पुरातात्विक स्थलों पर वार्मिंग का खतरा | 13 Jul 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, ग्रीनलैंड में जलवायु परिवर्तन केवल पारिस्थितिकी तंत्र के लिये ही खतरा नहीं है, बल्कि इससे पुरातात्विक इमारतों एवं स्थलों को भी क्षति पहुँच रही है।
प्रमुख बिंदु
- अध्ययनकर्त्ताओं की एक टीम वर्ष 2016 से विशाल आर्कटिक क्षेत्र की राजधानी नूक (Nuuk) के समीप सात अलग-अलग स्थानों पर परीक्षण कार्य कर रही है।
- आर्कटिक में 1,80,000 से अधिक पुरातात्विक स्थल हैं, जो हज़ारों वर्ष पुराने हैं और ये प्रकृति में मिट्टी के होने के कारण अभी तक संरक्षित भी थे।
- नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, चूँकि क्षरण दर मिट्टी में उपस्थित नमी की मात्रा एवं तापमान से नियंत्रित होती है, इसलिये हवा के बढ़ते तापमान, ऐसा मौसम जिसमें ठंड कम हो, अथवा वर्षा के पैटर्न में बदलाव हो, के कारण पुरातात्विक अवशेषों (लकड़ी, हड्डी और प्राचीन डीएनए जैसे प्रमुख कार्बनिक तत्त्वों) को नुकसान पहुँचता है।
- अध्ययनकर्त्ताओं द्वारा विभिन्न जलवायु परिवर्तन से प्रभावित परिदृश्यों पर आधारित परिकल्पनाओं के आधार पर भविष्यवाणी करते हुए कहा है कि औसतन तापमान 2.6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है, जिससे मिट्टी के तापमान में वृद्धि हो सकती है। साथ ही तापमान में वृद्धि के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से कार्बनिक परतों के भीतर पाए जाने वाले माइक्रोबियल की गतिविधि में भी इज़ाफा हो सकता है।
- अध्य्यनकर्त्ताओं के अनुसार, जैविक कार्बन (Organic Carbon) के पुरातात्त्विक अंश का 30 से 70% हिस्सा अगले 80 वर्षों तक विघटित हो सकता है।
अध्य्यनकर्त्ताओं के अनुसार, पिछले सर्वेक्षणों के साथ जब वर्तमान निष्कर्षों की तुलना की गई, तो यह पाया गया कि कुछ स्थानों पर हड्डियों अथवा लकड़ी के अवशेष नहीं मिले, इसका एक प्रमुख कारण यह है कि पिछले कुछ दशकों में इनके क्षरण की घटनाएँ सामने आई हैं। उदाहरण के तौर पर, अलास्का जैसे क्षेत्रों में, प्राचीन कलाकृतियाँ बढ़ते तापमान के कारण पर्माफ्रॉस्ट थाॅ के रूप में उभर रही हैं।
स्रोत: द हिंदू