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एक राष्ट्रीय रबड़ नीति की ज़रूरत

  • 18 Jun 2018
  • 8 min read

संदर्भ

राष्ट्रीय रबड़ नीति ( National Rubber Policy-NRP) पर सरकार की पहली रिपोर्ट लंबे इंतज़ार के बाद भी अभी तक जारी नहीं हो सकी है। जाहिर है, विभिन्न हितधारकों के समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाली विशेषज्ञ समिति के सदस्यों के बीच मतभेद, तीन साल से अधिक समय तक दस्तावेज़ को रोकने का प्रमुख कारण रहा है। 

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • इसी बीच, केरल सरकार और प्राकृतिक रबड़ (Natural Rubber-NR) उत्पादकों के हितों के चलते बढ़ते दबाव के कारण 22 मार्च को सरकार द्वारा रबड़ क्षेत्र के पुनरुद्धार पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये एक टास्क फोर्स का गठन किया गया।
  • दुर्भाग्य से, एनआर उत्पादन के उच्च क्षेत्रीय संकेंद्रण से उत्पन्न होने वाले हितों के संघर्ष के कारण NRP की आवश्यकता तथा रबड़ की खपत के विसरित (Diffused)  पैटर्न को लेकर सर्वसम्मति पर भ्रामक स्थिति बनी रही|
  • भारत में NRP विकसित करने की रणनीतिक आवश्यकता समय के साथ अपनी विकासवादी गतिशीलता से उत्पन्न क्षेत्र की अनूठी विशेषताओं से उत्पन्न होती है।
  • विश्व रबड़ अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में भारत का उद्भव घरेलू बाज़ार अभिविन्यास में निहित खंडों के बीच परस्पर संबद्धता के लिये अनूठा था जो 1940 के दशक के आरंभ से संरक्षित नीति व्यवस्था के तहत विकसित हुआ था।
  • यह चीन के अपवाद के साथ अन्य प्रमुख उत्पादक देशों में निर्यात उन्मुख 'रबड़ अंतःक्षेत्र' (rubber enclaves)  के विकास के विपरीत है।
  • संक्षेप में  निर्यात बाज़ारों और बाहरी प्रतिस्पर्द्धा के सीमित संपर्क के साथ घरेलू मांग-संचालित परस्पर संबद्धता भारत के रबड़ क्षेत्र की पहचान थी।

पूर्व के सुधार 

  • हालाँकि, 1991-92 के बाद से व्यापार नीति में सुधार शुरू हुआ और बहुपक्षीय तथा आरटीए मार्गों के माध्यम से विदेशी प्रतिस्पर्द्धा के परिणामस्वरूप अनाश्रयता (exposure) ने परिदृश्य को बदल दिया है।
  • निर्यात बाज़ारों की तुलना में घरेलू बाज़ार में रबड़ और रबड़ उत्पादों के आयात में वृद्धि के कारण बाज़ार एकीकरण की चुनौतियों का सामना किया जाता है।
  • एनआर की कीमतों की अस्थिरता और कृषि आय में उतार-चढ़ाव ने परंपरागत कृषि प्रबंधन प्रथाओं के साथ रिप्लांटिंग को प्रभावित किया है।
  • इस प्रवृत्ति का एक परिणाम यह हुआ है कि देश के कुल टैप वाले क्षेत्र में जीर्ण (senile) पेड़ों (50 प्रतिशत से अधिक) में लगातार वृद्धि हुई है।
  • केरल में एनआर उत्पादकता में नकारात्मक वृद्धि दर (- 2.8 प्रतिशत) तथा 2007-08 और 2016-17 के बीच अखिल भारतीय वृद्धि दर (- 2.7 प्रतिशत) से पता चलता है कि नीति संबंधी निर्देश विफल हो गए हैं।
  • इसी प्रकार, संकटग्रस्त गैर-टायर सेगमेंट को अस्थिर कच्चे माल की कीमतों और आयात में वृद्धि ने प्रभावित किया है।
  • बाहरी व्यापार मोर्चे पर  2007-08 के बाद से भारत के रबड़ क्षेत्र के व्यापार का नकारात्मक संतुलन पिछले चार दशकों के दौरान व्यापार के सकारात्मक संतुलन के विपरीत रहा है। 2016-17 में  रबड़ और रबड़ उत्पादों में भारत का नकारात्मक संतुलन $ 415 मिलियन था। इसलिये खंडित प्रयास इस क्षेत्र की चुनौतियों को दूर करने में विफल रहे।
  • अन्य प्रमुख एनआर उत्पादक देशों के विपरीत भारत के रबड़ क्षेत्र की निर्यात तीव्रता नगण्य रही है। 2014-15 के दौरान अनुमानित निर्यात तीव्रता केवल 22.5 प्रतिशत थी।
  • इसलिये,  एक आत्मनिर्भर रबड़ क्षेत्र को बनाए रखना जिसमें घरेलू वस्तुओं से लेकर अंतरिक्ष कार्यक्रम तक के अनुप्रयोग शामिल हों,  एक प्रमुख नीतिगत चुनौती है।
  • फिर भी  बहुपक्षीय और क्षेत्रीय समझौतों के तहत गैर-विचारणीय व्यापार नीति प्रतिबद्धताओं द्वारा बनाई गई बाज़ार एकीकरण प्रक्रिया के संदर्भ में एनआरपी की आवश्यकता काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • हालाँकि भारत ने 1942 के प्रारंभ में एक टिकाऊ रबड़ क्षेत्र की प्रासंगिकता को पहचाना था, लेकिन बाज़ार एकीकरण की चुनौतियों का समाधान करने के लिये कोई अनुकरणीय मॉडल नहीं है।
  • 2002 में शुरू हुई चीन की 'गोइंग ग्लोबल' रणनीति एक मूल्यवान आदर्श प्रारूप है।  2007 में चीन द्वारा प्राकृतिक रबड़ एसोसिएशन की स्थापना और 2011 में चीन इंडस्ट्री एसोसिएशन की रबड़ वैली परियोजना ने संस्थागत ढाँचा प्रदान किया।
  • भारत मुक्त व्यापार के लिये पिछले सात दशकों में बनाए गए अपने रबड़ क्षेत्र के क्रमिक विघटन को बर्दाश्त कर रहा है।
  • एक व्यापक एनआरपी केवल एक आत्मनिर्भर रबड़ क्षेत्र को बनाए रखने के रणनीतिक महत्त्व को पहचानने के लिये अनिवार्य नहीं है बल्कि बाज़ार एकीकरण के युग में सहभागिता को बनाए रखने के लिये अंतर्निहित ताकत और एम्बेडेड संरचना की संचित कमजोरियों की पहचान करना भी अनिवार्य है।

रबड़ क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे 

  • इस क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दों में प्राकृतिक रबड़ के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य, आयात पर प्रतिबंध, न्यूनतम आयात मूल्य, कृषि उत्पाद के रूप में प्राकृतिक रबड़ का वर्गीकरण, कप गाँठों का आयात, सुरक्षा शुल्क और रबड़ बोर्ड को आवंटित बजट राशि में वृद्धि करना शामिल है।
  • देश में करीब 13.2 लाख रबड़ स्माल होल्डिंग हैं, जिनमें से लगभग 9 लाख केरल में हैं।
  • टायर और गैर-टायर क्षेत्रों में 10.45 लाख टन की खपत के मुकाबले 2016-17 में रबड़ उत्पादन 6.91 लाख टन था।
  • 2016-17 में प्राकृतिक रबड़ का आयात 4.27 लाख टन हो गया जो पिछले वित्त वर्ष में 4.58 लाख टन था। 
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