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क्या बांदीपुर वनाग्नि की घटना भविष्य के लिये कोई संकेत है?

  • 27 Feb 2017
  • 6 min read

गौरतलब है कि 24 फरवरी की शाम कर्नाटक राज्य के बांदीपुर टाइगर रिज़र्व (Bandipur Tiger Reserve) में लगी आग को वन अधिकारियों द्वारा मानव-निर्मित आपदा माना जा रहा है| एक अनुमान के अनुसार, इस आपदा का कारण इस क्षेत्र विशेष में रहने वाले आदिवासियों को माना जा रहा है| हालाँकि इस संबंध में अभी तक कोई वास्तविक साक्ष्य प्राप्त नहीं हो सके हैं| 

  • ध्यातव्य है कि इस उच्च – तीव्रता वाली वनाग्नि के कारण बांदीपुर टाइगर रिज़र्व के लगभग 1000 हेक्टेयर वन नष्ट हो चुके हैं|
  • इस वनाग्नि के कारण मोलेयुरु (Moleyuru), कल्केरे (Kalkere) तथा हेदियाला (Hediyala) वन क्षेत्र के उत्तर-पश्चिम भाग नष्ट हो गए हैं| यह वनाग्नि केरल में अवस्थित वायानद वन्यजीव अभयारण्य (Wayanad Wildlife Sanctuary) की ओर तेज़ी से प्रसार कर रही थी, हालाँकि वन अधिकारियों द्वारा इस संबंध में समय पर कार्यवाही किये जाने से इस दुर्घटना को और अधिक भयावह होने से बचा लिया गया|

पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र 

  • उल्लेखनीय है कि नीलगिरी बायोस्फेयर रिज़र्व  (Nilagiri Biosphere Reserve) के 87,400 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले बांदीपुर टाइगर रिज़र्व (Bandipur Tiger Reserve) तथा 32,000 हेक्टेयर वाले वायानद वन्यजीव अभयारण्य (Wayanad Wildlife Sancturay) के साथ-साथ 64,300 हेक्टेयर वाले नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान (Nagarhole National Park) तथा 32,000 हेक्टेयर वाले मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान (Mudumalai National Park) भारत के अति-संवेदनशील पारिस्थितिकी क्षेत्रों में से प्रमुख हैं|
  • ध्यातव्य है कि ये दक्षिण एशिया में जंगली हाथियों का सबसे बड़े आवास हैं| 

वनाग्नि के कारण हुआ नुकसान

  • इस वनाग्नि के कारण इस क्षेत्र का एक बहुत बड़ा वन क्षेत्र नष्ट हो गया है, हालाँकि अभी वन अधिकारी इस विषय में सटीक डेटा उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं तथापि एक अनुमान के अनुसार, इसके 40 वर्ग किलोमीटर तक फैलने की संभावना व्यक्त की जा रही है|
  • विदित हो कि बांदीपुर टाइगर रिज़र्व में इससे पहले वर्ष भी वर्ष 2009, 2012 तथा 2014 में भी ऐसी दुर्घटनाएँ घटित हो चुकी हैं| परन्तु हाल ही में हुई यह दुर्घटना पहले की सभी दुर्घटनाओं में सबसे भयावह थी|

कारण 

  • वर्ष 2012 में एनआईडीएम (National Institute of Disaster Management-NIDM) द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट “वनाग्नि आपदा प्रबंधन’ (Forest Fire Disaster Management) में कर्नाटक के जंगलों में लगने वाली आग के लिये दो प्रमुख कारणों को ज़िम्मेदार ठहराया गया था| 
  • ये दो कारण इस प्रकार थे – पहला, वन उत्पादों के संग्रहण के विषय में विवाद तथा दूसरा वन अधिकारियों तथा स्थानीय लोगों के मध्य संघर्ष की स्थिति प्रमुख कारण बताए गए|
  • कॉर्बेट फाउंडेशन (Corbett Foundation) के डायरेक्टर केदार गोरे (Kedar Gore) के कथनानुसार, भारत में वनाग्नि का मुख्य कारण प्रायः मानव-जनित कार्य ही होते है|

समाधान

  • हालाँकि इस संबंध में प्रभावी कार्यवाही करने के लिये वन अधिकारियों और स्थानीय जनजातियों को आपसी बातचीत करके इस मुद्दे को सुलझाया जाना चाहिये ताकि भविष्य में ऐसी किसी भी दुर्घटना को होने से रोका जा सके|
  • इनके कथनानुसार, वनों में रहने वाले अधिकतर जनजातीय समुदायों को वन्यजीवों की भाँति वनों में रहने तथा वन उत्पादों को इस्तेमाल करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है| इन्हें कृषि कार्यों के लिये वनों की भूमि को जोतने का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त है|
  • जंगली हाथियों द्वारा इन अधिवासियों की फसलों को नुकसान पहुँचाने तथा जंगली जानवरों द्वारा इनके बाड़े में बंधे मवेशियों को हानि पहुँचाए जाने के कारण अक्सर आदिवासी लोग जंगलों को आग लगा देते हैं ताकि इससे वन्यजीवों को हानि पहुँचाई जा सके|
  • भविष्य में इस प्रकार की किसी भी घटना को होने से रोकने के लिये आवश्यक है कि वन अधिकारियों तथा स्थानीय जनजातियों के मध्य सुलह हेतु बातचीत का सिलसिला आरंभ हो तथा वन्यजीवों के कारण आदिवासियों को हुए नुकसान की भरपाई भी की जा सके| 
  • ध्यातव्य है कि वनाग्नि को फैलने से रोक पाना संभव नहीं है| अत: इसके लिये अग्नि रेखाएँ (Fire lines) निर्धारित किये जाने की आवश्यकता हैं| वस्तुतः अग्नि ज़मीन पर खिंची वैसी रेखाएँ होती हैं जो कि वनस्पतियों तथा घास के मध्य विभाजन करते हुए वनाग्नि को फैलने से रोकती हैं|
  • चूँकि ग्रीष्म ऋतु के आरंभ में वनों में सूखी पत्तियों की भरमार होती हैं अत: इस समय वनों की किसी भी भावी दुर्घटना से सुरक्षा  किये जाने की प्रबल आवश्यकता है|
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