जैव विविधता और पर्यावरण
विष्णुगढ़ पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना
- 31 Aug 2022
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:विष्णुगढ़ पीपलकोटी जल विद्युत परियोजन, अलकनंदा नदी, गंगा, उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजन, जलवायु परिवर्तन। मेन्स के लिये:हिमालय में जलविद्युत परियोजनाओं के लिये चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक उत्तराखंड में अलकनंदा नदी पर निर्माणाधीन विष्णुगढ़ पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना (Vishnugad Pipalkoti Hydro Electric Project-VPHEP) से पर्यावरणीय क्षति की जाँच करने के लिये सहमत हो गया है।
- पैनल ने 83 स्थानीय समुदायों की शिकायतों को स्वीकार करने के बाद जाँच के अनुरोध पर विचार किया है।
अलकनंदा नदी
- यह गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है।
- इसका उद्गम उत्तराखंड के संतोपंथ ग्लेशियर से होता है।
- यह देवप्रयाग में भागीरथी नदी से मिलती है जिसके बाद इसे गंगा कहा जाता है।
- इसकी मुख्य सहायक नदियाँ मंदाकिनी, नंदाकिनी और पिंडार नदियाँ हैं।
- अलकनंदा प्रणाली चमोली, टिहरी और पौड़ी ज़िलों के कुछ हिस्सों तक विस्तृत है।
- बद्रीनाथ का हिंदू तीर्थस्थल और प्राकृतिक झरना तप्त कुंड अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है।
- इसके मूल में सतोपंथ झील त्रिकोणीय झील है जो 4402 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और इसका नाम हिंदू त्रिमूर्ति भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव के नाम पर रखा गया है।
- पंच प्रयाग: उत्तराखंड में पाँच स्थल जहाँ पाँच नदियाँ अलकनंदा नदी में विलीन हो जाती हैं, अंततः पवित्र नदी गंगा को पंच प्रयाग कहा जाता है (हिंदी में, 'पंच' का अर्थ पाँच और 'प्रयाग' का अर्थ संगम होता है)।
- सबसे पहले, अलकनंदा विष्णुप्रयाग में धौलीगंगा नदी से मिलती है, वहीं नंदाकिनी नदी से नंदप्रयाग और फिर पिंडर नदी से कर्णप्रयाग में मिलती हैं। यह रुद्रप्रयाग में नंदाकिनी नदी के साथ मिलती है तथा देवप्रयाग पर अंतिम रूप से भागीरथी नदी में मिल जाती है।
शिकायतें:
- परियोजना से हाट गाँव में प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर को नष्ट हो जाएगा।
- मंदिर स्थानीय लोगों के लिये एक सांस्कृतिक स्रोत संसाधन है और उनकी आजीविका का साधन है।
- ग्रामीणों ने दावा किया कि बाँध से मलबा गिरने से मंदिर की दीवारों की वास्तुकला को खतरा है, जो एक प्राचीन विरासत स्थल है।
- स्थानीय लोगों ने लक्ष्मी नारायण मंदिर के साथ एक पवित्र बंधन होने का दावा किया, जिसे कथित तौर पर 19 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था।
- निवासियों को उनके गांँव से जबरन विस्थापित किया जा रहा है।
- कुछ स्थानीय लोग जिन्होंने मुआवजा लेने से इनकार कर दिया और दूसरी जगह चले गए, उन्हें उनके घरों से हटा दिया गया, जबकि कुछ को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
- परियोजना में जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाओं के कारण होने वाली आपदाओं को भी ध्यान में नहीं रखा है।
- वर्ष 2013 में केदारनाथ में बादल फटने और वर्ष 2021 की चमोली आपदा को भी नजरअंदाज कर दिया गया था।
VPHEP:
- 444-मेगावाट VPHEP का निर्माण टिहरी हाइड्रोपावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा किया जा रहा है, जो आंशिक रूप से केंद्र के स्वामित्त्व वाला उद्यम है।
- परियोजना मुख्य रूप से विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित है और वर्ष 2011 में स्वीकृत की गई थी
- जलविद्युत परियोजना को 922 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से 30 जून, 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
- परियोजना उत्तराखंड के चमोली जिले के हेलंग गांँव के पास अलकनंदा नदी में एक छोटा जलाशय बनाने के लिये 65 मीटर का डायवर्जन बाँध बनाएगी।
उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाएँ:
- टिहरी चरण 2: भागीरथी नदी पर 1000 मेगावाट
- तपोवन विष्णुगढ़: धौलीगंगा नदी पर 520 मेगावाट
- विष्णुगढ़ पीपलकोटी: अलकनंदा नदी पर 444 मेगावाट
- सिंगोली भटवारी: मंदाकिनी नदी पर 99 मेगावाट
- फटा भुयांग: मंदाकिनी नदी पर 76 मेगावाट
- मध्यमहेश्वर: मध्यमहेश्वर गंगा पर 15 मेगावाट
- कालीगंगा 2: कालीगंगा नदी पर 6 मेगावाट
हिमालय में जलविद्युत परियोजनाओं के विकास में विद्यमान चुनौतियाँ:
- स्थिरता में कमी:
- ग्लेशियरों के अपने स्थान से खिसकने तथा पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पर्वतीय ढलानों की स्थिरता में कमी आने और ग्लेशियर झीलों की संख्या एवं उनके क्षेत्रफल में वृद्धि होने का अनुमान लगाया है।
- पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से वातावरण में शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन उत्पन्न होती है, जो ग्लोबल वार्मिंग को और अधिक बढ़ा देती है।
- ग्लेशियरों के अपने स्थान से खिसकने तथा पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पर्वतीय ढलानों की स्थिरता में कमी आने और ग्लेशियर झीलों की संख्या एवं उनके क्षेत्रफल में वृद्धि होने का अनुमान लगाया है।
- जलवायु परिवर्तन:
- जलवायु परिवर्तन ने मौसम के अनिश्चित पैटर्न से बर्फबारी और वर्षा में वृद्धि हुई है।
- बर्फ का थर्मल प्रोफाइल (Thermal Profile) बढ़ रहा है, जिसका अर्थ है कि बर्फ का तापमान जो -6 से -20C० तक होता था, अब यह घटकर -2C० हो गया है, अर्थात् अब -2C० के तापमान पर बर्फ पिघलने की प्रवृत्ति बढ़ गई ।
- आपदाओं की बारंबारता में वृद्धि:
- बादलों के फटने की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है तथा तीव्र वर्षा और हिमस्खलन के साथ इस क्षेत्र के निवासियों के जीवन और आजीविका की हानि का जोखिम बढ़ गया है।
आगे की राह:
- यह अनुशंसा की जाती है कि हिमालयी क्षेत्र में 2,200 मीटर की ऊँचाई से अधिक किसी भी प्रकार के जलविद्युत परियोजना का विकास नहीं किया जाना चाहिये।
- जनसंख्या वृद्धि और आवश्यक औद्योगिक और बुनियादी ढाँचे के विकास को ध्यान में रखते हुए, सरकार को जलविद्युत के विकास के संबंध में गंभीर कदम उठाना चाहिये जो अर्थव्यवस्था के सतत् विकास के लिये आवश्यक है, परंतु इस विकास क्रम में पर्यावर्णीय मुद्दों का समाधान भी निहित होना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. टिहरी जलविद्युत परिसर निम्नलिखित में से किस नदी पर स्थित है? (2008) (a) अलकनंदा उत्तर: (b) प्रश्न. तपोवन और विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजनाएँ कहाँ स्थित हैं? (2008) (a) मध्य प्रदेश उत्तर: (c) |