‘ऋणों की स्वीकृति देने वाले’ मानदंडों का उल्लंघन | 22 Jul 2017
चर्चा में क्यों ?
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट में यह पाया गया है कि वर्ष 2012-16 के दौरान भारतीय औद्योगिक वित्त निगम द्वारा दिये गए अधिकांश ऋण सामान्य ऋण नीति (General Lending Policy) के अनुरूप नहीं थे अथवा ये उद्योगों की कर्मठता का आकलन किये बिना ही दे दिये गए थे, जिसके कारण पिछले तीन वर्षों में गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों (NPAs) में 78% की वृद्धि हुई थी।
प्रमुख बिंदु
- आईएफसीआई की यह ऑडिट (audit ) एनपीए में उच्च स्तर की वृद्धि के कारण की गई थी। 31 मार्च 2016 को 3,544.54 करोड़ रुपए (कुल दिये गए ऋणों का 13.05%) को एनपीए घोषित कर दिया गया था।
- विदित हो कि 2,794.58 करोड़ एनपीए का सृजन पिछले तीन वर्षों के दौरान हुआ है। वर्ष 2012-13 से 2015-16 की ऑडिट अवधि के दौरान एनपीए के कारण अचेतन ब्याज (unrealised interest) में 40,638.98 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई थी।
- इस ऑडिट में ऋणों की मंजूरी से संबंधित 128 मामलों का चुनाव किया गया था और यह पाया गया कि 69 मामलों में दिये गए ऋणों की स्वीकृति ऋणों से संबंधित सामान्य ऋण नीति (General Lending Policy-GLP) के अनुसार नहीं थी।
- इनमें साख मूल्यांकन के समय उद्योग की कर्मठता का आकलन नहीं किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप ऋण लेने वाले उद्योगों द्वारा लिये गए ऋण उनकी खराब ऋण सेवा क्षमता के कारण नहीं चुकाए गए थे।
- कैग की अनुशंसा है कि ऋण मूल्यांकन तंत्र को मज़बूत बनाया जाए और कंपनी को आरबीआई के दिशा-निर्देशों का पालन करने का सख्त आदेश दिया जाए । इसके अतिरिक्त कंपनी को सामान्य ऋण नीति के मानदंडों से भी विचलित नहीं होना चाहिये।
क्या है भारतीय औद्योगिक वित्त निगम?
- वर्ष 1948 में औद्योगिक वित्त निगम अधिनियम, 1948 के तहत उद्योगों को मध्यम और दीर्घकालिक ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से ‘भारतीय औद्योगिक वित्त निगम’ की स्थपाना की गई थी।
- वर्ष 1993 में इस अधिनियम के निरसन के पश्चात भारतीय औद्योगिक वित्त निगम को कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत एक सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत कर दिया गया।
- वर्ष 2015 में भारतीय औद्योगिक वित्त निगम की साझा पूंजी में भारत सरकार की हिस्सेदारी से यह कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(45) के अंतर्गत एक सरकारी कंपनी बन गई।
- भारतीय औद्योगिक वित्त निगम भारतीय रिज़र्व बैंक के अंतर्गत नॉन-डिपाजिट एवं नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी (NBFC-ND) के रूप में भी पंजीकृत है।
- इसका प्राथमिक कार्य विनिर्माण, सेवा और अवसंरचना क्षेत्रों को मध्यम और दीर्घकालिक ऋण उपलब्ध कराना है।