इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय राजनीति

अटॉर्नी जनरल: शक्तियाँ और सीमाएँ

  • 02 Jul 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये

अटॉर्नी जनरल

मेन्स के लिये

संघीय कार्यपालिका के एक अंग के रूप में अटॉर्नी जनरल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने अटॉर्नी जनरल (Attorney General-AG) के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता के. के. वेणुगोपाल (K.K. Venugopal) के कार्यकाल को एक वर्ष के लिये बढ़ा दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि 30 जून, 2017 को के.के. वेणुगोपाल को 3 वर्ष के कार्यकाल के लिये भारत का 15वाँ अटॉर्नी जनरल (AG) नियुक्त किया गया था, उनका पहला कार्यकाल बीते दिनों 30 जून, 2020 को समाप्त हो गया था।
    • 15वें अटॉर्नी जनरल (AG) के रूप में इनकी नियुक्ति पूर्व अटॉर्नी जनरल (AG) मुकुल रोहतगी के स्थान पर की गई थी। 
  • के. के. वेणुगोपाल के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (Solicitor-General) तुषार मेहता के कार्यकाल का भी तीन वर्ष के लिये विस्तार किया गया है।

के. के. वेणुगोपाल के बारे में

  • के. के. वेणुगोपाल का जन्म वर्ष वर्ष 1931 में हुआ था और उन्होंने एक अधिवक्ता के तौर पर अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1954 में की थी।
  • गौरतलब है कि के. के. वेणुगोपाल को एक अधिवक्ता के तौर पर 50 से भी अधिक वर्षों का अनुभव है और उन्हें  संवैधानिक मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है।

अटॉर्नी जनरल संवैधानिक प्रावधान

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 76 के अनुसार, भारत का अटॉर्नी जनरल (AG) भारत का सबसे बड़ा कानून अधिकारी होता है।
  • भारत सरकार के मुख्य कानून सलाहकार होने के नाते अटॉर्नी जनरल सभी कानूनी मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देने का कार्य करता है।
  • इसके अतिरिक्त भारत का अटॉर्नी जनरल सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्त्व भी करता है।

अटॉर्नी जनरल की नियुक्ति

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 76 के अनुसार, अटॉर्नी जनरल (AG) की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। 
  • अटॉर्नी जनरल के रूप में नियुक्त होने के लिये उन योग्यताओं का होना अनिवार्य है, जो उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश की नियुक्ति के लिये आवश्यक है। 
  • सरल शब्दों में कहें तो अटॉर्नी जनरल के रूप में नियुक्त होने के लिये आवश्यक है कि वह व्यक्ति भारत का नागरिक हो, उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का पाँच वर्षों का अनुभव हो या किसी उच्च न्यायालय में वकालत का 10 वर्षों का अनुभव हो अथवा राष्ट्रपति के मतानुसार वह न्यायिक मामलों का योग्य व्यक्ति हो।
  • गौरतलब है कि संविधान में अटॉर्नी जनरल के कार्यकाल के संबंध में कोई निश्चित व्याख्या नहीं दी गई है, हालाँकि राष्ट्रपति द्वारा कभी भी उन्हें इस पद से हटाया जा सकता है। इसके अलावा अटॉर्नी जनरल किसी भी समय राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंप कर पदमुक्त हो सकता है।
    • संविधान निर्माण की बहस के दौरान एक सदस्य द्वारा इस ओर ध्यान इंगित किया गया था कि प्रधानमंत्री के इस्तीफे के साथ उनके अटॉर्नी जनरल का कार्यकाल भी समाप्त हो जाना चाहिये, क्योंकि उसकी नियुक्ति सरकार की सिफारिशों के आधार पर की जाती है, हालाँकि इस संशोधन प्रस्ताव को मूल संविधान में शामिल नहीं किया गया था।
  • संविधान में अटॉर्नी जनरल का पारिश्रमिक निर्धारित नहीं किया गया है, संविधान के अनुच्छेद 76 के अनुसार, अटॉर्नी जनरल के पारिश्रमिक का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।

अटॉर्नी जनरल- कार्य और शक्तियाँ

  • भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह देना, जो राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गए हों।
  • विधिक स्वरूप वाले ऐसे अन्य कर्त्तव्यों का पालन करना, जो राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गए हों।
    • उच्चतम न्यायालय में भारत सरकार से संबंधित मामलों में सरकार का प्रतिनिधित्त्व करना।
    • भारत सरकार से संबंधित किसी मामले में उच्च न्यायालय में सुनवाई का अधिकार।
  • संविधान अथवा किसी अन्य विधि द्वारा प्रदान किये गए कृत्यों का निर्वहन करना।

अटॉर्नी जनरल- अधिकार

  • केंद्र सरकार के कानूनी सलाहकार के रूप में भारत के अटॉर्नी जनरल को भारत के किसी भी क्षेत्र में किसी भी अदालत में सुनवाई का अधिकार होता है।
  • वहीं अटॉर्नी जनरल को संसद के दोनों सदनों में बोलने अथवा कार्यवाही में भाग लेने या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में मताधिकार के बिना भाग लेने का भी अधिकार होता है।
    • एक संसद सदस्य की तरह अटॉर्नी जनरल को सभी भत्ते और विशेषाधिकार मिलते हैं।

अटॉर्नी जनरल- सीमाएँ

  • अटॉर्नी जनरल (AG) भारत सरकार के विरुद्ध कोई सलाह या विश्लेषण नहीं कर सकता है।
  • जिस मामले में उसे भारत सरकार की ओर से पेश होना है, वह उस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता है।
  • भारत सरकार की अनुमति के बिना वह किसी आपराधिक मामले में किसी व्यक्ति का बचाव नहीं कर सकता है।
  • भारत सरकार की अनुमति के बिना वह किसी परिषद या कंपनी के निदेशक का पद ग्रहण नहीं कर सकता है।

स्रोत: द  हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2