युद्ध अपराध | 04 Mar 2022
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय, युद्ध अपराध, 1949 जिनेवा कन्वेंशन। मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, यूक्रेन पर रूस का युद्ध, युद्ध अपराधों पर अंतर्राष्ट्रीय कानून। |
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने घोषणा की है कि वह यूक्रेन में रूस द्वारा किये गए संभावित युद्ध अपराधों की जाँच शुरू करेगा। युद्ध अपराधों के लिये विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय मानक मौजूद हैं।
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय:
- ICC, हेग (नीदरलैंड्स) में स्थित एक स्थायी न्यायिक निकाय है, जिसका गठन वर्ष 1998 के अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय पर रोम संविधि (इसकी स्थापना और संचालन संबंधी दस्तावेज़़) द्वारा किया गया था और 1 जुलाई, 2002 को इस संविधि के लागू होने के साथ ही इसने कार्य करना प्रारंभ किया।
- मुख्यालय: हेग, नीदरलैंड
- सदस्य:
- 123 राष्ट्र रोम संविधि के पक्षकार हैं और आईसीसी के अधिकार को मान्यता देते हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, रूस और भारत सदस्य नहीं हैं।
- रोम संविधि ICC को चार मुख्य अपराधों पर क्षेत्राधिकार प्रदान करती है।
- नरसंहार का अपराध
- मानवता के विरुद्ध अपराध
- युद्ध अपराध
- आक्रामकता का अपराध (Crime of Aggression)
युद्ध अपराध:
- युद्ध अपराधों को संघर्ष के दौरान मानवीय कानूनों के गंभीर उल्लंघन के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- ICC की रोम संविधि द्वारा स्थापित परिभाषा, 1949 जिनेवा अभिसमयों से ली गई है।
- यह इस विचार पर आधारित है कि व्यक्तियों को किसी राज्य या उसकी सेना के कार्यों के प्रति उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
- बंधक बनाना, जान-बूझकर हत्या करना, युद्धबंदियों के साथ अत्याचार या अमानवीय व्यवहार तथा बच्चों को लड़ने के लिये मजबूर करना आदि इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।
जिनेवा कन्वेंशन (1949)
- जिनेवा कन्वेंशन (1949) तथा इसके अन्य प्रोटोकॉल वे अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ है जिनमें युद्ध की बर्बरता को सीमित करने वाले सबसे महत्त्वपूर्ण नियम शामिल हैं।
- ये संधियाँ/प्रोटोकॉल उन लोगों को सुरक्षा प्रदान करते हैं जो युद्ध में भाग नहीं लेते हैं, जैसे- नागरिक, सहायता कार्यकर्त्ता तथा जो युद्ध करने की स्थिति में नहीं होते जैसे- घायल, बीमार और जहाज़ पर सवार सैनिक एवं युद्धबंदी।
- पहला जिनेवा कन्वेंशन, युद्ध के दौरान घायल एवं बीमार सैनिकों को सुरक्षा प्रदान करता है।
- दूसरा जिनेवा कन्वेंशन, युद्ध के दौरान समुद्र में घायल, बीमार एवं जहाज़ पर मौजूद सैन्यकर्मियों को सुरक्षा प्रदान करता है।
- तीसरा जिनेवा कन्वेंशन, युद्ध के दौरान बंदी बनाए गए लोगों पर लागू होता है।
- चौथा जिनेवा कन्वेंशन, कब्ज़े वाले क्षेत्र सहित नागरिकों को संरक्षण प्रदान करता है।
- भारत जिनेवा कन्वेंशन का एक पक्षकार है।
युद्ध अपराधों के लिये मानदंड:
- मानदंड: यह तय करने के लिये कि क्या किसी व्यक्ति या सेना ने युद्ध अपराध किया है, अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून तीन सिद्धांतों को निर्धारित करता है:
- भेद: उन उद्देश्यों को लक्षित करना अवैध है, जिनसे "नागरिकों के जीवन को आकस्मिक नुकसान तथा नागरिकों को चोट लगना, नागरिक उद्देश्यों को नुकसान पहुँचने की आशंका होती है, जो कि अनुमानित ठोस और प्रत्यक्ष सैन्य लाभ के संबंध में अधिक होता है।
- आनुपातिकता: आनुपातिकता सेनाओं को अत्यधिक हिंसा वाले हमले का जवाब देने से रोकती है।
- उदाहरण के लिये यदि एक सैनिक मारा जाता है तो इसके प्रतिशोध में आप पूरे शहर पर बमबारी नहीं कर सकते।
- एहतियात: यह संघर्ष में शामिल सभी पक्षों के लिये नागरिक आबादी को होने वाले नुकसान से बचाने हेतु उपाय करना या नुकसान को कम-से-कम करना अनिवार्य बनाता है।
- परिभाषा में अस्पष्टता: शहरों या गाँवों पर छापेमारी, आवासीय भवनों या स्कूलों पर बमबारी और यहाँ तक कि नागरिकों के समूहों की हत्या भी तब ‘युद्ध अपराध’ नहीं होता जब यह सैन्य अभियान के दृष्टिकोण से उचित हो।
- हालाँकि यही कार्य तब ‘युद्ध अपराध’ बन सकते हैं यदि इनके परिणामस्वरूप अनावश्यक विनाश, पीड़ा और लोग हताहत होते हैं, जो कि सैन्य अभियान के दौरान आवश्यक नहीं था।
- इसके अलावा नागरिक और सैन्य आबादी में अंतर करना कठिन होता है।
‘युद्ध अपराध’ और ‘मानवता के विरुद्ध अपराध’ में अंतर:
- नरसंहार की रोकथाम और सुरक्षा उत्तरदायित्व पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (या नरसंहार कन्वेंशन) युद्ध अपराधों को नरसंहार या मानवता के खिलाफ अपराधों से अलग करता है।
- युद्ध अपराधों को घरेलू संघर्ष या दो राज्यों के बीच युद्ध के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- जबकि नरसंहार या मानवता के खिलाफ अपराध शांतिकाल में या निहत्थे लोगों के समूह के प्रति सेना की एकतरफा आक्रामकता के दौरान हो सकता है।