरिक्त भूमि बढ़ाने (बंजर भूमि रूपांतरण) की तत्काल आवश्यकता है।
  • यह अनुपयोगी बंजर भूमि खाद्यान्नों के उत्पादन को बढ़ाने और वनस्पति आवरण का विस्तार करने में महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है।

आगे की राह:

  • बंजर भूमि को उत्पादक उपयोग में लाने के लिये वनीकरण के प्रयासों, बुनियादी ढाँचे के विकास तथा नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं जैसे विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिये।
  • सरकार द्वारा संचालित प्रयासों के साथ ही स्थानीय निवासियों द्वारा किये जाने वाले बंजर भूमि रूपांतरण के प्रयास महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं।

पारंपरिक सार्वजनिक भूमि

(Traditional Commons Land):

  • बंजर भूमि कई अवसरों पर पारंपरिक सार्वजनिक भूमि होती है जिस पर सार्वजानिक स्वामित्त्व होता है।
  • दक्षिणी भारत में इन पारंपरिक सार्वजनिक भूमि क्षेत्रों को पोरोम्बोक (Poromboke) भूमि कहा जाता है, सार्वजनिक स्वामित्व होने के कारन इन भूमि क्षेत्रों को खरीदा या बेचा नहीं जा सकता है।
  • कर्नाटक में इसी प्रकार के सार्वजनिक स्वामित्व वाले चराई क्षेत्रों को गोमल भूमि (Gomal land) कहा जाता है।

स्रोत: द हिंदू