जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में वाहनों से होने वाला उत्सर्जन
- 12 Jan 2022
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:वाहन उत्सर्जन और इससे संबंधित मुद्दे। मेन्स के लिये:वाहनों से होने वाला उत्सर्जन और इसका प्रभाव, इस दिशा में उठाए गए प्रमुख कदम। |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2030 तक भारत में कारों की वार्षिक बिक्री मौजूदा 3.5 मिलियन से बढ़कर लगभग 10.5 मिलियन हो जाने का अनुमान है, जो की तीन गुना अधिक है, जिससे वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि होगी।
- भारत वर्ष 2019 तक वाहन पंजीकरण के उच्चतम चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (10%) के साथ पाँचवां सबसे बड़ा वैश्विक कार निर्माता है।
प्रमुख बिंदु:
- भारत में वाहन उत्सर्जन:
- शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण वाहनों का उत्सर्जन है।
- आमतौर पर वाहनों से होने वाला उत्सर्जन वायु गुणवत्ता के श्वसन स्तर पर पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 का 20-30% योगदान देता है।
- PM2.5 उन कणों को संदर्भित करता है जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है (मानव बाल की तुलना में 100 गुना अधिक पतला) और लंबे समय तक निलंबित रहता है।
- अध्ययनों के अनुसार, वाहन हर वर्ष PM2.5 के लगभग 290 गीगाग्राम (Gg) का उत्सर्जन करते हैं।
- साथ ही भारत में कुल ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन का लगभग 8% परिवहन क्षेत्र से होता है और दिल्ली में यह 30% से अधिक है।
- वाहन उत्सर्जन (विश्व):
- परिवहन क्षेत्र कुल उत्सर्जन का एक-चौथाई हिस्सा है, जिसमें से सड़क परिवहन तीन-चौथाई उत्सर्जन ( कुल वैश्विक CO2 उत्सर्जन का 15%) के लिये ज़िम्मेदार है।
- इसका सबसे बड़ा हिस्सा यात्री वाहन हैं, जो लगभग 45% CO2 उत्सर्जित करते हैं।
- यदि यही स्थिति बनी रही तो वर्ष 2020 की तुलना में वर्ष 2050 में वार्षिक जीएचजी उत्सर्जन 90% अधिक होगा।
- उत्सर्जन कम करने की दिशा में भारत से संबधित मुद्दे:
- भारत में ईंधन की गुणवत्ता में बदलाव, आंतरिक दहन इंजन (internal Combustion Engines- ICE) की निकास उपचार प्रणाली, वाहन खंडों के विद्युतीकरण और हाइड्रोजन से चलने वाले वाहनों की दिशा में उठाए गए कदमों के साथ वाहन प्रौद्योगिकी तेज़ी से बदल रही है।
- लेकिन ICE वाहनों की वर्ष 2040 तक पर्याप्त हिस्सेदारी होने की संभावना है।
- इसके लिये न केवल उत्सर्जन मानकों को सख्त करने की आवश्यकता है बल्कि विश्व में उत्सर्जन को कम करने हेतु वाहनों के परीक्षण के लिये तकनीकी मानकों में संशोधन की भी आवश्यकता है।
- उत्सर्जन परीक्षण की विधि:
- अधिकांश देशों ने विनिर्माण चरण और उपयोग के दौरान वाहनों के परीक्षण हेतु नियम तैयार किये हैं।
- वाहन प्रमाणन प्रक्रियाओं के तहत प्रयोगशाला में ‘इंजन चेसिस डायनेमोमीटर’ पर इंजन प्रदर्शन परीक्षण और उत्सर्जन अनुपालन शामिल होता है।
- इसके पश्चात् स्वीकार्य परीक्षण परिणाम प्राप्त करने हेतु ‘ड्राइव साइकल’ (गति और समय के निरंतर डेटा बिंदुओं की एक शृंखला जो त्वरण, मंदी और निष्क्रियता के संदर्भ में ड्राइविंग पैटर्न का अनुमान लगाती है) का भी प्रयोग किया जाता है।
- इसके माध्यम से वाहनों की वास्तविक ड्राइविंग स्थिति जानने में मदद मिलती है, जिससे उनसे होने वाले उत्सर्जन के बारे में भी पता चलता है।
- भारत द्वारा तैयार की गई परीक्षण विधियाँ:
- ‘इंडियन ड्राइव साइकल’ (IDC) व्यापक सड़क परीक्षणों के आधार पर भारत में वाहन परीक्षण और प्रमाणन हेतु तैयार किया गया पहला ‘ड्राइविंग साइकल’ था।
- ‘इंडियन ड्राइव साइकल’ एक छोटा सा चक्र था, जिसमें 108 सेकंड के छह ड्राइविंग मोड शामिल थे (त्वरण, मंदी और निष्क्रियता के एक पैटर्न को दर्शाते हुए)।
- किंतु IDC के तहत उन सभी जटिल ड्राइविंग स्थितियों को शामिल नहीं किया गया था, जो प्रायः आमतौर पर भारतीय सड़कों पर देखी जाती हैं।
- इसके बाद IDC में सुधार के रूप में ‘मॉडिफाइड इंडियन ड्राइव साइकल’ (MIDC) को अपनाया गया, जिसमें शामिल मानक ‘न्यू यूरोपियन ड्राइविंग साइकल’ (NEDC) के समान हैं।
