कोविड-19 वैक्सीन के लिये बौद्धिक संपदा संरक्षण में छूट | 07 May 2021
चर्चा में क्यों?
अमेरिका ने कोविड -19 वैक्सीन के लिये बौद्धिक संपदा (IP) संरक्षण में छूट प्रदान करने की घोषणा की है।
- यह निर्णय महामारी से लड़ने के क्रम में भारत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सदस्य देशों को इस तरह की छूट के लिये सहमत करने हेतु गए प्रयासों की एक सफलता है।
प्रमुख बिंदु
परिचय :
- वर्ष 1995 में बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS) पर हुए समझौते के तहत समझौते की पुष्टि करने वाले देशों के लिये यह आवश्यक है कि वे रचनाकारों को सुरक्षा प्रदान करने तथा नवोन्मेष को बढ़ावा देने के लिये बौद्धिक संपदा अधिकारों पर एक न्यूनतम मानक को लागू करें।
- भारत और दक्षिण अफ्रीका ने कोविड -19 के निवारण, रोकथाम या उपचार के लिये TRIPS समझौते (पेटेंट, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क जैसे बौद्धिक संपदा अधिकारों में छूट) के कुछ प्रावधानों के कार्यान्वयन और अनुप्रयोग में छूट दिये जाने का प्रस्ताव रखा है।
- छूट को मंज़ूरी मिल जाने पर WTO के सदस्य देशों के पास एक अस्थायी अवधि के लिये कोविड -19 से संबंधित दवाओं, वैक्सीन और अन्य उपचारों हेतु पेटेंट या अन्य संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकारों को मंज़ूरी देने या उन्हें प्रभावी करने के दात्यित्व नहीं होंगे।
- यह कदम देशों द्वारा अपनी आबादी के टीकाकरण हेतु किये गए उन उपायों को संरक्षण प्रदान करेगा जिन्हें WTO कानून के तहत अवैधानिक होने का दावा किया जा रहा है।
कोविड वैक्सीन पर पेटेंट में छूट की आवश्यकता:
- दवा कंपनियों का एकाधिकार: वर्तमान में केवल वही दवा कंपनियाँ कोविड वैक्सीन के निर्माण के लिये अधिकृत हैं जिनके पास पेटेंट है।
- पेटेंट पर एकाधिकार समाप्त होने से कंपनियाँ अपने फार्मूले को अन्य कंपनियों के साथ साझा कर सकेंगी।
- वैक्सीन की कीमत में कमी: एक बार फार्मूला साझा होने के बाद ऐसी कोई भी टीके का उत्पादन कर सकती है कंपनी जिसके पास आवश्यक प्रौद्योगिकी तथा बुनियादी ढाँचा उपलब्ध है।
- इसके परिणामस्वरूप कोविड वैक्सीन के सस्ते और अधिक जेनेरिक संस्करणों का उत्पादन होगा जो वैक्सीन की कमी को पूरा करने की दिशा में बड़ा कदम सिद्ध होगा।
- वैक्सीन का असमान वितरण: वैक्सीन के असमान वितरण ने विकासशील और अधिक संपन्न (Wealthier) देशों के बीच एक स्पष्ट अंतर प्रदर्शित किया है।
- वैक्सीन के अधिशेष खुराक वाले देशों ने पहले ही अपनी आबादी के बड़े हिस्से का टीकाकरण कर लिया है और अब वे सामान्य स्थिति में लौट रहे हैं।
- दूसरी ओर गरीब देशों को वैक्सीन की कमी का सामना करना पड़ रहा है जिसके कारण स्वास्थ्य देखभाल-प्रणालियों पर अधिक भार पड़ा है तथा इन देशों में प्रतिदिन सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो रही है।
- दुनिया के हितों के खिलाफ: विकासशील देशों में लंबे समय तक कोविड के प्रसार या वैक्सीन कवरेज में लगातार कमी के कारण इस वायरस के घातक तथा वैक्सीन प्रतिरोधी उत्परिवर्तन भी सामने आ सकते हैं।
भारत के लिये महत्त्व:
- उत्पादन बढ़ाने में: भारत में उत्पादित वैक्सीन खुराकों का बड़ा हिस्सा उन देशों को निर्यात किया जाता है जो वैक्सीन की खुराकों के लिये अधिक भुगतान करते हैं।
- यह कदम वैक्सीन को सभी के लिये अधिक किफायती बनाने के साथ ही अतिरिक्त मांग की आपूर्ति हेतु उत्पादन को बढ़ाने में मदद कर सकता है।
- तीसरी लहर के लिये तैयारी: भारतीय प्राधिकारियों द्वारा देश में कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर की भी आशंका व्यक्त की गई है।
- देश में कोविड मामलों तथा इसके कारण होने वाली मौतों के ग्राफ/आँकड़ों में कमी आने पर वैक्सीन की कमी को दूर करने और इसे अधिक किफायती बनाने तथा लोगों के लिये इसे अधिक सुलभ बनाने जैसे कदम भविष्य में महामारी से निपटने के लिये सर्वोत्तम उपाय हो सकते हैं।
इन निर्णय के विरुद्ध तर्क:
- वैक्सीन की गुणवत्ता और सुरक्षा प्रभावित हो सकती है: पेटेंट एकाधिकार हटाने से वैक्सीन विनिर्माण के लिये निर्धारित सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों से छेड़छाड़ होने की संभावना है।
- विघटनकारी दवा कंपनियाँ: पेटेंट एकाधिकार समाप्त करने का निर्णय भविष्य में महामारी के दौरान वैक्सीन के विकास पर किये जाने वाले भारी निवेश के मार्ग में बाधक हो सकता है।
- भ्रम की स्थिति उत्पन्न होना : सुरक्षात्मक तरीकों को खत्म करने से महामारी पर वैश्विक प्रतिक्रिया कम हो जाएगी, जिसमें नए वेरिएंट से निपटने के लिये किये जा रहे प्रयास भी शामिल हैं।
- इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होगी जो संभावित रूप से वैक्सीन की सुरक्षा के प्रति लोगों के आत्मविश्वास को कम कर सकता है इससे वैक्सीन संबंधी जानकारी के साझाकरण में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
आगे की राह
- विश्व भर में वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिये केवल बौद्धिक संपदा संरक्षण से छूट प्रदान करना पर्याप्त नहीं है। विनिर्माण क्षमताओं का विस्तार करने और अंतर्राष्ट्रीय वैक्सीनों का समर्थन करने के लिये सभी देशों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करना चाहिये।
- भारतीय निर्माताओं और सरकार दोनों के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि वे पेटेंट धारकों की चिंताओं को दूर करने के लिये यह सुनिश्चित करें कि भारत के टीकाकरण अभियान में किसी भी तरह का समझौता नहीं किया गया है।