- MIDC के तहत व्यापक ड्राइविंग मोड शामिल हैं और यह IDC की तुलना में काफी बेहतर है।
- साथ ही MIDC व्यावहारिक दुनिया में ड्राइविंग के दौरान देखी गईं विभिन्न स्थितियों को काफी बेहतर ढंग से कवर करता है।
- हालाँकि सुधारों के बावजूद, MIDC अभी भी यातायात घनत्व, भूमि उपयोग पैटर्न, सड़क बुनियादी अवसंरचना और खराब यातायात प्रबंधन में भिन्नता के कारण ऑन-रोड स्थितियों के दौरान वाहनों के उत्सर्जन का पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है।
- इसलिये ‘वर्ल्डवाइड हार्मोनाइज़्ड लाइट व्हीकल टेस्ट प्रोसीजर’ (WLTP) को अपनाना आवश्यक हो गया है, जो कि आंतरिक दहन इंजन और हाइब्रिड कारों से प्रदूषकों के स्तर को निर्धारित करने हेतु एक वैश्विक मानक है।
- ‘इंडियन ड्राइव साइकल’ (IDC) व्यापक सड़क परीक्षणों के आधार पर भारत में वाहन परीक्षण और प्रमाणन हेतु तैयार किया गया पहला ‘ड्राइविंग साइकल’ था।
- व्यावहारिक दुनिया में उत्सर्जन का मापन:
- ‘वास्तविक ड्राइविंग उत्सर्जन’ (RDE) परीक्षणों को लेकर यूरोपीय आयोग, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन का सुझाव है कि ‘ड्राइविंग साइकल’ व प्रयोगशाला परीक्षण वास्तविक ड्राइविंग स्थितियों के दौरान संभावित उत्सर्जन को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं, क्योंकि वास्तविक स्थितिययाँ प्रयोगशाला ड्राइविंग परीक्षण की तुलना में अधिक जटिल होती हैं।
- ‘वास्तविक ड्राइविंग उत्सर्जन’ (RDE) ‘वर्ल्डवाइड हार्मोनाइज़्ड लाइट व्हीकल टेस्ट प्रोसीजर’ और समकक्ष प्रयोगशाला परीक्षणों की सीमाओं को समाप्त करने हेतु एक स्वतंत्र परीक्षण है, जिसके तहत माना जाता है कि सार्वजनिक सड़कों पर कोई कार कई तरह की परिस्थितियों का सामना करती है।
- भारत में ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र वर्तमान में आरडीई प्रक्रियाओं का विकास कर रहा है, जिनके वर्ष 2023 में लागू होने की संभावना है।
- आरडीई चक्र को देश में प्रचलित स्थितियों, जैसे कम और अधिक ऊँचाई, साल भर तापमान, अतिरिक्त वाहन पेलोड, ड्राइविंग, शहरी और ग्रामीण सड़कों व राजमार्गों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिये।
- ‘वास्तविक ड्राइविंग उत्सर्जन’ (RDE) परीक्षणों को लेकर यूरोपीय आयोग, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन का सुझाव है कि ‘ड्राइविंग साइकल’ व प्रयोगशाला परीक्षण वास्तविक ड्राइविंग स्थितियों के दौरान संभावित उत्सर्जन को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं, क्योंकि वास्तविक स्थितिययाँ प्रयोगशाला ड्राइविंग परीक्षण की तुलना में अधिक जटिल होती हैं।
भारत में उत्सर्जन कम करने की पहल:
- भारत स्टेज- IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों में बदलाव:
- भारत चरण (बीएस) उत्सर्जन मानकों को सरकार द्वारा मोटर वाहनों सहित आंतरिक दहन इंजन और स्पार्क-इग्निशन इंजन उपकरण से वायु प्रदूषकों के उत्पादन को विनियमित करने के लिये निर्धारित किया गया है।
- केंद्र सरकार ने अनिवार्य किया है कि वाहन निर्माताओं को 1 अप्रैल 2020 से केवल BS-VI (BS-6) वाहनों का निर्माण, बिक्री और पंजीकरण करना होगा।
- 2025 तक भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण का रोडमैप:
- रोडमैप में अप्रैल 2022 तक E10 ईंधन की आपूर्ति करने के लिये इथेनॉल-मिश्रित ईंधन के क्रमिक प्रयोग और अप्रैल 2023 से अप्रैल 2025 तक E20 के चरणबद्ध प्रयोग का प्रस्ताव है।
- हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहन (FAME) योजना का तेज़ी से अंगीकरण और निर्माण:
- FAME India योजना का उद्देश्य सभी वाहन खंडों को प्रोत्साहित करना है।
- योजना के दो चरण:
- चरण I: वर्ष 2015 में शुरू हुआ और 31 मार्च, 2019 को पूरा हुआ
- चरण II: अप्रैल, 2019 से शुरू होकर 31 मार्च, 2024 तक पूरा किया जाएगा।
- राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन:
- इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी, नीति और विनियमन में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ भारत के प्रयासों को संरेखित करते हुए कार्बन उत्सर्जन में कटौती तथा ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के उपयोग में वृद्धि करना है।